102वां दीक्षांत समारोह मे डॉक्टर ऑफ फिलॉप्सी से नवाजे गए शिक्षाशास्त्र विषय में पीएचडी कर डरवन गांव का बढ़ाया मान उमेश गुप्ता ने

रामगढ़ ।। शिक्षा संकाय काशी हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा शनिवार को आयोजित 102वां दीक्षांत उपाधि वितरण समारोह मे उमेश गुप्ता को डॉक्टर ऑफ फिलॉप्सी से नवाजा गया।उमेश 'डॉक्टर ऑफ विलेज' नाम से कैमूर जिले मे मशहूर गांव डरवन के निवासी हैं।बता दें कि इन्होंने शिक्षा के परिदृश्य( माध्यमिक शिक्षा मे नामांकन के सामाजिक निर्धारक एवं अदृश्य लागत) विषय पर नायाब शोधकार्य किया है।गरीबी के दंश को झेलते हुए डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने तक इन्होंने जीवन के बहुत सारे उतार - चढ़ाव का सामना किये हैं। वहीं उपाधि धारण करने के बाद  डॉक्टर उमेश गुप्ता ने बताया कि मुझे काफी प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है कि शिक्षा संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) वाराणसी द्वारा आयोजित 102वें दीक्षांत समारोह में मुझे पीएचडी की डिग्री से नवाजा गया।यह उपलब्धि मात्र व्यक्तिगत प्रयास का परिणाम नहीं है, बल्कि प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से अनेक व्यक्तियों के सहयोग का प्रतिफल है।अतः उन भद्रजनों के प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करना मैं अपना पुनीत कर्तव्य मानता हूँ।मैं अपने शोध-पर्यवेक्षिका आदरणीया प्रोफेसर मधु कुशवाहा, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के समर्थन, मार्गदर्शन और निरंतर प्रयासों के लिए अपना आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने पूरे शोधकार्य के दौरान वह एक धैर्यवान श्रोता एवं त्वरित प्रतिउत्तर के साथ निःस्वार्थ भाव से पूर्ण सहयोग करने वाली मेरे प्रेरणा स्रोत रही हैं। साथ ही साथ शिक्षा संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के समस्त गुरुजनों का विशेष आभार व्यक्त करता हूँ, जिनका मार्गदर्शन ससमय मिलता रहा और आज उनके आशीर्वाद मैं यह डिग्री प्राप्त कर  कर पा रहा हूँ।आगे उन्होंने कहा कि मैं ग्रामीण परिवेश में रहते हुए ग्राम डरवन के राजकीय कृत मध्य विद्यालय से प्रारंभिक स्कूली शिक्षा एवं रामगढ़ उच्च विद्यालय से छात्रावास जीवन के साथ मैट्रिक की डिग्री प्राप्त करने के बाद बनारस जैसे शहर से उच्च शिक्षा (बीए, एमए, बीएड, एमएड, पीएचडी) हासिल करके काफी गौरवान्वित महसूस करता हूँ। मेरे स्कूली जीवन के सहपाठी एवं प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से जुड़े मेरे सभी शुभ चिंतको का सहयोग, समर्थन एवं आशीर्वाद रहा है कि मैं यह अकादमिक यात्रा सफलता पूर्वक पूर्ण कर पाया हूँ। मेरे कुछ सहपाठी इस अकादमिक यात्रा के साक्षी रहे हैं, जो इस यात्रा के मार्ग में आये कठिनाइयों एवं उतार-चढ़ाव को बखूबी जानते हैं।

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