नवयुग खुद का है चित्रकार

लेखक - विनय सिंह 

राजनीति के लोग जब किसी जनहित का लबादा ओढ लेते हैं तब कसम से बड़े क्यूट लगते हैं,हर चुनाव में ये और क्यूट होते जाते हैं भारत का लोकतंत्र परिपक्व हो रहा है ऐसे ही लोग भारत के लोकतंत्र को परिपक्व करने में सहायक हैं, जो इसका उपयोग कर रहे हैं, साथ मे लोकतंत्र उनका भी उपयोग कर रहा है निखर कर आने के लिए।

लोकतन्त्र के चार स्तम्भ विधायिका ,कार्यपालिका, न्यायपालिका और पत्रकारिता ये सब चुनाव के इर्द गिर्द घूमने लगते हैं क्योंकि अकेला एक चुनाव ही इनकी औकात तय करता है ,चुनाव ही तय कर देता है कि किस पक्ष को कितनी ताकत मिलेगी, इसलिए चारो के चारो स्तम्भ इस बात में मशगूल हो जाते है कि कैसे वो चुनाव को प्रभावित कर ,चुनाव का रुख अपनी तरफ मोड़ लिया जाय। कहानियां इतनी बड़ी बन गयी है कि एक महत्वपूर्ण सत्य आंखों से  ओझल हो चुका है कि "सारी की सारी चालाकियों का एक नुकसान ये है कि आप  उसी तालाब को गंदा कर रहे हैं जिसमे आप खुद तैर रहे हैं,कोई जाति और भाषा प्रांतवाद के नाम पे कुछ पा लेना चाहता है सारी सत्ता की ताकत और पैसे से सत्ता , सत्ता से पैसा की एक अनवरत दौड़ में लग गया है,कोई न्यायालय की ताकत का उपयोग किसी को बचाने और फसाने के लिए कर रहा है खुद की कोई शुचिता नही जजो का चुनाव आई ए एस आई पी एस आई आर एस की तरह सेंट्रलाइज्ड न हो इसके ऊपर सब जज अपनी ताकत झोंके के रखे है ,हम ही चुनेंगे ऐसी  जिद है।कोई कोई कार्यपालिका का अधिकारी गण अपना राजनीतिक आका बनाने के लिए सिस्टम को मरोड़ के रख दे रहा  है,जनता का खून  चूसा जा रहा है वो अलग, पत्रकार को कलम का सिपाही बनने से ज्यादा किसी दल का सिपाही बनने में मजा आ रहा है,और  कुछ पत्रकारों के लिए खबरों से ज्यादा  जरूरी चीज ही कुछ और  है , उसी के लिये तो पत्रकारिता की है।ये सब क्यों किया जा रहा है क्योंकि हर व्यक्ति को बहुत ही तेजी से ज्यादा पैसा कमा लेना है  इसमें लोकतन्त्र के चारो के चारो स्तम्भ लगे हुए हैं, अब बदलते भारत मे पैसा महत्वपूर्ण है और हरदिन इसका महत्व और भी बढ़ता ही जा रहा है ,पुरानी मान्यताये टूट रही है और टूटना भी चाहिए क्योंकि वो पुराने समय के लिए ही लिखी गयी थी ,अब नई चीजों की जरूरत है अब समाज अपने ग्रंथों को फिर से लिखेगा  नए व्यख्याकार पैदा होंगे नए नीतिनिर्धारक बनाये जाएंगे,नए नेता नए आदर्श तैयार होंगे ,और सारे पुराने स्थापित लोगो के बारे में यही नवयुगपुरुष बोलेंगे और उनको गलत साबित कर देंगे  क्योंकि "युग" खुद ही "नवयुग" का निर्माण कर रहा है ,परिवर्तन ही सतत प्रक्रिया  है । इन लहरो पे जो  चढा है आगे जा रहा है, धारा के विपरीत वाला कुटा पिटा पड़ा है।

ये जो भी उल्टा सीधा उचित अनुचित किया जा रहा है यही आगामी कल मे महान परम्परा और महान इतिहास के रूप में पढ़ाया जाएगा क्योंकि युग ने खुद को रचा है उसकी रचना महत्वपूर्ण होगी ही।

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