
4 बच्चों की मां की चिता से 5 किलो अधजला शव बरामद
- सुनील कुमार, जिला ब्यूरो चीफ रोहतास
- Jun 16, 2025
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जब चिता बुझाई गई, तो सुलगता सच सामने आया रोहतास।बिहार के सासाराम अनुमंडल के कुड़ी गांव में एक अधजली चिता से उठता धुआं, सिर्फ लकड़ी की राख नहीं था। वह एक स्त्री के जीवन की आखिरी परतें थीं—जिन्हें चुपचाप ढक देने की कोशिश की जा रही थी। लेकिन, वह धुआं झूठ को पूरी तरह नहीं ढक सका। 35 वर्षीय सुशीला देवी, चार बच्चों की मां, उस समाज का चेहरा थीं जहाँ स्त्री की पीड़ा अब भी घरेलू दीवारों के भीतर सिसकती है।
घटना नोखा थाना क्षेत्र के अंतर्गत सिसरीत ओपी के कुड़ी गांव की है। जब पुलिस को सूचना मिली कि महिला की संदिग्ध हालात में मौत के बाद जल्दबाजी में अंतिम संस्कार किया जा रहा है, वे तुरंत मौके पर पहुंचे।
पुलिसकर्मियों ने जलती हुई चिता को रोका और लगभग 4 से 5 किलो अधजले अवशेष को कब्जे में लिया। यह कार्रवाई न केवल एक संभावित अपराध को उजागर करने की कोशिश थी, बल्कि उस चुप्पी के खिलाफ भी थी जो अक्सर "घर का मामला" समझकर छोड़ दी जाती है।
गांव के कुछ लोगों का कहना है कि सुशीला ने फांसी लगाकर जान दी, लेकिन मायके पक्ष इससे इत्तेफाक नहीं रखता। मृतका के भाई ज्ञानी चौधरी के अनुसार, उनकी बहन को लंबे समय से ससुराल में प्रताड़ित किया जा रहा था। “जब हम पहुंचे, तो वो लोग बिना किसी को बताए दाह संस्कार कर रहे थे। हमें शक हुआ और पुलिस को सूचना दी।” ज्ञानी चौधरी, भाई पुलिस की शुरुआती जांच में पता चला कि मृतका का अपनी देवरानी से किसी बात पर विवाद हुआ था। यह पारिवारिक तनाव सुशीला की मानसिक स्थिति को प्रभावित कर रहा था।
जिस वक्त पुलिस गांव में थी, सुशीला के ससुराल पक्ष के सभी सदस्य फरार पाए गए। बच्चे—तीन बेटियाँ और एक बेटा—घर के एक कोने में सहमे हुए थे। माँ के बिना उनकी दुनिया अचानक ठहर गई है। सुशीला की 10 साल की बेटी की आंखों में जो सवाल थे, उनके जवाब शायद अब अदालत की फाइलों में खोजे जाएंगे।
सासाराम सदर अस्पताल में मेडिकल बोर्ड गठित हुआ और अवशेष की गंभीरता को देखते हुए उसे पटना स्थित पीएमसीएच भेजने का निर्णय लिया गया। पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट ही अब इस मामले का रुख तय करेगी।
“हमने आवेदन प्राप्त कर लिया है। जांच गंभीरता से जारी है, दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।” विनोद सिंह, ओपी प्रभारी, सिसरीत।
सुशीला की मौत सिर्फ एक महिला की मृत्यु नहीं, बल्कि उस सामाजिक संरचना की नाकामी है जिसमें स्त्रियाँ अब भी पीड़ा सहती हैं, सवाल नहीं कर पातीं।
पुलिस की समय पर उपस्थिति और संवेदनशीलता ने मामले को नया मोड़ दे दिया।यदि पुलिस समय पर नहीं पहुंचती, तो क्या यह मृत्यु मात्र एक चुपचाप दफन हो जाने वाली कहानी बनकर रह जाती?
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