राज्य के कानूनों से जिलावासी बहुत है त्रस्त, तो भू-माफिया व अधिकारी बड़े हैं मस्त

भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी माफियाओं का करते हैं चरण चुंबन

कैमूर- जिला में राज्य के कानूनों से जिलावासी बहुत ही है त्रस्त, तो भू-माफिया व अधिकारी बड़े हैं मस्त। जी हां हम बात कर रहे हैं कैमूर जिला की जहां भूमि संबंधित कानूनों की वजह से भोली भाली जनता संबंधित अधिकारियों व कोर्ट के समक्ष चक्कर लगाते लगाते परेशान है, तो भू-माफिया व भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी बिहार सरकार की कानूनों की वजह से बड़े ही मस्त हैं। जिले की बात किया जाए तो सैकड़ो मामले ऐसे हैं जिनमें ग्रामीणों के साथ ही समाज सेवकों द्वारा भी कई वर्षों से चक्कर लगाया जा रहा है, पर अभी तक भूमाफियाओं पर कोई भी कार्यवाही दिखाई नहीं दिया। यह समझने की बात है कि जब नियमानुसार आनाबाद सर्वसाधारण की भूमि पर ग्रामीणों का अधिकार होता है, ग्रामीण निर्णय लेने को स्वतंत्र है, इतना ही नहीं यदि सरकार द्वारा जारी योजना भी उस धरातल पर उतारना है तो ग्रामीणों की सहमति जरूरी है वो भी नियमानुसार। तो फिर आनाबाद सर्वसाधारण की भूमियों पर किसी का कब्जा कैसे हो जाता है, क्या संबंधित पदाधिकारी निंद में सोये हुए हैं या माफियाओं के चरण चुंबन में मस्त हैं।

सरकार द्वारा जारी निर्देशों को पत्राचार के माध्यम से कराया जाता है प्रकाशित पर धरातल पर नगण्य है

जिला निवासी श्री हरि अवध सिंह, अर्जुन सिंह सहित सैंकड़ों जिला निवासियों का कहना है कि बिहार सरकार द्वारा जारी निर्देशों को संबंधित अधिकारियों द्वारा पत्राचार के माध्यम से जोर-शोर से प्रकाशित कराया जाता है, पर उसका अनुपालन करने में भूमि से संबंधित जिला के अधिकांश अधिकारी नगण्य है। इनके द्वारा सिर्फ टालमटोल कर मामले को अधिक से अधिक दिनों तक लंबित रखा जाता है। यदि सच कहा जाए तो भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग सिर्फ भूमाफियाओं के हाथ की कठपुतली है।


आर्थिक रूप से कमजोर पर कार्यवाही कर अधिकारी थपथपाते है पीठ

यदि सच कहा जाए तो आर्थिक रूप से कमजोर लोगों पर बिहार सरकार के नियमों का पालन कर संबंधित पदाधिकारीयों द्वारा पीठ थपथपाया है, पर पूंजी पतियों का चरण चुंबन कर उन्हें सुविधा प्रदान किया जाता है। अन्यथा किसी भी लोक भूमि या सरकारी भूमियों पर इतने समयों तक मामला लंबित क्यों रखा जाता है।

बिहार लोक भूमि अतिक्रमण अधिनियम 1956 का उड़ाया जा रहा धज्जियां

जबकि संबंधित पदाधिकारी को स्वत: संज्ञान लेते हुए ऐसे अतिक्रमणकारियों या भू-माफियाओं से भूमि को अतिक्रमण मुक्त कराना आवश्यक है, और इसके लिए बिहार लोक भूमि अतिक्रमण अधिनियम, 1956 के तहत पर्याप्त प्रभावकारी सारांश प्रक्रिया स्थापित है। उक्त अधिनियम के तहत सक्षम प्राधिकारी को पूछताछ करने और न्यायनिर्णयन करने और फिर बेदखली का आदेश देने का अधिकार है, पर अधिकांश मामलों में ग्रामीण व समाज सेवकों द्वारा मामला संबंधित पदाधिकारी के यहां संज्ञान में देने के बावजूद भी टालमटोल किया जाता है। जिसका परिणाम है कि अधिकांश लोकभूमि व सरकारी भूमियों पर भू- माफियाओं द्वारा कब्जा निरंतर जारी है। किसी अंचलाधिकारी या किसी दलाल के द्वारा जारी की गई रसीद की मान्यता क्या है? अधिकारी के रूप में पद पर विराजमान भ्रष्टाचारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर सजा मिलना चाहिए। पर उच्च पदाधिकारीयों द्वारा भी मामले को लंबा खिंचा जाता है। और जब आवेदक ध्यान नहीं देते हैं तो कुछ ले देकर मामले को ही रफा-दफा कर दिया जाता है।

                शर्म आना चाहिए कानून के रखवालों को

यह पहला देश है जहां की लूटेरा कोर्ट में खड़ा होकर खुद से कहता है और अपने साथ ले गये लोगों से भी साबित कराता है कि इस वस्तु को हम इतने दिनों से लूट कर रखे है,और मांग करता है की इसलिए हमें दिया जाए। फिर भी उसे और समय दिया जाता है, क्या यह खिलवाड़ नहीं है? नियमानुसार भूमि की पुरी डीटेल्स देखकर तत्काल भू-माफिया अतिक्रमणकारियों समेत संबंधित अधिकारियों व कर्मियों को भी सजा मिलना चाहिए। पर न्यायाधीशों द्वारा भी जानबूझकर अधिक से अधिक समय देकर माफियाओं व भ्रष्टाचारियों को फायदा पहुंचाया जाता है।

रिपोर्टर

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