तपस्या ऐसा होना चाहिए जैसे राजा भगीरथ ने किया- मुकेश्वरानन्द जी


नुआंव, कैमूर से प्राची सिंह की रिपोर्ट


नुआंव, कैमूर ।। त्याग और तपस्या ऐसा होना चाहिए जैसे राजा भगीरथ ने किया। अपनी तपस्या के बल पर भगीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए पतितपावन गंगा को धरती पर ले आए। वे तपस्या में सफल हुए, अपने वंश का उद्धार किये। उक्त प्रषंग कशी के श्रीमद्भागवत कथा मर्मज्ञ श्री मुकेश्वरानन्द जी ने प्रखण्ड के छाता बराढी में आयोजित श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञ कथा के दौरान कही। उन्होंने कहा कि श्री हरि की कृपा सबपर है। भगवान सबके कल्याण की सोंचते हैं। समय-समय पर दुष्टों का अत्याचार होता है तो उन्हें अवतरित होना पड़ता है। जैसे हिरणकश्यप के अत्याचार और भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए भगवान नार्सिहं के रूप में अवतरित हुए और हिरणकश्यप के अत्याचार से प्रहलाद को मुक्त कराए। सत्य से मुह नही मोड़ना चाहिए। सत्य के रास्ते में अनेक परेशानियां आती हैं, लेकिन भगवान की कृपा से सब दूर हो जाता है। सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नही। भगीरथ अपने त्याग और तपस्या में असफल हो जाते तो उनके पूर्वजों का कल्याण नही हो पाता। प्रयास भगीरथ जैसा होना चाहिए। कथा के दौरान यज्ञाचार्य श्री परमानन्द जी, आचार्य सहयोगी पंडित छठ नारायण उपाध्याय सहित काफी संख्या में भागवत कथा श्रोता प्रेमी मौजूद थे।

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