डिजिटल हिमोग्लोबीनोमीटर से एक मिनट से भी कम समय में मालूम हो जाएगी खून में एचबी की मात्रा

 एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम अंतर्गत डिजिटल हीमोग्लोबिनोमीटर से एनीमिया जांच की विधि पर प्रशिक्षण 

- डिजिटल हिमोग्लोबीनोमीटर के लिए लैब टेक्नीशियन या लैब की जरूरत नहीं पड़ेगी

बक्सर ।। जिले में गर्भवती महिलाओं व 10 से 19 उम्र वर्ग के किशोर-किशोरियों को एनीमिया से मुक्त करने के उद्देश्य से एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस क्रम में शुक्रवार को जिला स्वास्थ्य समिति और सेंसा कोर के संयुक्त तत्वावधान में प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया गया। जिसमें एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम अंतर्गत डिजिटल हीमोग्लोबिनोमीटर से एनीमिया जांच की विधि की जानकारी दी गई। इस शिविर में जिला समुदायिक उत्प्रेरक, प्रखंड समुदायिक उत्प्रेरक, आरबीएसके के जिला समन्वयक, प्रखंड स्तरीय चिकित्सक और एएनएम शामिल हुई। ताकि, डिजिटल हीमोग्लोबिनोमीटर के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा किशोर-किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान करवाने वाली महिलाओं में हिमोग्लोबिन की जांच की जा सके। 

एनीमिया की जांच के लिए वर्तमान में कलर स्केल का किया जाता रहा है उपयोग :

प्रशिक्षण के दौरान सेंसा कोर की डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पूजा शर्मा ने बताया कि एनीमिया की शीघ्र और सटीक जांच के लिए स्ट्रिप आधारित डिजिटल हिमोग्लोबीनोमीटर मशीन से जांच की जाएगी। हिमोग्लोबिन या एनीमिया की जांच के लिए वर्तमान में कलर स्केल का उपयोग किया जाता रहा है। इस प्रक्रिया में समय अधिक लगने एवं बेहतर जांच परिणामों के लिए डिजिटल मशीन के द्वारा एचबी की जांच की जाएगी। डिजिटल हिमोग्लोबीनोमीटर के लिए लैब टेक्नीशियन या लैब की जरूरत नहीं पड़ेगी। मात्र एक बूंद खून से इस डिजिटल हिमोग्लोबीनोमीटर के माध्यम से 10 सेकंड के अंदर हीमोग्लोबिन का स्तर पता चल जाता है।  

टेस्ट, ट्रीट एंड टॉक पर काम करना है मुख्य उद्देश्य :

पूजा शर्मा ने बताया कि डिजिटल हिमोग्लोबीनोमीटर मशीन से जांच का मुख्य उद्देश्य टी3 पर काम करना है। जिसका मतलब टेस्ट, ट्रीट एंड टॉक। टेस्ट मतलब एनीमिया की जांच, ट्रीट मतलब अगर इसमें कोई कमी पाई जाती हो तो इसका ऑन स्पॉट इलाज करना और टॉक मतलब इसके बारे में काउंसलिंग करना और व्यवहार में बदलाव को लेकर बातचीत करना। उन्होंने बताया कि छह माह से 59 माह के बच्चों में सात ग्राम से कम एचबी होने पर, जबकि पांच साल से 14 साल के बच्चों में आठ ग्राम से कम एवं गर्भवती महिलाओं में सात ग्राम से कम खून होने पर गंभीर एनीमिया होता है। ऐसे गंभीर लोगों की सही समय पर पहचान कर उनका चिकित्सकीय प्रबंधन करना आवश्यक होता है।

सही समय पर एनीमिया की पहचान कर मृत्यु के संभावित कारण को किया जा सकता है कम :

शिविर में जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. राज किशोर सिंह ने बताया कि मातृ मृत्यु का एक प्रमुख कारण एनीमिया होता है, जिसे सही समय पर पहचान कर मृत्यु के संभावित कारण को कम किया जा सकता है। गर्भावस्था के दौरान खून की कमी को दूर करने के लिए आईएफए गोली का सेवन करवाया जाता है। गर्भवती महिलाओं में खून की अत्यधिक कमी होने पर आयरन सुक्रोज का डोज लगाने की आवश्यकता भी होती है। इस डिजिटल मशीन का उपयोग दस्तक अभियान के दौरान पांच साल से छोटे बच्चों में एनीमिया का स्तर जांचने के लिए भी किया जायेगा। डिजिटल हिमोग्लोबीनोमीटर की आपूर्ति उप स्वास्थ्य केंद्र स्तर तक एएनएम एवं कम्युनिटी हेल्थ ऑफीसर को की गई है। साथ ही कर्मचारियों को इसके इस्तेमाल का प्रशिक्षण भी प्रदान किया जा रहा है। जो एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम के उद्देश्य को पूरा करेगा।

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