चर्चित नेता अबू आसिफ आजमी ने बाहुबली रमाकांत यादव को कराई सपा में वापसी

आजमगढ़ ।। लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस के टिकट पर भदोही चुनाव लड़ने के बाद जमानत जब्त होने से राजनीति में हासिए पर आ गए बाहुबली रमाकांत यादव की पुराने घर में वापसी से कैरियर को सहारा मिल ही गया। बाहुबलियों के प्रबल विरोधी पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव के लिए चुनौती बने और उनके खिलाफ नारेबाजी कराने वाले नेता को गले क्यों लगाया यह चर्चा का विषय बना हुआ है।

कम ही लोग जानते हैं कि रमाकांत की वापसी जिले के एक बड़े मुस्लिम नेता के प्रयास से हुई है जो मुलायम सिंह यादव व प्रोफेसर राम गोपाल का बेहद करीबी है। अगर यह नेता न होता तो शायद रमाकांत की डूबती नाव को सहारा न मिलता। कारण कि मुलामय और अखिलेश कई बार रमाकांत यादव को खाली हाथ वापस भेज चुके थे मजबूर होकर रमाकांत यादव कांग्रेस की शरण में पहुंचे थे।

बता दें कि रमाकांत यादव बीजेपी में वर्ष 2016 में उसी समय हासिए पर चले गए थे जब मऊ में पिछड़ी जाति के सम्मेलन को बीच में छोड़कर वापस लौटे और आजमगढ़ में प्रेस कांफ्रेंस कर भाजपा के वरिष्ठ नेता रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के खिलाफ बयाबाजी करते हुए उन्हें पिछड़ों का दुश्मन बताया था और आरोप लगाया था कि मुलायम सिंह के साथ मिलकर राजनाथ ने बड़ी साजिश की और ने मोदी के बजाय मुलायम के सहयोग से खुद प्रधानमंत्री बनना चाहते थे लेकिन बीजेपी के बहुमत में आने के कारण उनकी यह चाल कामियाब नहीं हुई।

यही वजह थी कि जब रमाकांत यादव ने वर्ष 2017 में पार्टी से आधा दर्जन सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने चाहे और बेटे के साथ ही बहू व अन्य के लिए टिकट मांगा तो पार्टी ने दरकिनार कर दिया। उस समय रमाकांत ने अपने भाई की बहू अर्चना को दीदारगंज से निर्दल लड़ाकर बीजेपी को नुकसान पहुंचाने की कोशिश भी की लेकिन अर्चना पांच हजार मतों में ही सिमट गयी। यूपी में पूर्व बहुतम की सरकार बनने के बाद जब सरकार ने रमाकांत यादव के अवैध खनन पर शिकंजा कसा और बेटे को मंत्री नहीं बनाया तो वे और मुकर हो गए। सीएम योगी के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया।

कारण कि तब तक रमाकांत को पता चल गया था कि अब बीजेपी में उनका भविष्य सुरक्षित नहीं है। तभी से रमाकांत यादव सपा में शामिल होने की जुगत में लगे थे। उस समय उन्होंने दो बार मुलायम से मुलाकत की लेकिन मुलायम उनके द्वारा लगवाये गये नारे मुलायम सिंह वापस जाओ लाठी लेकर भैस चराओं को नहीं भूले थे। उन्होंने दोनों बार रमाकांत को खाली हाथ लौटा दिया। पिता की नाराजगी से वाकिफ अखिलेश ने भी रमाकांत को भाव नहीं दिया। वर्ष 2019 के चुनाव के पूर्व अबू आसिम ने रमाकांत के लिए लाबिंग शुरू की लेकिन बात नहीं बनी। रमाकांत उस समय खुद के लिए टिकट चाहते थे जो अखिलेश देने के लिए तैयार नहीं हुए।

सपा बसपा के गठबंधन के बाद अखिलेश ने खुद आजमगढ़ से लड़ने का फैसला कर लिया और बीजेपी ने रमाकांत का टिकट काट निरहुआ को मैदान में उतार दिया। इसके बाद भी महाराष्ट्र प्रांत के सपा अध्यक्ष अबूआसिम रमाकांत की पैरबी करते रहे। अंतिम समय में रमाकांत ने कैरियर बचाने के लिए कांग्रेस में जाने का फैसला कर लिया और उन्हें भदोही से टिकट भी मिल गया। रमाकांत को भरोसा था कि ढाई लाख यादव उन्हें सांसद बना देंगे लेकिन यहां रमाकांत की जामनत तक नहीं बची और वे 25 हजार मतों पर ही सिमट गए।

कैरियर समाप्त होता देख फिर रमाकांत कई बार अखिलेश की शरण में गए लेकिन बात नहीं फिर। फिर रमाकांत के लिए अबू आसिम ने मोर्चा संभाला और मुलायम सिंह तथा अखिलेश यादव से बात की। सूत्रों की माने तो पहले मुलायम तैयार नहीं थे लेकिन वे अपने पुराने साथी अबू आसिम की बात बहुत दिन तक काट नहीं पाए और रमाकांत की वापसी को हरी झंडी दे दी। इसके बाद अबू आसिम ने अखिलेश को भी तैयार कर लिया। फिर क्या था छह अक्टूबर को रमाकांत की घर वापसी हो गई। जिस समय रमाकांत ने सपा ज्वाइन किया उस समय अबू आसिम वहां मौजूद रहे, जबकि महाराष्ट्र में चुनाव है।

रिपोर्टर

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