महालया और सर्वपितृ अमावस्या के बाद नवरात्रि और दुर्गापूजा का पर्व

ननवरात्रि से ठीक एक दिन पहले की अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या और महालया अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है पौराणिक मान्यता के अनुसार महालया से दुर्गा पूजा प्रारम्भ होती है ।। धार्मिक मान्यताओ के इसी दिन मां दुर्गा का आगमन कैलाश पर्वत से धरती पर होता है । और अगले दस दिनो तक मां धरती पर रहती है । महालया के दिन मूर्तिकार मां दुर्गा की प्रतिमा मे आखो को तैयार करते है । और महालया के बाद ही मां दुर्गा की मूर्तियो को अंतिम रूप देकर पंडालो मे सजा दिया जाता है । पितृ पक्ष की अंतिम श्राद्ध तिथि यानी अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या को महालया पर्व मनाया जाता है । इस बार यह पर्व कल 28 सितंबर को था ।                                                                               

महालया का महत्व :- 

धार्मिक कथाओ के अनुसार ब्रम्हा, विष्णु और महेश ने अत्याचारी राक्षस महिषासुर का संहार करने के लिए मां दुर्गा का सृजन किया था ।महिषासुर को यह वरदान प्राप्त था कि कोई भी देवता या मनुष्य उसका बध नही कर पायेगा । इस वरदान के सहारे महिषासुर राक्षसो का राजा बन गया और उसने देवताओ पर आक्रमण कर दिया । वरदान की वजह से देवता उससे युद्ध मे हार गये ।और देवलोक यानी स्वर्ग पर महिषासुर का राज हो गया ।अपनी रक्षा करने के लिए सभी देवताओ ने  भगवान् विष्णु के साथ आदिशक्ति की अराधना प्रारंभ की ।देवताओ के तप करने से सभी देवताओ के शरीर मे से एक दिव्य रोशनी प्रकट हुई । जिसने देवी दुर्गा का रूप धारण कर लिया । अस्त्र-शस्त्रो से सुसज्जित मां दुर्गा ने महिषासुर से नौ दिनो तक भीषण युद्ध किया । और दसवें दिन उसका वध कर दिया । दरअसल महालया मां दुर्गा के धरती पर आगमन का प्रतीक है । मां दुर्गा को शक्ति की देवी माना जाता है । और नवरात्रि को नौ दिनो तक धरती पर रहकर अपने भक्तो पर कृपा बरसाती है ।

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