
परंपरा से आधुनिकता में बदली होली
- सुनील कुमार, जिला ब्यूरो चीफ रोहतास
- Mar 10, 2025
- 123 views
रोहतास।होली, जो कभी मेल-मिलाप, उमंग और सांस्कृतिक परंपराओं का पर्व था, अब आधुनिकता के रंग में रंगती जा रही है। समय के साथ होली का स्वरूप बदल रहा है। परंपराओं की जगह डीजे, हुड़दंग और नशाखोरी ने ले ली है। जहां पहले गलियों में होलियारों की टोली फगुआ गाती थी, वहीं अब मोबाइल पर ऑनलाइन शुभकामनाएं भेजकर त्योहार निपटा दिया जाता है। इस संबंध में काशी काव्य संगम रोहतास के जिला संयोजक कवि सह साहित्यकार सुनील कुमार रोहतास ने किशुनपुरा गांव से बताते हैं कि गांवों और शहरों में पहले होलिका दहन के लिए कई दिन पहले से तैयारियां शुरू हो जाती थीं। बच्चे लकड़ियां और उपले इकट्ठा करते थे। लेकिन अब बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई पर रोक और बदलती जीवनशैली के कारण होलिका दहन में पहले जैसी होड़ नहीं दिखती। गांव के बुज़ुर्ग, जो हर साल होली के पहले दातून करते हुए होलिका की मिट्टी लेने जाते थे, अब बदलती होली से निराश हैं। वे कहते हैं,"पहले गांव के हर घर से लोग होलिका दहन के लिए आते थे। बच्चा-बूढ़ा सब इकठ्ठा होता था। अब बस दो-चार लोग ही दिखते हैं। ना वो उमंग रही, ना वो उल्लास।"
पहले की होली में फगुआ और लोकगीतों की धूम होती थी। ढोल-मंजीरे की थाप पर होलियारों की टोलियां गली-गली घूमती थीं। लोग "रंग बरसे", "फगुनवा में रंगवा घोरेलू" जैसे पारंपरिक गीत गाते थे।
गांव की 80 वर्षीय दादी, जो हर साल होली पर फगुआ गाती थीं, अब दुखी होकर कहती हैं,
"हमार जमाना में औरतें भी टोली बनाके फगुआ गावत रहलीं। अबकी देखs, केहु के पास समय नइखे। बस सब मोबाइल में बधाई भेज के छुट्टी कर लेला।" अब होली पर डीजे का शोर ज्यादा सुनाई देता है। पुराने लोकगीतों और फगुआ की जगह फिल्मी गाने बज रहे हैं।
पहले होली पर मोहल्लों में होलियारों की टोलियां निकलती थीं, जो एक-दूसरे के घर जाकर रंग लगाते, गले मिलते और ठिठोली करते थे।
गांव के काका चिंतित होकर कहते हैं,
"पहले के होली में प्रेम रहत रहे। अब तऽ केहू भांग के नाम पर जबरदस्ती शराब पियावे के कोशिश कईल रहा है। हमार उमिर के लोग त अब भी गुलाल से होली खेलतहैं, लेकिन नवका लड़कन के बस मस्ती सूझत ही।"
गांव की बूढ़ी काकी, जो हर साल अपने घर के आंगन में होलियारों का इंतजार करती थीं, उदास होकर कहती हैं,
"पहले दस-पंद्रह लोग टोली बनाके हमरा घर आवत रहे। अब तऽ केहू के फुर्सत नहीं है। सब अपने मे बिजी होई गए"
शराब गांजा का बढ़ता चलन, नशे की आदी हो रही युवा पीढ़ी
पहले होली के दौरान लोग ठंडाई और भांग का हल्का आनंद लेते थे, लेकिन अब इसका स्वरूप बदल गया है। शराब और गांजा जैसी नशाखोरी का प्रचलन बढ़ने से त्योहार के माहौल में उन्माद और अशोभनीय घटनाएं बढ़ गई हैं। गांव के बुज़ुर्ग कहते हैं, कि
"हमार समय में लोग ठंडई पियत रहे, लेकिन मर्यादा में। अब के लड़िका होली के बहाना बनाके कुछो करत बा। ई ठीक नहीं है।"
पारंपरिक पकवानों की मिठास भी कम हो रही है।
पहले होली के कई दिन पहले से गुजिया, मालपुआ, दही-बड़े, ठंडाई, पापड़, चिप्स जैसी चीजें घरों में बनाई जाती थीं। गांवों में चूल्हे पर देसी घी में तली गई मिठाइयों की महक पूरे मोहल्ले में फैल जाती थी। गांव के काकी कहती हैं,
"पहले घर में हफ्ता भर पहले से चिप्स पापड़ आदि बनत रही। अब तऽ सब बजार से रेडीमेड मिल जात बा। सबके घर के मेहरारू सुखबार होई गईंली।" वैसे देखा जाय तो अब रेडीमेड मिठाइयां और ऑनलाइन ऑर्डर का जमाना आ गया है, जिससे त्योहारों की पारंपरिक मिठास धीरे-धीरे कम हो रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि युवा पीढ़ी धीरे-धीरे होली की असली परंपरा से दूर होती जा रही है। पहले की तरह सांस्कृतिक जुड़ाव और सामूहिकता अब नजर नहीं आती है।
"हम जब छोटे थे, तो होली के हफ्ता भर पहले से तैयारी होती थी। अब हमारे बच्चे को बस स्कूल की छुट्टी चाहिए। ना होली खेलने का शौक, ना कोई उमंग, बस मोबाइल दे दो सारा दिन उसी में रील देखते और गेम खेलने बीत जाता है।"
फाग और पारंपरिक गीतों को बढ़ावा दिया जाए, जिससे लोकसंस्कृति जीवंत बनी रहे। प्राकृतिक रंगों और गुलाल का अधिक उपयोग किया जाए, ताकि स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे। शराब और नशे के दुष्प्रभावों पर जागरूकता बढ़ाई जाए, जिससे होली का पावन स्वरूप बना रहे। सामूहिक होली उत्सवों का आयोजन हो, जिससे लोग फिर से आपस में जुड़े। बच्चों और युवाओं को होली के पारंपरिक किस्से और परंपराएं बताई जाएं, ताकि वे अपनी संस्कृति को जान सकें।
समय के साथ होली के रूप में बदलाव आना स्वाभाविक है, लेकिन त्योहार की आत्मा को बचाए रखना भी जरूरी है। गांव के बुजुर्गों की चिंता भी यही है कि आने वाली पीढ़ी को होली का असली मतलब समझ में आना चाहिए। जरूरत है कि परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन बनाया जाए, ताकि होली का असली रंग फीका न पड़े। होली का असली मजा तो फगुआ गाने, गुलाल उड़ाने, गुझिया खाने और दोस्तों संग होली खेलने में है, ना कि शराब पीकर हुड़दंग मचाने में।
रिपोर्टर