रमजान रहमतों का ख़ास महीना
- रामजी गुप्ता, सहायक संपादक बिहार
- Apr 21, 2021
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सहरसा से शमसुल होदा की रिपोर्ट
सहरसा ।। रजमान-उल-मुबारका यह रहमतों वाला, बरकतों वाला महीना है, जिसमें अल्लाह ताला शैतान को कैद कर देता है, जिससे वह लोगों की इबादत में खलल न डाले। रमजान-उल-मुबारक में हर नेकी का सवाब 70 गुना कर दिया जाता है। हर नवाफिल का सवाब सुन्नतों के बराबर और हर सुन्नत का सवाब फर्ज के बराबर कर दिया जाता है। इस तरह सभी फर्ज का सवाब 70 गुना कर दिया जाता है। मतलब यह कि इस माहे-मुबारक में अल्लाह की रहमत खुलकर अपने बन्दों पर बरसती है।रमजान में ही पाक कुरआन शरीफ उतारा गया। हजरत मुहम्मद पेगंबर (सल्ल.) रमजान में अपनी इबादत बढ़ा दिया करते थे। हालाँकि अल्लाह के रसूल पैगंबर साहब बख्शे-बख्शाए थे, लेकिन वे दिन भर रोजा रखते और रात भर इबादत में गुजारते थे।
पूरे रमजान माह को 3 अशरों में बाँटा गया है। रमजान के पहले दस दिनों को पहला अशरा, दूसरे दस दिनों को दूसरा अशरा और आखिरी दस दिनों को तीसरा अशरा का जाता है। यानी पहले रोजे से 10वें रोजे तक पहला अशरा, 11वें रोजे से 20वें रोजे तक दूसरा अशरा और 21 वें रोजे से 30वें रोजे तक तीसरा अशरा।
पैगंबर साहब (सल्ल.) की एक हदीस है जिसका मफूम है कि रमजान का पहला अशरा रहमत वाला है, दूसरा अशरा अपने गुनाहों की माफी माँगने का है और तीसरा अशरा जहन्नम की आग से अल्लाह की पनाह चाहने वाला है। (मफूम)
रमजान के पहले अशरे में अल्लाह की रहमत के लिए ज्यादा से ज्यादा इबादत की जानी चाहिए। इसी तरह रमजान के दूसरे अशरे में अल्लाह से अपने गुनाहों की रो-रोकर माफी माँगनी चाहिए। रमजान की तीसरा अशरा जहन्नम की आग से अल्लाह की पनाह माँगने का है।
रमजान के महीने में ईंशा की नमाज के बाद मस्जिदों में 'तरावीह' होती है, जिसमें बीस रकात नमाज में इमाम साहब कुरान मजीद की तिलावत करते हैं। आर मुक़तदी सुनते हैं तरावीह हर मर्द औरत को पढ़ना चाहिए हमारे देश में औरतों में तरावीह का माहौल बहुत ही कम है हमें यह चाहिए कि इस खराबी को दुरु करने की कोशिश करनै रमजान रहमतों और बरकतों का महीना है हमें इस में खुब ऐबादत करनी चाहिए और बरकतों को हासिल करने में मशगूल रहना चाहिए।
इस महीने में शबे कद्र की तारीख भी आती है ऊस में हमे खुब ऐबादत करनी चाहिए रब से दुआ है कि वह अपनी रहमत से हम सब की गुनाहों को माफ़ कर दे।
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