बेटी को समर्पित

समय बीत गया युग बदले फिर भी हम समझ ना पाये

बेटी है बेटों से बढ़कर बेटी ही भाग्य जगाये।

बेटी होती प्यारी मैना जिस घर में उड़कर आये

वह घर स्वर्ग बन जाता है उस घर में लक्ष्मी आये

कैसी है ये परम्परा जगत की किसने यह सोच बनाई

बेटे से ही वंश चलेगा बेटी होती पराई

बेटी प्यार की क्यारी है जिस पर फूल स्नेह के खिलते

जैसे धरती गगन मिलते वैसे ही दो कुल को मिलाये

बेटी से त्योंहार चहकते लोगों का क्या कहना

बेटी तो रिश्तों की महक है जो जाने केवल महकना

यह फर्ज नहीं है दोस्तों यह तो बेटी है

किस्मत वालों को ही मिलती  उसके भाग्य में बेटी है

बेटी होती है सुख की बदली बरसे चमन खिल जाये

बेटी है बेटों से बढ़कर बेटी ही भाग्य जगाये।

बेटी है अमृत की वर्षा बेटी ही सीप का मोती

बेटी गुलाब की खुशबू सुरभित मलयज शितल

बेटी परीलोक से आकर अपनी जादू की छड़ी घुमाती

तब सौभाग्य उदय होता है जादू सा कर जाती

बेटी मरहम जख्मों की बेटी शहद में मिश्री

बेटी छुयी-मुयी की कोमलता तितली की मस्ती

बेटी स्वर अमन चैन की पायल की छम-छम है

बेटी वीणा की मीठी-मीठी अलबेली धुन है

बेटी से ही मेंहदी महावर बेटी से ही रंगोली

बेटी से इतराते मिलकर विंदिया, कंगना,चूड़ी

बेटी होती मुनीया रानी घर को स्वर्ग बनाये

बेटी है बटों से बढ़कर बेटी ही भाग्य जगाये।

यदि बेटी ना होती तो कन्हैया मुरली कैसे बजाते

बेटी ना होती तो कैसे भगवान राम  पृथ्वी पर आते

कैसे राधा प्यारी होती कैसे सती सावित्री

कैसे पैदा हो पाते जग के भाग्य विधाता

बेटी ना होती तो कैसे रानीलक्ष्मी बाई होती

दुर्गामाता,लक्ष्मीमाता कहां विन्ध्यवासीनी होती

बेटी से बेटी होती है जो जननी कहलाती है

इसी नियम में सब कुछ चलताऔर सृष्टि चक्र चलती है

ईश्वर ने करूणा ममता की मिट्टी खास बनाई है

बेटी जैसा फूल ईश्वर दुसरा ना रच पाये है

बेटी है बेटों से बढ़कर बेटी ही भाग्य जगाये।

                                              

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