जनकपुर से सीता की विदाई में रोए सभी पुरवासी - स्वामी निर्मल शरण

रिपोर्ट-राम मोहन अग्निहोत्री

ज्ञानपुर, भदोही ।। ज्ञानपुर स्थित मुखर्जी पार्क में चल रही श्री राम कथा में अयोध्या से पधारे स्वामी निर्मल शरण जी महाराज में बतलाया कि विवाह में सब कुछ हंसी खुशी से बीतता है लेकिन एक पल ऐसा भी आता है जब सबकी आंखें नम हो जाती हैं वह है बेटी की विदाई का पल। भला दुख क्यों नहीं होगा जिस बेटी को पाल पोस कर माता पिता बड़ा करते हैं वही बेटी पल भर में पराई हो जाती है। बेटी की विदाई में मां को तो कष्ट होता ही है लेकिन सबसे अधिक कष्ट बेटी के बाप को होता है क्योंकि बेटी बाप के हृदय पर शासन करती है।बेटा स्वार्थी हो सकता है पर बेटियां स्वार्थी नहीं होती बेटा सेवा तो करता नहीं यदि करता भी है तो उसका स्वार्थ होता है बाप के मरने के बाद सारी संपत्ति मेरी है लेकिन बेटियां निस्वार्थ भाव से सेवा करती हैं उन्हें यह लालच नहीं है के पिताजी दो चार लाख रुपए या दो चार कमरे मुझे दे देंगे। बेटी दिन रात भगवान से प्रार्थना करती है मेरे माता पिता मेरे भैया भाभी खुशहाल रहे। बेटे तो संपत्ति का बंटवारा कर लेते हैं लेकिन विपत्ति का बंटवारा भारत की बेटियां करतीं हैं बेटा पास रह कर के भी मां-बाप का हाल चाल नहीं पूछता लेकिन बेटी दूर रहकर भी मां बाप का हालचाल लेती रहती है। स्वामी जी ने कहा जिस समय सीता जी की डोली महल के बाहर निकली जनक जी ने सीता को डोली में देखा तो फूट-फूटकर रो पड़े"सीय बिलोकि धीरता भागी।रहे कहावत परम बिरागी।।"सीता जी की विदाई में सभी जनकपुर वासी रो पड़े। किसी मां बाप को नहीं पता कि जिस बेटी को विदा कर रहे हैं उस बेटी के साथ ससुराल में क्या होगा? जनक जी को भी नहीं पता कि जिस बेटी को आज विदा कर रहे हैं उस बेटी से मुलाकात चित्रकूट के जंगल में होगी। जब चित्रकूट के जंगल में महाराज जनक ने सीता को पत्थर पर बैठकर झरने का पानी पीते हुए देखा तो महाराज जनक रो पड़े सोचते हैं जिस बेटी के पांव में फूल की पंखुड़ियां चुभ जाती थी वह बेटी इस कंकड़ीली पथरीली जमीन पर नंगे पांव कैसे चल रही है। जनक जी ने सीता को कहा"पुत्रि पवित्र किए कुल दोऊ"बेटी तूने दोनों कुल को पवित्र कर दिया। आज के मुख्य आरती में नगर पंचायत अध्यक्ष हीरालाल मौर्य, राकेश दुबे, ब्रह्मजीत शुक्ला, संतोष उमरवैश्य आदि भक्त उपस्थित रहे।

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