जातिगत विभाजन के बाद वक्फ बोर्ड का कानून देश के साथ गद्दारी

दुर्गावती संवाददाता श्याम सुंदर पांडे 

कैमूर- जिस देश में आजादी के बाद जातिगत आधार पर बंटवारे किए गए हो उस देश में किसी एक जाति के लिए जमीन अधिग्रहण का कानून बनाने का फैसला  देशद्रोह से कम नहीं कहा जाना चाहिए। बाबा साहब ने इस कानून को नहीं बनाया न इसकी इजाजत दी लेकिन उस समय की सरकार अपने निजी स्वार्थ के लिए देश में एक जहर का बीज बो डाला। हिंदुओं के मठ और मंदिरों को सरकार ने अधिग्रहण  कर लिया और उससे  जो भी पैसा मिलता है उससे देश के हर वर्ग का विकास किया जाने लगा।  वही जातिगत बंटवारे के बाद  कानून बनाकर जमीन अधिग्रहण करने की छूट दे दी गई लेकिन उससे होने वाली आमदनी को स्वतंत्र इस्तेमाल करने के लिए छोड़ दिया गया जो इस देश के साथ सबसे बड़ा गद्दारी कहना अनुचित नहीं होगा। इतने पर भी उस समय की सरकार नहीं रुकी और उनके लिए न्यायालय के रास्ते को भी बंद कर दिया गया और कानून बना की वक्फ बोर्ड के  जमीन का मुकदमा भी उसी के दफ्तर में देखी जाएगी का कानून बना डाला। आज उससे होने वाले आमदनी से भी उस समुदाय का भला नहीं हो रहा है उसी समुदाय के कुछ  खास व्यक्तियों के हाथ की कठपुतली बनकर रह गई। यही नहीं उससे होने वाले आमदनी से राष्ट्र का न उस जाति के लोगों का कोई फायदा हो रहा है  बल्कि राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में उसकी आमदनी का प्रयोग किया जाने लगा। यदि सचमुच वक्फ बोर्ड  की आमदनी का  पैसा उस समुदाय के लोगों पर लगाया गया होता तो आज उस समुदाय के लोगों के सामने भूख मरी, बेरोजगारी और गरीब नहीं रहता। इस बिल में संशोधन बात ही करना बेईमानी है इस कानून को तो खत्म कर देना चाहिए। लेकिन वोट के भूखे भेड़िए इस कानून को खत्म करने नहीं देंगे जो एक बार फिर देशद्रोह से कम खाना उचित नहीं होगा।

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