बिगड़ते सांप्रदायिक सौहार्द पर दोहरे कानून क्यों

संवाददाता श्याम सुंदर पांडेय की रिपोर्ट 

दुर्गावती(कैमूर)-- संवाददाता की कलम से -- इस देश में कब कौन क्या बोल देगा कुछ कहा नहीं जा सकता है। जनता तो जानता है ही कब क्या बोलना है समझ नहीं पा रही न उसके परिणाम के बारे में पूर्ण रूप से जानती हैं। लेकिन महत्वपूर्ण पदों पर बैठे राजनेता कब क्या बोल देंगे और उसके परिणाम क्या होंगे इसकी कोई परवाह उन लोगों को नहीं है। यदि जनता बोलती है तो देशद्रोह का मुकदमा दर्ज होता है लेकिन वही बात  संवैधानिक पद पर बैठे राजनेता बोलते हैं सुरक्षा मुहैया कराई जाती है कैसा है इस देश का कानून, क्या उनके बोलने से  देश के आंतरिक ढांचे में जन मानस के बीच सांप्रदायिक सौहार्द  नहीं  बिगड़ता यह एक ज्वलंत  सवाल राजनेताओं से है। ऐसे राज नेताओ पर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने से संबंधित धाराओं में मुकदमा दर्ज क्यो नहीं होना चाहिए, क्या इस देश में जनता के लिए अलग और नेताओं के लिए अलग कानून बने है यह एक अहम सवाल है जो जनता के जनमानस में घूमती हैं, इस देश में दोहरे कानून क्यों। संविधान में दिए हुए धार्मिक आजादी पर हमला करना क्या कानून सम्मत है यदि सम्मत नहीं है तो कार्रवाई क्यों नहीं होती। जाति की पार्टी बनाना जाति पाती करना देश के माहौल को बिगाड़ना, क्या देश को एक सूत्र में रखने के लिए उचित तरीका है। देश में राजनीति एक देश सेवा के रूप में मानी जाती थी लेकिन अब तो राजनीति एक व्यवसाय और नौकरी बनकर रह गई है, सस्ता भोजन सस्ती सुविधा पेंशन तनख्वाह, अपने लिए तमाम कानून बना लिया राज नेताओं ने लगता है अब देश सेवक तो देश में पैदा ही नहीं होंगे। ऐसे ही भेदभाव युक्त राजनीति देश में होती रही तो आने वाला समय देश को कमजोर और बर्बाद कर डालेगा जिसकी जिम्मेदारी पूर्ण रूप से राजनेताओं की होगी, लेकिन ऐसे राजनेताओं के समर्थक जनता भी अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकती वह भी इसके लिए जिम्मेदार माने जाएंगी जिनका इतिहास आने वाले समय में पीढ़ियां देखेगी और पढ़ेगी।

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