
सोया रहा सिस्टम : परंपरा लड़ रही है आखिरी दंगल
- सुनील कुमार, जिला ब्यूरो चीफ रोहतास
- Jul 30, 2025
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रोहतास।नागपंचमी पर ऐतिहासिक बजरंग अखाड़ा में जुटे देशभर के पहलवान, लेकिन अखाड़ा खुद लड़ रहा है अस्तित्व की लड़ाई
नागपंचमी के दिन जब देशभर में नाग देवता की पूजा हो रही थी, सासाराम के शेरशाह मकबरा के करीब स्थित ऐतिहासिक बजरंग अखाड़ा में पूजा चल रही थी — मिट्टी, पसीने और परंपरा की।
बजरंग अखाड़ा कमेटी छकोनवा द्वारा आयोजित सालाना दंगल में इस बार भी देश के अलग-अलग हिस्सों से नामी-गिरामी पहलवान उतरे। मिट्टी की महक, दर्शकों की तालियां और ताल ठोंकते पहलवानों के बीच, वह सब कुछ जीवित था जो कभी भारतीय ग्रामीण जीवन की शान हुआ करता था।
अखाड़ा बचा रहा परंपरा, पर खुद को नहीं
करपुरवा, भारतीगंज, बांध, लखनुसराय, नौगांईं, सिंगुही और लश्करीगंज जैसे मोहल्लों की सहभागिता ने यह स्पष्ट कर दिया कि परंपरा अभी मरी नहीं है। लेकिन चिंता की बात यह है कि जिस ज़मीन पर यह परंपरा सांस ले रही है, वह खुद संकट में है।
बजरंग अखाड़ा की हालत बद से बदतर हो चुकी है। बाउंड्रीवॉल न होने के कारण दिनभर यहाँ नशेड़ियों और असामाजिक तत्वों का जमावड़ा बना रहता है। कभी धार्मिक प्रतीकों का अपमान, कभी अखाड़े की मर्यादा के साथ खिलवाड़—ये घटनाएं सिर्फ अखाड़े को ही नहीं, समाज की धार्मिक-सांस्कृतिक चेतना को भी घायल कर रही हैं।
सोशल मीडिया की चिंगारी, प्रशासन की सूझबूझ
इसी महीने की शुरुआत में जब कुछ लोगों ने पर्व के मौका पर अखाड़े में गंदगी फैलाकर माहौल बिगाड़ने की कोशिश की, तो सोशल मीडिया पर तेजी से गुस्सा भड़का। गनीमत रही कि प्रशासन ने समय रहते सूझबूझ दिखाई और अखाड़ा पर नियंत्रण कक्ष बनाकर स्थिति को नियंत्रण में लिया। मगर यह कोई स्थायी समाधान नहीं।
अब सवाल उठता है — अखाड़ा बचेगा कैसे?
क्या यह वही देश है जिसने गामा पहलवान को जन्म दिया? क्या हम परंपरा को पोस्टर और इंस्टाग्राम स्टोरी तक ही सीमित रखना चाहते हैं? समय आ गया है कि स्थानीय जनप्रतिनिधि इस अखाड़े की घेराबंदी, शौचालय, शुद्ध पानी और प्रकाश जैसी बुनियादी सुविधाओं की ओर गंभीरता से ध्यान दें। क्योंकि यह केवल एक अखाड़ा नहीं, हमारे सामाजिक सौहार्द, विरासत और सम्मान का प्रतीक है।
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