अस्सीवें बलिदान दिवस पर याद किए गए 'भारत छोड़ो आंदोलन' के ग्यारह शहीद

अपने शहीदों की शहादत कभी नही भूलना चाहिए और उनके सपनो को पूरा करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए :समाजसेवी नितेश सिंह उर्फ़ महाराज 

 ब्यूरो चीफ अंकित कुमार उर्फ आकाश साहू की रिपोर्ट 

शिवहर- भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान प्राण न्यौछावर करने वाले ग्यारह धरती पुत्रों की अस्सीवीं शहीदी दिवस पर आज उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। उनके सम्मान में राष्ट्रध्वज-आरोहण भी संपन्न हुआ।30 अगस्त 1942 की शाम 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नारा बुलंद करने वाले अपनी माटी के 10 लाल: जयमंगल सिंह, सुखदेव सिंह, भूपन सिंह, नवजद सिंह, सुंदर राम, वंशी दास, छठू महतो, परसन साह, बूधन महतो और बालदेव महतो अंग्रेजी फौज की गोलियों से धराशाई हो गए थे।


अपनी माटी भारत छोड़ो आन्दोलन का केंद्र रही। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर स्वदेशी व असहयोग आंदोलन की सफलता से स्वाधीनता आंदोलन निर्णायक रफ्तार पा चुकी थी। द्वितीय विश्व युद्ध के चलते समूचा योरोप और अमेरिका परेशान था। भीतर तक हिल चुका अंग्रेजी निज़ाम क्रूरता पर उतर आया था। 


रामवरण सिंह की अगुवाई में तरियानी छपरा समेत आसपास के क्रांतिवीरों ने बेलसंड थाना और रजिस्ट्री ऑफिस पर तिरंगा फहरा दिया था। आंदोलनकारियों की तलाशी के बहाने उनका मकसद दहशत पैदा करना था, क्षेत्र में आंदोलन को दबाना था।


सांझ-बेला थी। हाट सजी थी। लोग सौदा बेच-कीन रहे थे। मालूम था अंग्रेजी फौज आने वाली है। इसलिए गांव समेत आसपास के हजारों लोग गांव बागमती किनारे जमा थे। आसमान में बस गूंज रहा था, "अंग्रेजों भारत छोड़ो! भारत माता की जय!"बख्तरबंद गाड़ियों में भरकर आयी अँग्रेजी पलटन। तीन तरफ से घेरा बनाकर बरसाने लगी गोलियां। अफ़रा-तफ़री मच गई। निहत्थे मुरेठाधारियों के पास हौसला और स्वराज प्रेम था। वे डटे रहे। उन्होंने मुकाबला किया। वे पीछे नहीं मुड़े। उन्होंने तिरंगा ऊंचा उठाये रखा। 


गाँव व आस-पड़ोस में हाहाकार मच गया था। औरतें चीख-पुकार मचा रही थीं। मवेशी भी सहम गये थे। हफ्ते भर से ज़्यादा कैंप रहा बर्तानवी फौज का तरियानी छपरा में। 30 अगस्त की शहादत का ये असर हुआ कि पूरे तिरहुत में आंदोलन तीव्र हो गया।जिस स्थल पर अपने दस पुरखे बलिदान हुए, सैंतीस जख्मी हुए वह स्थल आज देश-दुनिया के मानचित्र पर एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ है। बलिदान की ऐसी मिसाल इक्के-दुक्के ही हैं देश में।अपनी ग्यारह बलिदानों की माटी है। श्यामनंदन सिंह ने बक्सर सेंट्रल जेल में अनशन करते हुए बत्तीसवें दिन प्राण त्याग दिया था। जिनके परिजनों से दान में मिली उस महानभूमि पर ग्राम वासियों ने अपने शहीद पुरखों के सम्मान में एक स्मारक खड़ा किया है। देश की आजादी में प्राणों की आहूति देने वाले अपनी माटी के ग्यारह नायकों की शहादत की वर्षगांठ पर प्रति वर्ष भारत का राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है। आज भी वीर स्वराजियों के अस्सी वें बलिदान दिवस पर झंडोत्तोलन हुआ। प्रशासन व पुलिस के जिला प्रमुखों, नवनिर्वाचित विधान पार्षद, विभिन्न पंचायतों के निर्वाचित प्रतिनिधियों समेत प्रखंड, अंचल व अनुमंडल प्रमुखों एवं स्थानीय नागरिकों की ओर शहीदों को श्रद्धासुमन अर्पित किए गये। जनप्रतिनिधियों ने शहीदों के सम्मान में विचार भी व्यक्त किए।


तरियानी छपरा के मुखिया प्रतिनिधि नितेश सिंह उर्फ महाराज ने कहा कि तरियानी छपरा जलियांवाला बाग के बाद दूसरा सबसे बरा शहीद स्थल है,जहा एक जगह पर इतने शहीद हुए। हमें अपने शहीदों की शहादत को कभी नहीं भूलना चाहिए और उनके सपनों को पूरा करने के लिए हमें मिलकर काम करना चाहिए।

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