जाति विज्ञान कोई साधारण ज्ञान नहीं : संदीप मिश्र

जौनपुर ।। वेद या मनु संहिता के अनुसार जाति नहीं होती बल्कि वर्ण होते हैं, जो सिर्फ चार ही हैं और इन चार वर्णों के विज्ञान को काटा नहीं जा सकता है । साथ ही साथ  वेद और मनु संहिता के अनुसार,  किसी भी मनुष्य का वर्ण उसके कर्मानुसार  निर्धारित होता था, ना कि वंशानुसार । उदाहरण स्वरूप आप ब्रह्मर्षि विश्वामित्र, ब्रह्मर्षि वाल्मीकि आदि को भी देख सकते हैं। इसके विपरीत आप ऋषियों के घर में जन्मे रावण को राक्षस के रूप में ही जानते हैं और उसका अनुकरण करने वाले उसके सभी पुत्र पौत्र आदि राक्षस ही कहे गए।।

वर्तमान जातियां अपनी व्यापारिक पहचान से जानी गईं और कालांतर में इन्होंने यह व्यापारिक सुगमता कायम रखने के लिये शादी विवाह संबध भी उसी तरह के व्यापारी के घर पर किया और धीरे धीरे यह एक ठोस परंपरा बन गई जिसे व्यक्ति ने अपने सम्मान/पहचान से जोड़ लिया जिससे मानव मानव में जाति धर्म आधारित विभिन्न पंथ व संप्रदाय बन गए जिससे यह समाज टूटता ही चला गया।।

भारत और सनातन धर्म को बदनाम करने के लिए वर्तमान जातियों को वेद और मनु संहिता से जोड़ दिया गया जो सिरे से गलत है ।इन सब बातों को समझने के लिए गहन अध्ययन की आवश्यकता होती है मगर आज के जमाने में लोग दो पंक्तियों का पोस्ट पढ़कर इतने ज्ञानी बन जाते हैं कि समाज में दुष्प्रचार शुरू कर देते हैं जो अति दुखद है तथा समाज के शांत वातावरण को अशांत करने वाला है। आजकल के नेता भी अज्ञानतावश या जानबूझकर , जिसका जिसमें लाभ हो रहा हो, उसे तूल दे रहा है । ऐसे नेताओं को कहीं से भी वेद शास्त्र पुराण उपनिषद या कहीं भी ग्रंथों का कोई ज्ञान नहीं और नही उनके पास इसे पढ़ने का समय है उनको घृणा फैलाने में लाभ है तो घृणा फैला रहे हैं और अगर जोड़ने में लाभ है तो जोड़ रहे हैं येन केन प्रकारेण उनका वोट बैंक बढ़ना ही चाहिए यह हमारे देश के लिए बेहद ही घातक है क्योंकि हमारे यहां व्यवसाय ज्ञान तो बहुत लोगों को है क्योंकि यह हमारी मूल शिक्षा से जुड़ा है जबकि आध्यात्मिक ज्ञान को शिक्षा परंपरा से दूर रखा गया है जिस वजह से ज्यादातर लोग कूप मंडूक बने ऐसे लोगों के पीछे उनका झंडा उठाकर दौड़ने लगते हैं और देश में आपसी मनमुटाव तथा तनाव की स्थिति उत्पन्न करते हैं इसका एक ही इलाज है की आध्यात्मिक ज्ञान का विषय शुरू से ही पढ़ाया जाए जिससे लोगों में वेद पुराण और शास्त्रों के प्रति व्याप्त भ्रांतियां दूर हो और समाज में जगत का हित करने वाले भावना का विकास हो।

रोमिला थापर , रामचंद्र गुहा , इरफान हबीब जैसे छद्म बामपंथी कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने अपनी लेखनी से वेद, शास्त्र, पुराण आदि जाने बिना ही जनमानस को विकृत कर दिया है जिसके परिणामस्वरूप हर जगह जाति धर्म की श्रेष्ठता का द्वंद शुरू हो गया है जिसका राजनैतिक लोग खूब लाभ ले रहे हैं।

राममंदिर आदि के मामले में ऐसे कई इतिहासकार अपने गलत ऐतिहासिक संदर्भों के लिए सुप्रीम कोर्ट में माफी भी मांग चुके हैं ।

अगर भारत को पुनः विश्व गुरु बनाना है तो इन मूर्खतापूर्ण द्वंद से लोगों को बाहर लाकर, अपने स्वार्थ से उपर उठकर लोक कल्याणकारी कार्य व विचार (सर्वे भवन्तु सुखिन:) को महत्व दें और आत्म कल्याण करने वाली विश्वबन्धुत्व की भावना का प्रचार प्रसार करें। (ये हमारे निजी विचार हैं । कोई इससे सहमत न हों तो उनसे क्षमा प्रार्थी हूं।)

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