घर को यूँ वीरान बना के बैठे हैं

घर को यूँ वीरान बना के बैठे हैं 

रिश्तों को बेजान बना के बैठे हैं ।


बूढ़ी माँ को भेज दिया वृद्धाश्रम मे 

कोठी आलीशान बना के बैठे हैं ।


देखो तो अभिशाप कहीं न बन जाए 

हम जिसको वरदान बना के बैठे हैं ।


उनकी करतूतों का कैसा ताण्डव है 

हम जिनको भगवान बना के बैठे हैं ।


पैसे लेकर बेच रहे हैं वोटों को 

कैसा हिन्दुस्तान बना के बैठे हैं ।


जब से छूकर पाँव चले हैं हम माँ के 

हर मुश्किल आसान बना के बैठे हैं ।


                                         ●अभिषेक उपाध्याय श्रीमंत

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