मोबाइल संस्कृति अभिशप्त या वरदान


ब्यूरो चीफ सुनील कुमार

रोहतास--जब पूरी दुनिया हो मुट्ठी में तो समय की किसे परवाह!जी हां जब आप मोबाइल खोलते हैं तो पुरी दुनिया आपकी मुट्ठी में हो जाती है। दुनिया का हर समाचार को पढ सुन एवं देख सकते हैं। जिसके देखने के चलते बच्चे, किशोर,जवान एवं बुड्ढों की आंखों का हो रहा है बुरा हाल। इस संबंध में काशी काव्य संगम रोहतास जिला संयोजक कवि सह साहित्यकार सुनील कुमार रोहतास किशुनपुरा गांव निवासी ने बताए कि आधुनिक जीवन में जन सामान्य से लेकर क्या खास और क्या आम लोगों के मन- मष्तिष्क पर मोबाइल संस्कृति का ऐसा कुप्रभाव पड़ा है कि वह दिन-रात मोबाइल को अपने हाथ में लिए अपने साथ रखकर ही सांसें ले रहा है। जिसके अभाव में लगता है कि वह अब जिंदा नहीं रह पायेगा। चूंकि मोबाइल के आगे ना तो वह घर में आने-जाने वाले को देख रहा है ना उनके पास बैठ रहा है और यहां तक कि पति-पत्नी को भी अब मोबाइल के आगे एक दूसरे की कोई परवाह नहीं रही है। सारा सुख वो मोबाइल से ही प्राप्त कर रहे हैं और तो और जो मोबाइल पर संस्कृति परोसी जा रही उस संस्कृति को हर कोई अपने जीवन में उतारने की व उसके जैसे बनने की पूरी कोशिश कर रहा है। जिससे ना तो कोई अपनी वास्तविक जिंदगी जी पा रहा है और ना ही कोई दिखावट की जिंदगी जी पा रहा है। यानि पूरी तरह से एक विचलित जिंदगी' जिसमें ना तो अब उसके सोने का समय निश्चित है और ना जागने का, ना खाने का समय निश्चित है ना नहाने का, सिर्फ जंक फूड के साथ सोफ्ट ड्रिंक पीकर फिर चाहे उसके लिए आधी रात ही क्यूं ना हो जिससे वह खुद को तृप्त करने व दूसरों से अलग समझने की पूरी कोशिश कर रहा है। जिसका प्रभाव उसके शारीरिक व मानसिक जीवन पर पूरी तरह पड़ रहा है। जो आगे चलकर इसके बड़े घातक दुष्परिणाम निकट भविष्य में देखने को निश्चित रूप से मिलेंगे। जिसके लिए सिर्फ थोड़ा और इंतजार कीजिए चूंकि ये मोबाइल संस्कृति नहीं बल्कि एक अभिशप्त वरदान है। जो छोटे छोटे बच्चों तक को अपने गिरफ्त में ले चुका है। अगर मोबाइल पर गेम खेलने को दिया जा रहा है। तो वह दुध पी रहा है। उससे कुछ बड़े बच्चों को भी स्कूल से आते ही मम्मी पापा की मोबाइल देखने को मिलना चाहिए। वरना वह बच्चे को रूष्ट होने में देर नहीं लग रही है। साथ ही आधुनिक जीवनशैली में आनलाइन क्लासेज के चक्कर में छोटे बच्चों को भी मोबाइल अपने गिरफ्त में लेकर स्वच्छंदता को नष्ट-भ्रष्ट कर रहा है। छोटे बच्चों के लिए मोबाइल का प्रयोग अभिशाप से कम नहीं है। मोबाइल के अधिकाधिक प्रयोग से अप संस्कृति का विकास हो रहा है। मोबाइल से हर काम होने के चक्कर में बिल्कुल लोगों का दिन रात का एहसास खत्म हो चुका है। आगे कवि सुनील कुमार रोहतास बताते हैं कि मोबाइल पकड़ते घंटों इससे जुड़े रहने के कारण लोगों की बहुत आवश्यकता वाले कार्यक्रमों की क्षति हो रही है। अब बहुत जल्द ही मोबाइल पर कार्यरत लोगों को छोड़ने के लिए कार्यक्रम चलाया जाएगा। जिससे बढती दूरी को पटा जा सके। मोबाइल के इस्तेमाल से निजी रिश्तों में दूरियां बढ़ रही है। घरों में मोबाइल के प्रयोग के समय बूढ़े मां-बाप की बात को अनसुनी कर मोबाइल में लोग बच्चे जवान को लगे हुए देखा जा रहा है। मोबाइल संस्कृति आनलाइन कार्य को करने में सहयोग कर वरदान साबित हो रहा है। वहीं इस मोबाइल से समय की बर्बादी को लेकर अभिशप्त हैं। जिससे छुटकारा पाना मुश्किल लग रहा है।आज की युवा पीढ़ी के साथ सभी लोग मोबाइल के दिवाने बन चुके है। मोबाइल गर्मी के मौसम में बहुत जल्द गर्म हो रहा है। जिससे चार्ज के समय मोबाइल फटने की घटनाएं में भी वृद्धि हो रही है।

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