सत्यगाथा



खाला क़ा  घर हैं  नही , मेरा  भारत  देश 

बर्बर  तुम्हरा रूप  हैं , पता  चला  हैं भेष 

पता चला हैं भेष , उठालो बोरिया बिस्तर 

अगर बने नासूर  ,तॊ  चल  जायेगा नश्तर 

कह बृजेश कविराय हैं ,यही देश की चाह 

अमल करो फरमान पे पकड़ो अपनी राह 


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