नई दुकान सजाकर फिर से लुटिया डुबाने को हाजिर हैं नेता

मुंबई ।। ऐसे तो अनेकों उत्तर भारतीय नेता अब तक समाज के नाम पर उत्तर भारतीयों को केवल मोहरा बना कर अपने आप को उनका मसीहा बनाकर उनके हिस्से की रोटी भी चट कर समाजसेवक की उपाधि से विभूषित हो चुके हैं लेकिन इन दिनों एक नई दुकान सजाकर तथाकथित उत्तर भारतीयों के नए मसीहा (ओं) का प्रादुर्भाव हो चुका है और आगामी 10 मार्च को एक नई दुकान उत्तर भारतीयों की रहनुमा बताकर खुलने जा रही है। उद्घाटन समारोह की तैयारी जोर सोर में है लेकिन उत्तर भारतीयों को ही पता नही !! आप सभी कहीं न कहीं आगे पढ़कर समझेंगे की किस तरह ये समाज के लोगों को गलत दिशा दिखाकर अपने व्यापार के बचाव में समाज के साथ खेल खेलने को मैदान में उतर रहे हैं। समाज के तमाम बुद्धिजीवी वर्ग ने इसका विरोध किया है तथा ऐसी दुकानदारी को सिरे से खारिज कर दिया है।

अब आप इस नई दुकान के खुलने के उद्देश्य जानिए: चुनाव नजदीक आ गया है तथा टिकट की चाहत अन्य समाज की तरह उत्तर भारतीय समाज के छद्म नेेताओ को भी है लेकिन केवल चुनाव के समय ही मसीहा बनने का एक ही तरीका है कि एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया जाय जिसमे लिट्टी चोखा के साथ कुछ मनोरंजन की भी व्यवस्था हो जिसे दिखाकर समाज को एकजुट करने का प्रयास करने का दिखावा कर पार्टी से टिकट हासिल किया जा सके यही उद्देश्य है साथ ही एक अन्य स्वार्थ यह भी की व्यापार में जो भी अवैध काम किये जा रहे हैं उनके संरक्षण के लिए समाज को एकत्रित दिखाकर उस धंधे को वैध बनाए रखना ही मूलभूत उद्देश्य है।

अब सवाल यह उठता है कि समाज को संगठित करने के लिए एक नई दुकान क्यों ?? अगर आप समाज को संगठित करना चाहते हैं तो पुरानी दुकान के बैनर तले क्यों नही?? क्यों कि उसका उद्देश्य भी तो आपके उद्देश्य की तरह ही था तो जबाब यह है कि पुरानी दुकान के मालिक अपने फायदे के लिए दुकान खोले थे और हम अपने फायदे के लिए। तो समाज कहाँ गया?? समाज गया तेल लेने? एक भी नेता रहनुमा बनकर किसी गरीब के घर बुके शाल श्रीफल लेकर जन्मदिन मनाने गया ? अपने धन का उपयोग गरीब की दवा में किया? कितने बच्चों को यह नेता पढ़ने का खर्चा दे रहे हैं? अस्पताल, वाचनालय, खेलकूद के मैदान, सड़क, पानी बिजली के लिए आम जन के साथ खड़े अनशन करते दिखे क्या ? गरीब के बच्चों का डोनेशन स्कूल में भरा क्या ? पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए लड़े क्या ? पिछले नेता किसी भी पक्ष से कोई मनपा या अन्य विभाग में पद पाए क्या? सब का जबाब है नही।

10 मार्च को होने वाले संगम में समाज के वरिष्ठ, युवाओं, महिलाओं को पता ही नही। राजा को पता नही मुसहर बन बांट लिए की कहावत चरितार्थ हो रही है। कार्यक्रम है समाज को संगठित करने का लेकिन समाज के बुजुर्गों को पता नही , समाज के युवा नेताओं को पता नही। आइए समाज के कुछ बुद्धिजीवियों के विचार जान लेते हैं।


