आसमान से बरस रही आग, घरों से लगायत रोड तक भागम भाग

वाराणसी ।। आधा जून बीतने को है और मानसून भी अभी आया नहीं है। अभी भी धरती पर आसमान से आग के शोले बरस रहें हैं। सुलगती जमीन ने जन-जीवन को झुलसा दिया है। कहीं विकास के नाम पर तो कहीं जंगल माफियाओं के साये में हरे पेड़ों की कटाई लगातार जारी है। वन विभाग और पुलिस वालों ने निजी स्वार्थ के कारण पेड़ों की कटाई की ओर ध्यान देना बंद कर दिया है। वृक्षारोपण में जागरूकता की कमी कारण तलाशने पर भी सड़क पर राहगीरों को छांव नसीब नहीं हो पा रही। देर शाम तक गर्मी पीछा नहीं छोड़ रही है। प्रतिदिन तापमान की बढ़ोतरी ही हो रही है। सूर्य देव सुबह होते ही तमतमाने लग रहे हैं। घर में भी प्रचंड गर्मी के आगे पंखे और कूलर दम तोड़ दे रहे हैं। राहगीरों को सड़कों पर पेड़ की छांव भी मयस्सर नहीं हो पा रही है। लू और तमतमाते धूप से बचने के लिए राहगीर और दुपहिया वाहन चालक मुंह और सिर पर कपड़ा बांधे दिखते हैं। रुककर ठंडी छांव में सांस लेने के लिए पेड़ो को ढूढना मानों आसमान से तारे तोड़ने के समान हो गया है।विकास या विनाश, हम किस ओर विकास कार्य के नाम पर सड़कों, मकानों, प्रतिष्ठानों और बड़ी-बड़ी इमारतों को बनाने के लिए हम लगातार पेड़ों को काटते जा रहें हैं। यही कारण है कि प्राकृतिक राहत प्रदान करने वाले पेड़ों के घनी छांव की कमी हमे महसूस हो रही है। विशेषकर सार्वजनिक स्थलों सहित मुख्य मार्गो पर पेड़ों का अभाव चिंता का विषय साबित हो रहा है। शहरी मोहल्लों से लेकर ग्रामीण अंचलों तक गर्मी से बेहाल लोग पेड़ों की छांव तलाश करते देखे जा रहे हैं।बावन बिघहवा से लेकर बलरामगंज तक अब एक भी पेड़ नहींबताते चलें कि चोलापूर इलाके से गुजरने वाली आजमगढ़ वाराणसी मार्ग जिसका तेजी से चौड़ीकरण किया जा रहा है, जिसपर कुछ ही दिनों में बड़ी बड़ी गाड़ियां सरपट दौड़ेंगी। उस मार्ग पर बावन बिघहवा से लेकर बलरामगंज तक अब एक भी पेड़ नहीं है, जहां कुछ देरी के लिए राहगीर राहत पा सकें।इसके लिए किसी एक को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। विकास के नाम पर हम लोगों को चौड़ी सड़कें, बड़े मकान और लुभावने काम्प्लेक्स की जरूरत है। हरे पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर रोकथाम लगाने की बजाए प्रशासन के चुनिंदा कर्मचारी सुविधा शुल्क लेकर उसे बढ़ावा दे रहे हैं। सरका वृक्षारोपड़ के नाम पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च तो जरूर करती है, लेकिन लापरवाही और रखरखाव के अभाव में एक चौथाई पौधे ही पनप पाते हैं।पुरनियों को याद आता है वह दिनसूरज के तमतमाते तेवर देखकर बुजुर्गकों वह वक्त याद आता है जब सभी छोटी बड़ी सभी सड़कों पर पेड़ों की एक श्रृंखला हुआ करती थी। लू के थपेड़ों और धूप से बचने के लिए राहगीर पेड़ों की छांव के नीचे शरण लेते थे। लेकिन अब ऐसा सोचना भी संभव नहीं दिख रहा है। पेड़ों के अभाव में धूप व तपिश का आलम यह है कि दोपहर बाद सड़कों पर पूरी तरह सन्नाटा पसर जा रहा है। इक्का-दुक्का दिखने वाले दोपहिया वाहनों पर सवार लोग सिर से पांव तक पूरी तरह अपने आपको ढ़के नजर आते हैं। कई लोग तो पेड़ों के समाप्त होने पर प्रशासन को कोस रहे हैं।मौसम को भी राहत देते हैं पेड़- डॉक्टर मणिकांत तिवारी चोलापुर सामुदायिक स्वास्थ केंद्र के चिकित्सक मणिकांत तिवारी का कहना है कि भीषण गर्मी में हमें पेड़ राहत देने के साथ-साथ मौसम के परिवर्तन में बड़ा योगदान हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण पेड़ों की जड़ों से पत्तियों तक पानी का होना होता है। पेड़ के आसपास नमी रहती है, इसलिए शीतल छाया मिलती है। पेड़ों में अनवरत प्रकाश संश्लेषण की वनस्पति प्रक्रिया चलती रहती है। इससे जहरीली गैसों को सोखने और प्राण वायु आक्सीजन फेंकने का काम निरंतर चलता है। जितना पुराना पेड़ होगा, उसकी उतनी ही गहरी जड़ें होती हैं। वह पेड़ उतना ज्यादा ही प्रकाश संश्लेषण करेगा। इस प्रक्रिया में कार्बन डाई ऑक्साइड को सोखने, आक्सीजन को बाहर फेंकने के साथ पेड़ों और उनकी पत्तियां से वाष्प बनकर उड़ती रहती है। जिस तरह पेड़ों से जहरीली गैसों को सोखने व आक्सीजन को बाहर फेंकने की प्रक्रिया नहीं दिखाई देती है उसी तरह से प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में पानी के वाष्प बनने की प्रक्रिया नहीं दिखती है। पेड़ों व अन्य जलीय श्रोतों से पानी वाष्प बनकर उड़ता भी नहीं दिखता है। वाष्प जो उड़कर जाती है, बदलों में जाकर मिल जाती है। तेज गर्मी पड़ती है तो समुद्र, नदी, झील का पानी सूर्य की तपिश से वाष्प बनकर उड़ जाता है। इसी वाष्पीकरण के चलते आसमान में बादल बनते हैं। उन बादलों में पेड़ों से वाष्प बनकर उड़ने वाला पानी भी मिल जाता है। इससे बादल भारी हो जाते हैं और बरस पड़ते हैं। इसीलिए जिस स्थान पर पेड़ ज्यादा होते हैं, वहां पानी ज्यादा बरसता है।लंबा जीवन चाहिए तो पेड़ लगाइए- डॉक्टर आर.बी. यादव स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सा अधीक्षक आर. बी. यादव ने बताया कि पृथ्वी पर मानव जीवन लंबे वक्त तक तभी चल सकता है, अगर हम वनों का संरक्षण करेंगे। अगर पेड़ों की कटाई यूं ही होती रही तो वह दिन दूर नहीं जब मानव जीवन दुश्वार हो जाएगा। पेड़ों की बेलगाम कटाई पृथ्वी पर विभिन्न जानवरों और पक्षियों के अस्तित्व को संकट में डाल रही है। पहले घर के बाहर व हर आंगन में पेड़ हुआ करते थे। जिससे लोग शुद्ध हवा में न सिर्फ सांस लेते थे बल्कि पेड़ की छांव में थोड़ी देर बैठने से जो सुकून मिलता था उसे बयान नहीं किया जा सकता। पेड़ों की उपेक्षा और पौधरोपण के प्रति उदासीनता के चलते हालात खराब हुए हैं।

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