एस सी/ एस टी एक्ट -सुरक्षा आर्थिक व शारिरिक कमजोरों की हो

संदीप मिश्रा की कलम से ....

लार्ड मैकाले ने कभी ब्रिटेन की संसद ने कहा था कि भारत को गुलाम बनाना है तो वहां की संस्कृति को नष्ट करना होगाऔर आज हमारे देश के नेताओं की मानसिकता यह है यदि इस देश पर राज करना है तो जातिवाद व धर्मवाद बना रहना चाहिए। । बहुत ही दुखद है कि आज एससी/एसटी एक्ट, अनारक्षित , पिछड़ाऔर आरक्षित समाज में टकराव का एक कारण बनता जा रहा है। इसका राजनीतिकरण कितना दुखद है कि आने वाले समय में भारत की तस्वीर बदल जाएगी। निश्चित रूप से यह  दुरुपयोग में लाया जाएगा और सवर्ण और पिछड़े समाज के उन लोगों को निशाना बनाया जाएगा जो लोग नेतृत्व में उभर रहे हैं। ऐसे लोगों को जानबूझकर निशाना बनाया जाएगा। बाद में चलकर अनारक्षित और पिछड़े  समाज का नेतृत्व करने वाला भी कोई नहीं होगा। मैं यह तो नहीं कह सकता कि यह एक्ट खत्म कर दिया जाए किंतु इतना जरूर कहा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस तरह का एक्ट पारित करना देश की न्यायपालिका के अपमान के साथ-साथ  सवर्ण और पिछड़े समाज को,दलित वोट प्रेम, में शूली पर चढ़ाने जैसा है। निश्चित रूप से सवर्णऔर पिछड़ा समाज अपनी सुरक्षा के प्रति चिंतित होगा क्योंकि इसका दुरुपयोग करने वाले एससी एसटी के नेता निश्चित रूप से हर उभरने वाली शख्सियत को परेशान करेंगे और उनका शोषण करेंगे । यदि सुरक्षा देना ही है तो आर्थिक और शारीरिक रूप से कमजोर लोगों को ऐसी सुविधा देते तो निश्चित रूप से सक्षम समाज के लोग दबे हुए लोंगो का शोषण करने से डरते।  क्यों नहीं ऐसा कानून आर्थिक आधार पर बनाया जाता? आर्थिक आधार पर दबे हुए लोगों के साथ यदि कोई गलत तरह का कार्य व्यवहार करता है या उसे दबाने का प्रयास करता है तो ऐसे लोगों के खिलाफ निश्चित रूप से बिना जांच की कार्यवाही हो तो सब लोग  निश्चित रूप से दबे हुए लोगों  सहयोग करेंगे या परेशान तो नहीं करेंगे किन्तु यहाँ भी दुरुपयोग से इनकार नहीं किया जा सकता।  जातीय रुप से इस तरह से सुरक्षा प्रदान करना निश्चित रूप से समाज में विष घोलने के समान है जो इस समाज के लिए विनाशकारी होगा। समाज में जो भेदभाव व्याप्त है वो इससे और गहरा ही होगा। सरकार को हमेशा ऐसा कानून बनाना चाहिये जिससे समाज में प्रेम भाव फैले किन्तु सत्ता में बने रहने के लोभ में ये लोग ऐसा कर रहे हैं और सत्ता पाने की लालसा में विपक्ष भी मौन है। आज शिक्षा का प्रचार प्रसार कर जिस जातीय भेदभाव को खत्म करने की जरूरत है, सत्ता के लोभ में उसी की वकालत चल रही है। अब इस देश का भगवान ही मालिक है जहां सुप्रीम कोर्ट के आदेश को सत्ता लोभ युक्त जातीय प्रेम में  बदला जाय।

यहाँ यहां पर कुछ चीजें विचारणीय है कि क्या इस कानून का दुरुपयोग नहीं होगा? क्या शांति प्रिय लोगों को जानबूझकर ऐसे मामलों में उलझाकर उनको अपमानित नहीं किया जाएगा? राजनैतिक रूप से सत्य की लड़ाई लड़ने वालों को इस में फंसाकर परेशान नहीं किया जाएगा ? इस बात की क्या गारंटी होगी कि दुरुपयोग नहीं होगा ? निश्चित रूप से लोकहित में कानून बने, अच्छी बात है ।लेकिन यदि यह गलत पाया गया तो क्या इसका दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही नहीं होनी चाहिये? 

भाजपा सरकार के इस कार्य से अनारक्षित और पिछड़ा समाज भयभीत है कि कहीं कश्मीर से ब्राह्मणों के पलायन के बाद अब पूरे देश से अनारक्षित और पिछड़े समाज को पलायन तो नहीं करना पड़ेगा।

रिपोर्टर

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