शिक्षा विभाग में सुधार के लिए छात्र छात्राओं को झेलनी पड़ती है काफी परेशानिया

खर्च हो जाते है लगभग 15000 हजार रुपए 

संवाददाता श्याम सुन्दर पाण्डेय की रिपोर्ट 

दुर्गावती(कैमूर)-- बिहार विद्यालय शिक्षा बोर्ड इंटर और हाई स्कूल के छात्रों को बोर्ड कि गलत नीतियों के कारण काफी परेशानीयो का सामना करना पड़ रहा। बता दे की हाई स्कूल और इंटरमीडिएट के परीक्षा में फार्म भरते समय जो अशुद्धियां विद्यालय के किरानी और कलर्क के द्वारा कर दी जाती है उसका परिणाम विद्यार्थी को ही भोगना पड़ता है जिसके लिए छात्र-छात्राओं को विहार शिक्षा बोर्ड का चक्कर लगाना पड़ता है। कोर्ट ऑफडेबिट के बाद विद्यालय से लिखवा कर बिहार शिक्षा बोर्ड जाना पड़ता है जहां सुधार के नाम पर सरकार के द्वारा निर्धारित राशि500 को जमा किए जाने की बाद कम से कम दो सप्ताह का इंतजार करना पड़ता है और दो सप्ताह के बाद शिक्षा बोर्ड में फिर जाने के बाद प्रति प्रमाण के सुधार में निकाले जाने वाले कागजात का₹2500 जमा करना पड़ता है । यदि मूल अंक प्रमाण पत्र माइग्रेशनअन्य कागजात और निकाला  जाना है तो 2500 पर कागजात जमा करना होगा उसके बाद फिर एक सप्ताह का इंतजार करने के बाद पुनः बिहार शिक्षा बोर्ड जाना पड़ेगा। गौरतलब है कि जिन छात्रों छत्राओ का प्रदेश की अंतिम छोर पर घर और जिला होगा तो कितनी परेशानियां झेलनी पड़ती होंगी। यही नहीं सबसे ज्यादा दिक्कत तो झारखंड राज्य के जो को लोग अलग होने से पहले बिहार के साथ थे जिनका कागजात बिहार शिक्षा बोर्ड में फंसे होगे वे तो और परेशान हो जाते होगे  और कागजात निकालने में दो-तीन महीने से ज्यादा समय लगते होगे। शिक्षा बोर्ड का कई बार दौड़ा करने में एक छात्र का जो राज्य के अंतिम छोर के रहने वाले होगे उनका 15,000 रुपय से कम खर्च नहीं आता होगा और परेशानी मुफ्त में। जरा सोचिए जिन छात्राओं को माता-पिता के अभाव में पटना की दौड़ लगानी होगी तो उनकी परेशानियां सुरक्षित घर वापस लौटने में कितनी बढ़ जाती होगी। बिहार के बाद यदि अन्य राज्यो की बात करें तो सुधार के लिए संबंधित दस्तावेज को निर्धारित शुल्क ऑनलाइन जमा करने के बाद उनके धर विभाग के द्वारा कागजात भेज दिया जाता है। आज के समय में कमो बेशी हालात महाविद्या और  यूनिवर्सिटी का भी बिहार में यही है। आजादी के बाद से आज तक बिहार में शिक्षा की न नीति सुधरी न कोई छात्र छात्राओं सुविधा मिल पाई छात्र  परेशान है विभाग मस्त और मंत्री खुश।

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