सामाजिक परिवर्तन ,तमिलनाडु मंदिरों में गैर ब्राह्मण पुजारी रखने का विरोध क्यों ? -प्रवक्ता राजेंद्र प्रसाद पटेल

वाराणसी ।। प्रवक्ता राजेंद्र प्रसाद पटेल ने कहा सामाजिक परिवर्तन के लिए  हमें डीएमके सरकार का समर्थन करना चाहिए l जिससे हमारा देश जात -बिरादरी से ऊपर हटकर के हो , हर जगह समानता का व्यवहार हो भारतीय जनता पार्टी  के नेताओं का मंदिरों में गैर ब्राम्हण पुजारी के विषय में विरोध देश की अखंडता पर सवालिया निशान खड़ा कर सकता है l

तमिलनाडु-मन्दिरों मे गैर ब्राह्मण पुजारी रखने का विरोध क्यों?

जब सभी हिन्दू हैं तो मंदिरों में कोई एक जाति पुजारी पद को सुशोभित क्यों करेगी?तमिलनाडु की डीएमके सरकार ने एक निर्णय लिया है कि वहां के कुछ मंदिरों में 100 दिन की ट्रेनिंग देकर 200 गैर ब्राह्मण पुजारी रखे जाएंगे।मुख्यमंत्री स्टैलिन जी की सरकार के इस फैसले पर तमिलनाडु भाजपा के नेता नारायण तिरुपति,के टी राघवन,ब्राह्मण पुजारी संघ के प्रतिनिधि एन श्रीनिवासन आदि ने आपत्ति जताई है।

वैसे तो ईश्वर को मैं सिर्फ मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे आदि में ही होना नहीं मानता हूं, वो सर्वव्यापक है। इसलिए कौन पुजारी होगा और कौन नही होगा,यह मेरे लिए महत्वपूर्ण नहीं है लेकिन सामाजिक परिवर्तन के लिए यह घटना अत्यंत महत्वपूर्ण है।मेरे या मेरे जैसे कुछेक लोगों के ऐसा सोचने से पूरा समाज नहीं बदल जायेगा ,इसलिए समाज को देखते हुये तमिलनाडु सरकार का यह प्रयत्न जातिवाद को तोड़ने में एक माइल स्टोन जरूर साबित होगा।

तमिलनाडु सरकार का यह कहना कि 200 गैर ब्राह्मण पुजारियों को 100 दिन की ट्रेनिंग दिलवाकर उन्हें मंदिरों का पुजारी नियुक्त कर दिया जाएगा तथा तमिल भाषा में पूजा-अर्चना करवाया जाएगा,एक अद्भुत व परिवर्तनकारी कदम है।आखिर जब सभी हिन्दू हैं तो फिर भगवान की अर्चना के लिए कोई गैर ब्राह्मण हिन्दू पुजारी क्यों नहीं हो सकता है?जब "कर्मणा जायते शूद्रः" ही यथार्थ है तो फिर कर्म से पुजारी हेतु ट्रेनिंग पाए लोग ब्राह्मण जैसे पुजारी का काम क्यों नही कर सकते या ब्राह्मण क्यों नही हो सकते?

कोर्ट के हस्तक्षेप के बावजूद सबरीमाला मंदिर में स्त्रियां नहीं जा सकती हैं,ऐसे में तमिलनाडु सरकार द्वारा दुनिया की कुल आबादी की पचास प्रतिशत भागीदार स्त्री वर्ग को पुजारिन बनाने का निर्णय भी अभूतपूर्व है।आखिर ये क्यों नही मंदिर में पूजा करने जा सकती हैं?आखिर ये क्यो पुजारिन नही बन सकती हैं? 

 एक महत्वपूर्ण सवाल उठता है कि दुर्गा,काली,लक्ष्मी,सरस्वती,वैष्णो,मैहर आदि देवियों का पुजारी पुरुष क्यों होगा?आखिर पुरुष पुजारी इनका श्रृंगार,वस्त्र धारण या भोग लगाने आदि का कार्य क्यों व कैसे कर सकता है?आखिर इन मंदिरों में महिला पुजारी क्यों नहीं हैं?

तमिलनाडु सरकार द्वारा अपने प्रदेश में मंदिरों में गैर ब्राह्मणों व महिलाओं को पुजारी बनाने का संदेश व संकेत पूरे देश मे सकारात्मक रूप में जायेगा और इससे जातिगत भेदभाव व लैंगिक विभेद पर चोट पंहुचेगी।

गैर ब्राह्मण व स्त्रियों के पुजारी बनने के साथ ही स्थानीय भाषा तमिल मे पूजन-अर्चन का निर्णय भी ऐतिहासिक है क्योंकि इससे लोग समझ सकेंगे कि पुजारी भगवान से उनके हित मे आराधना कर रहा है या उल्टा मनुष्य मारक मन्त्र पढ़ रहा है।

इस कांसेप्ट से असहमत होते हुये मैं ऐसा मानता हूं कि ऐसे परिवर्तनकारी कार्यक्रम समाज की रूढ़ियों को तोड़ते हैं ।पहले आवश्यक ठहरे हुये पानी मे लहर पैदा करना है फिर तो जब वह परिवर्तन की राह चल पड़ेगा तो रास्ते बनते जाएंगे।तमिलनाडु के मुख्यमंत्री व स्मृतिशेष करुणानिधि जी के सुपुत्र श्रद्धेय स्टैलिन जी की यह ऐतिहासिक पहल सामाजिक परिवर्तन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा,ऐसी मुझे उम्मीद है।

 महिलाओं व गैर ब्राह्मण पुजारियों की नियुक्ति जैसे परिवर्तनकारी निर्णयों का तमिलनाडु भाजपा नेताओं द्वारा विरोध दर्शाता है कि उनके लिए हिन्दू केवल कुछ लोग ही हैं बाकी तो दास व गुलाम हैं क्योंकि उनके लिए जातिगत श्रेष्ठता व निम्नता ही सर्बोपरि है क्योंकि उनकी नजर में जाति है कि जाती नही।

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