विजय पंडित के अनुसार इस कार्यक्रम को इस समय कराने का एकमात्र कारण नजदीक आ रहे चुनाव हैं। समाज को एकत्रित करने के कारण यह अगर किया जा रहा है तो इसमें उनका समर्थन है। वैसे उन्होंने किसी ऐसी चर्चा से इंकार किया है जिसमें इस कार्यक्रम का विस्तृत विवरण उन्हें दिया गया हो। ------विजय पंडित


पूर्व नगरसेवक रमाकांत उपाध्याय जिन्हें कार्यक्रम में विशेष सत्कार के लिए पत्रिका पर जगह मिली है उन्हें यह तक नही बताया गया कि किस विषय पर कार्यक्रम है और उसके क्या उद्देश्य हैं। ------रमाकांत उपाध्याय


समाजसेवक रामचंद्र पांडे का कहना है कि उन्हें तो कुछ पता ही नही है यह जो भी हो रहा है उसमें एक भी वरिष्ठ का मार्गदर्शन नही लिया गया है साथ ही उन्होंने आयोजको को कार्यक्रम की सफलता के लिए शुभेच्छा भी दी । -----रामचंद्र पांडेय


सत्ता लोलुप लोगों को समाज से कोई लेना देना नही है, जब समाज बंधुओं पर अन्याय होता है तब ये मंडली दूर दूर तक नजर नही आती है। -----पारसनाथ त्रिपाठी 


इस कार्यक्रम के आयोजन का मूल उद्देश्य यही है कि समाज को एक मंच पर लाया जा सके और उनकी आपस की दूरियों को मिटाया जा सके । ------ विजय मिश्रा 


इस कार्यक्रम का उद्देश्य तो बहुत बढ़िया है पर इसमें कही ना कही अनुभव की कमी जरूर झलक रही है । -----विजय उपाध्याय


शिवसेना के युवा नेता विनोद मिश्रा के अनुसार यह कार्यक्रम समाज के लिए नही बल्कि अपनी अपनी राजनीति चमकाने तथा राजनैतिक दलों में अपनी पकड़ बनाने के लिए है। समाज की एकजुटता के लिए अगर यह कार्यक्रम होता तो निश्चित रूप से वरिष्ठों व युवाओं को इसके विषय मे जानकारी अवश्य होती और उन्हें विश्वास में लिया जाता। ----- विनोद मिश्रा


आरटीआई कार्यकर्ता व समाजसेवी विनोद तिवारी के अनुसार यह कार्यक्रम समाज को गुमराह करने के लिए किया जा रहा है। अगर उद्देश्य समाज को एकत्र करना था तो नई संस्था (दुकान) बनाने की जरूरत नही थी पहले की संस्थाओं के माध्यम से भी यह हो सकता था तथा राजनैतिक व्यक्तियों के बजाय समाज के वक्ताओं को स्थान दिया जाना चाहिए था। दशकों से समाज के लिए समर्पित लोगों से भी विचार विमर्श किया जाना जरूरी था। -----विनोद तिवारी


उद्योगपति एवं समाजसेवी प्रेम शुक्ल ने बताया कि उन्हें इस प्रोग्राम के विषय मे जानकारी नही है तथा इसके मूलभूत उद्देश्यों की भी उन्हें जानकारी नही है।-----प्रेम शुक्ला


वहीं नई संस्था से जुड़े व्यवसायी महेंद्र चौबे ने बताया कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य सभी को एक मंच पर लाना है जब उनसे पूंछा गया कि पिछली संस्थाओं के माध्यम से एक मंच पर क्यों नही लाया जा सकता तो वह कोई संतोषजनक जवाब नही दे सके तथा संस्था के अन्य लोगों से विमर्श करने को कहा।। ----महेंद्र चौबे


अगर उत्तर भारतीय इतना ही बड़ो को सम्मान देते तो जो श्रेष्ठ है उसको अग्रसर किया जाता पर यहां तो ऐसा बिल्कुल ही नही दिख रहा है । ----- बंटी तिवारी 


