स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जनता को ही होना पड़ेगा जागरूक

संवाददाता श्याम सुंदर पांडेय 

दुर्गावती(कैमूर) । आज के परिवेश में जिस तरह की राजनीति देश में शुरू हुई है उसके लिए सच पूछा जाए तो जानता ही जिम्मेवार है। अपनी जिम्मेवारियों को भूलकर जनता ऐसी उलझ गई है कि देश के हित की बात उसे दिखाई नहीं दे रहा है जिसका परिणाम है कि देश में नफरतें और जातिवाद का दौर दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहा है। आज  समाज में लोग एक दूसरे को नफरत की दृष्टि से देखते हैं क्या जनता यह नहीं जानती यह सब राजनेताओं की एक सोची समझी उपज है।  इस अंधभक्ति से देश और समाज कहां जाएगा और पुनः उसे हम मतदान करके जीता देते हैं इसके लिए जिम्मेवार क्या जनता को नहीं कहा जाए। जो नेता कभी मुंशी का काम किया करता है या कभी मूस मार के दवा बेचने का काम करता रहा हो और आज करोड़ों का मालिक बन बैठा क्या जनता अपने नंगे आंखों से इस तस्वीर को नहीं देखती और समझती तो देश का बेड़ा तो गर्त होना ही है। जो राजनेता कभी समाज में अपराध किया करते थे और आज वह देश को उपदेश दे रहे हैं क्या उस दिन को भी जनता भूल गई नशा तो आपने सेवन की तो परिणाम तो भुगतना ही होगा पेपर लीक के तौर पर या घोटाले के तौर पर। क्या घोटालो के मामले में या टूटे हुए पुल और पुलिया के मामलों में कभी राजनेता या उसके शीर्ष अधिकारीयो को आप लोगों ने कभी जेल जाते हुए देखा है। जो नेता कभी साइकिल से चलता था या मोटरसाइकिल से आज करोड़ों की गाड़ियों में चल रहा है और अरबो की संपत्ति से लगाकर अपना मकान और अपनी दुकान राजनीति खड़ा कर रहा है क्या यह नंगी तस्वीर को नेता भूल गया या जनता। जिन जातियों के राजनेता अपनी जातियों का वोट लेकर चुनाव जीते हैं उन जातियों के लोग कभी उन नेताओं से पूछते हैं कि आपने इतना बड़ा महल और अटारी कैसे बना लिया और इतनी महंगी गाड़ियां कहां से खरीदी। क्या कभी किसी ने सवाल उठाया है जिन लोगों ने अपना राजकोष अपनी जायदाद देश को समर्पण कर दिया उन लोगों को खुलेआम मंचों से गालियां क्यों दी जाती है। आज जो समाज में नफरत का दौर बढ़ रहा है एक दूसरे को नफरत की दृष्टिकोण से लोग देख रहे हैं यह किसकी देन है और हम ऐसे नेताओं को हम वोट क्यों देते हैं कभी विचार जनता ने किया नहीं किया तो परिणाम तो जनता को ही भुगतना होगा। जाती के नेता तो अरबो के मालिक हो जाएंगे लेकिन जाति के मतदाता वहीं रह जाएंगे जहां पहले थे। क्या जनता को देश लिए सेना में जो बच्चे काम करते हैं उनकी पेंशन योजना बंद कर दी गई और राजनेता अपनी पेंशन चालू कर लिए यह दिखाई नहीं देता किसी भी जाति के बच्चो को छोड़ा है इन नेताओ ने। जनता यदि इस सच्चे तस्वीर को देखकर के भी भूली हुई है तो आखिरकार जनता को अंधा कहा जाए या नेता को। लूटने वालों को तो चस्का लग ही गया है वह अपने भी लूटेंगे और अपने बाल बच्चों से भी देश को लूटवायेगे और जनता उनके बाल बच्चों को आजीवन वोट देती रहेगी क्या यह देश में होना चाहिए इसे कौन तय करेगा। बातें बहुत है साथियों लेकिन बहरी और आंधी जनता को कौन समझाए फिलहाल देश भगवान भरोसे चल रहा है जनता अपनी जिम्मेवारियों से भाग रही है जात-पात का दौर जारी है नफरतों के बाजार में बिक्री का खेल देखने को मिल रहा है और जनता सब कुछ को झेलने तैयार है लेकिन अपनी मानसिकता बदलने को नहीं।

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