
कुछ अखबार और चैनल के मालिकों के द्वारा किया जाता है कलमकारों का शोषण, तो कुछ कलम का सिपाही बेबस लाचार हो बिकने को हो जाते हैं मजबूर
- कुमार चन्द्र भुषण तिवारी, ब्यूरो चीफ कैमूर
- Jan 06, 2025
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भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों की वजह से मिडिया बना दलालों की अड्डा तो पत्रकारिता के नाम पर दलालों की फौज सक्रिय
संवाददाता श्याम सुंदर पांडेय की लेखनी से
दुर्गावती(कैमूर)- सरकार के द्वारा साधारण मजदूरों का तो न्यूनतम मजदूरी तय कर दिया गया, लेकिन लोकतंत्र के चौथा स्तंभ को इस कानून से दूर रखा गया।जिसका परिणाम है कि अखबार और चैनल के मालिकों के द्वारा किसी को भी बिना कारण बताएं जब चाहे तब निष्कासित कर दिया जाता है। न उनका कोई तनख्वाह निर्धारित है न ही क्षतिपूर्ति तो और सरकार के पास भी पत्रकारों का कोई लेखा-जोखा नहीं है। कड़ाके की धूप कड़ाके की सर्द व बरसती फुहारों में गांव की तंग गलियां घने जंगल कठोर पहाड़ के रास्ते अपराधियों के समक्ष खतरों के बीच खेलकर समाचार संकलन करता है, फिर भी कलम के सच्चे सिपाही वद् से बद्तर जिंदगी जीने को मजबूर है,न सुरक्षा न कोई तनख्वाह। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में कार्यरत क्षेत्रीय और निचले तपके का पत्रकार जिसकी खबर पर मिडिया संस्थानों के संस्थापक संपादक, और राजनेता मंत्री पीठ थपथपाते हैं फिर फिर भी पत्रकार फटेहाल होते हैं।अक्सर यह देखा जाता है की सरकारी योजनाओं के कार्यकर्ता, जनप्रतिनिधि, शराब माफिया, भू माफिया, या अन्य अवैध धंधों में लिप्त लोगों के द्वारा उच्च पदाधिकारीयों से मिली भगत कर अपना कार्य किया जाता है, जिससे कि स्थानीय लोग परेशान भी रहते हैं, यदि किसी तरह से किसी ईमानदार कलम के सिपाही तक बातें पहुंचता है, तो कलम के सिपाही द्वारा उच्च अधिकारियों से संपर्क कर मामले को संज्ञान में दिया जाता है। साथ ही मिडिया के माध्यम से सच्चाइयों को दिखाने का कार्य किया जाता है। पर अक्सर देखा गया है कि उच्च अधिकारियों द्वारा गोपनीयता को भंग कर अपराधियों के समक्ष गोपनीयता को छिन्न-भिन्न कर दिया जाता है, क्योंकि चोर चोर मौसेरे भाई वाली कहावत यहां चरितार्थ होती है। परिणामस्वरूप कलम का सिपाही कठिनाइयों के घेरे में आ जाता है। अंततः कुछ समाचार संस्थानों के संस्थापकों द्वारा भी कुछ ले देकर उस कलम के सिपाही को ही निष्कासित कर दिया जाता है और उनके जगह में अधिक विज्ञापन देने वाले किसी दलाल को नियुक्त कर दिया जाता है, जिससे कि देखा जाए तो पत्रकारिता के नाम पर 90% भू-माफिया, दारू माफिया, बालू माफिया व उनके दलालों की फौज खड़ी है। जिनके द्वारा निचले तबके से उच्च पदाधिकारीयों तक का महिमा मंडन किया जाता है। और निचले तबके के कर्मियों से उच्च पदाधिकारीयों द्वारा भी दलाल मीडिया कर्मियों का गुणगान किया जाता है। पत्रकारिता मुफ्त का काम है यह एक समाज सेवा है तो अखबार के संपादक एडिटर और जिला स्तर के कुछ पत्रकारों को तनख्वाह क्यों उनको सेवा के दायरे से दूर क्यों रखा गया। राजनीति भी सेवा थी फिर इसे नौकरी वाला पेशा बनाकर तनख्वाह और पेंशन क्यों लिया जाता है।अगर पत्रकारिता करना है तो दलाली से दूर रहना होगा इसको भी कसौटी पर कसकर दिखाता है पत्रकार। अखबार को एक दूसरे से जुड़ने का माध्यम मान लिया है पत्रकार।अपने मान और सम्मान के लिए करते हैं लोग पत्रकारिता अखबार के मालिक और चैनल के मालिकों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है, केवल लाइसेंस दे देती है सरकार। अखबार में काम करने वाला नीचे से लेकर ऊपर तक कितने हैं इसकी कोई जानकारी जिला पदाधिकारियों के पास नहीं है न सरकार के पास। अधिकांश मीडिया संस्थानों के द्वारा सत्य खबरों को दबा दिया जाता है अखबार का सौदा उसके मालिक और संपादक ऊपर से ही कर लेते हैं, पत्रकारों को सत्य खबर लिखने पर जो खतरा उत्पन्न होता है उसकी जिम्मेदारी कोई नहीं लेता। सच्चे पत्रकार झूठे केस में फंसा दिया जाता है, या तो मार दिया जाता है। लोकतंत्र की आड़ में बैठे राजतंत्र की तरह सत्ता चला रहे राजनेता भी अपना पल्ला झाड़ लेते है। आजाद भारत में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ शोषण का सबसे बड़ा अड्डा है जो उच्च अधिकारियों के माध्यम से अखबार और चैनलो के मलिक के द्वारा किया जाता है। वह तो विज्ञापनो से ऐस की जिंदगी जीते हैं। कितना किसको मिलता है तनख्वाह किसी को पता नहीं है मुफ्त का मजदूर है पत्रकार। अक्सर सरकारी संस्थाथानों मे जहां भ्रष्टाचार चरम सीमाा पर वहां पत्रकारिता की आड़ में दलालों की फौज खड़ी मिलेगी। यदि स्वतंत्र रूप से नियमानुसार कलम के सिपाही को अधिकार मिल जाए तो भ्रष्टाचार में लिप्त रहने वाले नेता अपराधी माफियाओं और अधिकारियों के नकाब से पर्दा उठा सकता हैं।
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