कुल मिलाकर नई संस्था लांच करने का उद्देश्य केवल कुछ लोगों का निजी स्वार्थ मालूम पड़ता हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक समाजसेवी ने बताया कि ग्राउंड पर तो कभी इन्होंने काम किया नही और अब 5 से 6 लोग मिलकर राजनैतिक महत्वाकांक्षा की तलाश में समाज को बलि का बकरा बना रहे हैं और ज्यादातर जुड़े लोग भवन निर्माण के कार्य मे संलग्न हैं या फिर अन्य व्यवसाय में जुड़े हैं और अपनी प्रोटेक्शन के लिए यह हथकंडा अपना रहे हैं। इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो किसी न किसी पार्टी के पिछलग्गू हैं और समाज मे आने पर अपने को बड़ा नेता बताते फिरते हैं कोई भी विकाश का काम समाजहित में इनके द्वारा नही किया गया जबकि अपने को पक्ष में फ्रंट का दावेदार बताते नही थकते। 

गौरतलब हो कि कल्याण शहर में यूं तो कई ऐसे व्यापारी हैं जो की चुनाव के बाद सिर्फ अपना व्यापार करते हैं इस समय उन्हें ना तो समाज याद आता है ना ही कल्याण वासी जनता परंतु जैसे ही चुनावी दौर नजदीक आ जाती है वैसे ही यह व्यापारी खुद को समाज का ठेकेदार बताने के लिए अपने अपने बिलों से बाहर निकल आते हैं यह तरह-तरह के लुभावने कार्यक्रम कर यह बताते हैं कि वही सच्चे उत्तर भारतीयों के हितेषी है परंतु हकीकत में तो कुछ और ही होता है दरअसल वे इन कार्यक्रम के द्वारा खुद को पार्टी के आलाकमानो में श्रेष्ठ साबित करने में जुटे रहते हैं यह लोग उन्हें यह बताते हैं कि हमारे साथ इतने उत्तर भारतीय हैं आपको अगर चुनाव में जीत हासिल करनी हो तो आप हमारे साथ आइए परंतु वास्तविकता ऐसी नहीं होती है आज उत्तर भारतीय समाज के लोग इतने बुद्धिजीवी है कि वह इनकी चालों को बहुत ही अच्छी तरह से समझ गए हैं यह कितना भी जोर क्यों ना लगा ले परंतु उत्तर भारतीयों के दिल में अपनी जगह नहीं बना सकते हैं।

विदित हो कि कल्याण पूर्व शहर में उत्तर भारतीयों के आंकड़ों पर नजर डाला जाए तो इनकी संख्या सबसे अधिक है यह उत्तर भारतीय मतदाता जिस तरफ भी घूम जाए जीत उनकी सुनिश्चित हो जाती है इसके बावजूद भी आज तक कल्याण पूर्व में एक भी उत्तर भारतीय नेता बड़े पद पर(विधायक) चुन कर नहीं आया जिसका सबसे बड़ा कारण यही है कि जिन्हें समाज के लोग आगे करते हैं वही इनके साथ धोखेबाजी करते हैं (केकड़ा नीति) और समय बीत जाने के बाद या चुनाव जीत जाने के बाद वह अपने ही समाज के लोगों से मुंह मोड़ लेते हैं जिसका नतीजा अब यह हो गया है कि उत्तर भारतीय समाज ने उत्तर भारतीयों के ठेकेदारों से अपना मुंह मोड़ लिया है।

इस कार्यक्रम के आयोजन कर्ताओं का कहना है कि कार्यक्रम अपने समाज का है पर अपना समाज उन्हें कितना अपनाता है यह तो कार्यक्रम के समापन के बाद ही पता चल पाएगा।

ऐसी आशा है कि पानी के बुलबुले के माफिक उतराती अन्य नई संस्थाएं भी चुनावी माहौल में जोर आजमाइश के लिए सामने आएगी लेकिन समाज बंधुओं से विशेष आग्रह यह है कि ऐसे लोगों के बहकावे में न आएं तथा ऐसे लोगों को उत्साहित भी न करें अन्यथा आप के हिस्से की रोटी खाकर भी यह भूखे ही रहेंगे।

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