संगम पर चलता है इनका साम्राज्य

प्रयागराज के पंडों ने राम की पूजा नहीं करवाई थी; नाम नहीं, झंडा इनका ट्रेडमार्क

रावण वध के बाद भगवान राम पर ब्रह्म हत्या का दोष लगा। इसलिए वह तीर्थराज प्रयागराज में संगम किनारे पूजा कराने आए, लेकिन यहां के पंडों ने मना कर दिया। फिर राम को अयोध्या से पुरोहित बुलाने पड़े, तब जाकर पूजा हो सकी।

यह कहानी है प्रयागराज के पंडों यानी तीर्थ पुरोहितों की। प्रयागराज में बड़े हनुमानजी मंदिर की तरफ से संगम क्षेत्र की ओर बढ़ने पर दोनों पटरियों पर तीर्थ पुरोहित दिखेंगे। यह सिर्फ कुंभ या महाकुंभ में ही नहीं, बल्कि हर महीने 24 घंटे यहीं पर मिल जाएंगे। यह पूर्वजों के पिंडदान, अस्थि विसर्जन, श्राद्ध के अलावा अन्य धार्मिक कामों को कराते हैं।

पंडे हजारों की संख्या में संगम क्षेत्र में मौजूद हैं। इनकी पहचान इनके नाम से नहीं होती है, बल्कि इनके झंडों के निशान से होती है। इन्हीं झंडों के निशान को ध्यान में रखकर यहां 5-7 पीढ़ियों से लोग आ रहे हैं।

सदियों से चले आ रहे झंडों के निशान अब इनके ट्रेडमार्क हो चुके हैं। हाथी वाले पंडे, डमरू वाले, पेटारी वाले, चांदी के कटोरे वाले पंडे जैसे इनके निशान होते हैं।

पंडे अपने निशान लंबे बांस पर लटका देते हैं। जैसे, पेटारी वाले पंडो ने अपने शिविर के बाहर बांस पर ऊपर पेटारी लटका रखा है। इसी तरह डमरू वाले पंडे डमरू को लटकाते हैं।

बाकी झंडों पर भी वही निशान प्रिंटेड रहता है जो हमेशा ऊपर फहरता रहता है और करीब एक किलोमीटर दूर से ही दिख जाता है।

रिपोर्टर

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