
संगीत मुर्दो में जान डाल देती है
- सुनील कुमार, जिला ब्यूरो चीफ रोहतास
- Jun 21, 2025
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रोहतास।संगीत एक ऐसी कला है जो मुर्दों मे जान डाल देता है संगीत से हर प्राणी का सम्बन्ध है इस कला मे इतनी क्षमता है कि पशु भी इस के अभिभूत हो जाते हैं।
इस संबंध में काशी काव्य संगम रोहतास के जिला संयोजक कवि सह साहित्यकार सुनील कुमार रोहतास ने किशुनपुरा गांव में विश्व संगीत दिवस के अवसर पर एक गीत सुनाने के बाद बताए कि संगीत का उद्भाव कब हुआ इस के बारे मे अलग अलग मत हैं की विद्वान इस कला की उत्पति देवकाल के साथ जोड़ते हैं भारतीय इतिहास मे संगीत को तीन कालों मे बांटा है प्राचीन काल, मध्यकाल और आधुनिक काल।
देवकाल में कहते हैं कि देवों के राजा इंद्र संगीत के रसिया थे इन के दरबार मे संगीत गायक गंधर्व थे और रंभा ,मेनका और उर्वशी जैसी अनेक नर्तकियां इंद्र के दरबार की शोभा थी वेदों और मंत्रो क उच्चारण मे संगीत का प्रयोग होता था शंख,सितार,वीणा,बाँसुरी डमरू संगीत के वाद्य यंत्र होते थे और पुरातन काल से इन का प्रयोग होता था जैसे भगवान विष्णु का वाद्य यंत्र शंख था शिव भगवान का वाद्य यंत्र डमरू था कृष्ण भगवान का प्रिय वाद्य बांसुरी थी देवी सरस्वती का प्रिय वाद्य वीणा थी
बाल्मीकि रामायण के अनुसार देवर्षि नारद और लंकापति रावण मर्मज्ञ संगीतज्ञ थे गंधर्व गायकी का प्रचलन सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग मे भी था इसी काल मे स्वरों की उत्पत्ति हुई सा रे गा मा पा धा नि सरगम के ही भाग हैं स का अर्थ है स्वर जो कि अग्निदेव से सम्बन्धित है रे का अर्थ ऋषभ ब्रह्मा है ,ग का अर्थ गांधार देवी सरस्वती से सम्बन्धित है म का अर्थ मध्यम भगवान शिव से संबंधित पा का अर्थ पंचम भगवान विष्णु से संबंधित है धा का अर्थ धेवत गणेश भगवान से संबंधित है नि का अर्थ निषाद सुर्य भगवान से संबंधित है इस के पश्चात बौद्ध काल, मौर्य काल मे भी संगीत लोकप्रिय थे महाराजा अशोक, महाराज अजातशत्रु भी संगीत प्रेमी थे ।
मध्य काल मे संगीत कला का महत्वपूर्ण स्थान था 7वी सदी मे भक्ति संगीत का प्रचलन था जयदेव की गीत गोविंद शारंग देव की संगीत रत्नाकर संगीत के प्रमुख ग्रंथ हैं
9वी और 12वी सदी मे शास्त्रीय संगीत मे अभूतपूर्व सुधार हुआ 11 वी सदी मे मुस्लिम जो कि मध्य एशिया से भारत मे आए उन को संगीत से काफी लगाव था खिलजी के समय अमीर खुसरो संगीत के ज्ञाता थे कहा जाता है कि वो तबला और सितार के पुरोधा थे कब्बालियों और तराने का शास्त्रीय संगीत मे उपयोग किया
राजा मानसिंह जिन्होंने ग्वालियर मे शासन किया ग्वालियर घराने को जन्म दिया संगीत के प्रति इन के प्रेम को दर्शाता है इसी काल मे भक्ति संगीत चरम सीमा मे था कबीर, मीराबाई, नरसी, चैतन्य महाप्रभु और सूरदास ने संगीत को नया आयाम दिया
मुगल बादशाह अकबर संगीत प्रेमी था स्वामी हरिदास तानसेन, बैजूबावरा दरबार के संगीतज्ञ थे तानसेन संगीत के बेताज बादशाह थे उन्होने संगीत के उत्थान
मे अहम योगदान दिया राग दरबारी,सारंग मिया मल्हार राग दीपक के रचियता थे कहते हैं उन के गायन से दिए जल उठते थे पशु मस्त हो जाते थे और राग मल्हार से बारिश हो जाती थी जहांगीर भी संगीत प्रेमी थे बिलाश खान,प्रवेशद्वार और खुर्रम दाद उन के दरबार के संगीतज्ञ थे शाहजहाँ के समय भी संगीत को प्रोत्साहन मिला दिरांग खान,तान खान और बिलाल खान संगीत के रत्न थे मुगलों के समय संगीत का बहुत विकसित हुआ टप्पा, ख्याल मुगल शासन मे अविष्कृत हुए
आधुनिक काल 18 वी सदी मे अंग्रेजी शासन मे भारतीय संगीत का पतन आरंभ हो
गया,शास्त्रीय संगीत के प्रति बेरूखी और पश्चिमी संगीत के प्रति दीवानगी शास्त्रीय संगीत के पतन का कारण बनी
बीसवी सदी मे शास्त्रीय संगीत का पूर्णोदय हुआ पंडित विष्णु दिगम्बर और विष्णु नारायण भातखंडे ने शास्त्रीय संगीत को नया आयाम दिया इस काल मे बहुत संगीतकारों का उदय हुआ जिन्होने संगीत के प्रति समर्पित भाव से काम किया शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान, बड़े गुलाम अली खान सुप्रसिद्ध तबलावादक उस्ताद अल्लाहरखा , कामता प्रसाद सितार वादक पंडित रविशंकर, वायलिन वादक वी जी योग और शास्त्रीय गायक पंडित भीमसेन जोशी
इस परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं विख्यात संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा ,भजन सोपोरी, तबलावादक जाकिर हुसैन, बाँसुरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया प्रख्यात गायिका मालिनी अवस्थी भजन गायक अनूप जलोटा और गजल गायक पंकज उधास जिस तरह से भारत मे संगीत के नम्रता रुझान को देखकर मै आशा करता हूं कि भारत मे संगीत का भविष्य उज्जवल है
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