
जातिगत नेताओ के नाम पर बटी जातियां, अब देश हित का ख्याल कहां
- कुमार चन्द्र भुषण तिवारी, ब्यूरो चीफ कैमूर
- Sep 05, 2024
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संवाददाता श्याम सुन्दर पांडेय की रिपोर्ट
दुर्गावती (कैमूर)- वर्तमान समय में चल रहे देश की राजनीतिक गतिविधियों में सबसे बड़ा दोष आ गया है और वह दोष है जाति का जिसका परिणाम रहा है की आज देश की जनता जातिगत आधार पर जाती के नेताओं के साथ बट चुकी है। सभी पार्टियों के वंशवादी नेता अपनी-अपनी जाति के नाम पर अपनी राजनीतिक दुकान खोले हुए है, और बयान बाजी कर रहे हैं और अपने पक्ष में लाने के लिए लिए मारा मारी कर रहे हैं जो सफल होता दिखाई दे रहा है।
आज के परिवेश में लगता है उन्हे राष्ट्रहित से कोई मतलब नहीं है उन्हें तो वोट हित पहले और राष्ट्र हित जाये चूल्हे भाड़ में, उनकी तो एक ही राजनीतिक सोच है की बेटा के बेटा का हित होता रहे, सभी जातीय राजनीतिक इसी चक्कर में पड़े हुए हैं। वे नेता यह चाहते हैं कि हमारा बेटा और बेटे का बेटा राज करते रहे और हमारी जाति के लोग हमें आजीवन वोट देते रहे। आज किसी भी जाति का नेता अपनी जाति को नेता बनना पसंद नहीं करता वह केवल वोटर बनाकर छोड़ देने में ही अपनी भलाई समझते हैं और जातियां हैं की लकीर की फकीर बनी हुई दिखाई दे रही है। सनातन धर्म पर तो इतना हमलावर है ये नेता जैसे भूखा शेर शिकार प्राप्त करने के लिए किसी तरह हमलावर होता है भद्दी टिपड़ी और गालियां इन नेताओं की फिदरत बन चुकी है। यदि वर्तमान समय में देश पर कोई गंभीर संकट मडराता है तो यह अपनी जाति लोगों को लेकर क्या देश की रक्षा करने में सक्षम हो सकते हैं।
देश को आजाद करने वाले महापुरुषों ने सोचा था कि जब हमारा देश आजाद हो जाएगा तब तमाम धर्म संप्रदाय के लोग कि ये बगिया सदा एक रहेगी और एक होकर दुख सुख और गंभीर समस्याओं से निपट लेगी, लेकिन उन महापुरुषों के अरमानों का कत्ल कर रहे हैं आज के राजनेता। आज प्राइवेट सेक्टर की कंपनियां देश में नहीं होती तो सवर्ण लोग तो भूखो मर गए होंते क्योंकि राजशाही राज्य जमींदारी और काश्तकारी तो पहले ही चली गई है अब शेष जीवन की सिवा बचा ही क्या है। हां एक समुदाय के लोग है जो विभिन्न अपनी जातियों में ही बटे होने के बाद भी गरीबी और मजदूरी करने के बावजूद भी अपने मिशन में लगे हुए है और आने वाले समय में उनका मिशन सफल होते दिखाई दे रहा है क्योंकि ऐसे गद्दार नेताओं के बांटने की राजनीति का फायदा उन्होंने दिन दूना रात चौगुना फलने फूलने का मौका दे रहा है। वर्तमान राजनीतिक नेताओं के पैंतरे बाजी वाली समस्याओं को देखते हुए यदि जनता सचमुच सतर्क नही हुई तो उनको संकठ काल में संकठ को भुगतना ही पड़ेगा।
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