जब तक आप ही अपनी बेटी का महत्व नहीं समझेंगे तब तक किसी और को उनकी अहमियत समझाना नामुमकिन

दहेज़ "दहेज" शब्द से आज हर वो इंसान परिचित है जो इस समाज का हिस्सा है खास कर जिस घर में लड़की है आज जिस घर में लड़की पैदा हो जाती है उसके मां-बाप तो उसके जन्म के साथ ही दहेज के बारे में सोचने लगते हैं यूं तो दहेज़ "दहेज" माता पिता द्वारा दिया जाने वाला उपहार होता है लेकिन समाज ने आज इसे बहुत गलत ढंग से लेना शुरू कर दिया है।

दहेज प्रथा भारतीय समाज पर एक बहुत बड़ा कलंक है जिसके परिणामस्वरूप ना जाने कितने ही परिवार बर्बाद हो चुके हैं कितनी महिलाओं ने अपने प्राण गंवा दिए और कितनी ही अपने पति और ससुराल वालों की ज्यादती का शिकार हुई हैं।

सरकार ने दहेज प्रथा को रोकने और घरेलू हिंसा को समाप्त करने के लिए कई योजनाएं और कानून लागू किए हैं लेकिन फिर भी दहेज प्रथा को समाप्त कर पाना एक बेहद मुश्किल कार्य है इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि भले ही ऊपरी तौर पर इस कुप्रथा का कोई भी पक्षधर ना हो लेकिन अवसर मिलने पर लोग दहेज लेने से नहीं चूकते अभिभावक भी अपनी बेटी को दहेज देना बड़े गौरव की बात समझते हैं उनकी यह मानसिकता मिटा पाना लगभग असंभव है!दहेज प्रथा को जड़ से समाप्त करने के लिए समाज सुधारकों द्वारा किए गए महत्वपूर्ण और प्रभावपूर्ण प्रयत्नों के बावजूद इसने अत्यंत भयावह रूप धारण कर लिया है! इसका विकृत रूप मानव समाज को भीतर से खोखला कर रहा है वर्तमान हालातों के मद्देनजर यह केवल अभिभावकों और जन सामान्य पर निर्भर करता है कि व दहेज प्रथा के दुष्प्रभावों को समझें क्योंकि अगर एक के लिए यह अपनी प्रतिष्ठा की बात है तो दूसरे के लिए अपनी इज्जत बचाने की!इसे समाप्त करना पारिवारिक मसला नहीं बल्कि सामूहिक दायित्व बन चुका है! इसके लिए जरूरी है कि आवश्यक और प्रभावी बदलावों के साथ कदम उठाए जाएं और दहेज लेना और देना पूर्णत: प्रतिबंधित कर दिया जाए! अभिभावकों को चाहिए कि व अपनी बेटियों को इस काबिल बनाएं कि व शिक्षित बन स्वयं अपने हक के लिए आवाज बुलंद करना सीखें अपने अधिकारों के विषय में जानें उनकी उपयोगिता समझें क्योंकि जब तक आप ही अपनी बेटी का महत्व नहीं समझेंगे तब तक किसी और को उनकी अहमियत समझाना नामुमकिन है।

रिपोर्टर

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