मानव का चित्त बृत्ति का निरोध ही योग है
- सर्वेश यादव, ब्यूरो चीफ वाराणसी
- Jun 16, 2022
- 288 views
हरहुआ ।। डॉ0 डीआर विश्वकर्मा पूर्व डीडीओ सुल्तानपुर, सुंदरपुर वाराणसी ने 'योग' पर अपनी व्याख्यान में कहा कि - महर्षि पतंजलि के अनुसार-'चित्त बृत्ति का निरोध ही योग है' वहीँ व्यक्तिगत चेतना का सार्वभौमिक चेतना के साथ एकाकार हो जाना ही योग है। विज्ञान की भाषा मे यह आध्यात्मिक अनुशासन एवम अत्यंत सूक्ष्म विज्ञान पर आधारित ऐसा ज्ञान है जो मन और शरीर के बीच सामंजस्य स्थापित करता है। संस्कृत में योग का मतलब जोड़ने से लिया गया है परंतु ब्रह्म सम्प्राप्ति के साधकों के लिए योग का अर्थ एकीकरण है। आत्मा का परमात्मा के साथ एकाकार हो जाना है। आज सर्वत्र आतंक,चिंता, भय,चिंता, स्पर्धा और उत्तेजना का वातावरण विद्यमान है।व्यक्ति अनन्त सुखों का स्वामी होकर भी दुःख और तनाव के महासमर में डूबता जा रहा है।इससे छुटकारा दिलाने में योग का महत्व काफी बढ़ गया है। हमारे मन मे अनन्त शक्तियाँ विद्यमान है और इसे योग द्वारा जागृत कर हम असीम आनन्द,शक्ति एवम शांति की प्राप्ति कर सकते हैं। आज योग से स्वस्थ समाज की रचना भी सम्भव है।आइए हम सभी मिलकर जीवन मे योग को अपनाएं स्वयं स्वस्थ रहकर भारत देश को स्वस्थ बनाने का कार्य करें।
रिपोर्टर