
मक्के की फसल में कीट-पतंगों का नियंत्रण जरूरी
- सुनील कुमार, जिला ब्यूरो चीफ रोहतास
- May 09, 2025
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रोहतास ।बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है जहाँ धान, गेहूँ और मक्का जैसी प्रमुख फसलों की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इनमें मक्का एक महत्वपूर्ण फसल है, जो न केवल खाद्यान्न के रूप में उपयोग होता है, बल्कि पशु आहार, औद्योगिक उपयोग और खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। राज्य में इसकी खेती मुख्यतः खरीफ मौसम में की जाती है लेकिन रबी और जायद मौसम में भी मक्का की फसल ली जाती है। राज्य के जिलों जैसे पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, समस्तीपुर, रोहतास, मधुबनी और बेगूसराय आदि मक्का उत्पादन में अग्रणी हैं। मक्का की फसल को अनेक प्रकार के कीट नुकसान पहुँचाते हैं जो पौधे के विभिन्न भागों जैसे बीज, जड़, तना, पत्तियाँ और भुट्टा पर आक्रमण करते हैं। ये कीट पौधों को कमजोर बनाकर उनकी वृद्धि और उत्पादन क्षमता को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कीट जैसे कि तना छेदक, फॉल आर्मी वॉर्म, भुट्टा कीड़ा और दीमक फसल के लिए गंभीर खतरा बन चुके हैं। ये कीट न केवल फसल की गुणवत्ता को खराब करते हैं, यदि समय पर नियंत्रण नहीं किया जाए तो उत्पादन में भी 30% से अधिक तक की गिरावट ला सकते हैं। गोपाल नारायण सिंह विश्वविद्याल, जमुहार, सासाराम के अंतर्गत संचालित नारायण कृषि विज्ञान संस्थान के कीट विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. आदित्य पटेल इन कीटों के पहचान एवं प्रबंधन के बारे मे चर्चा करते हुए बताते हैं कि मक्के के लिए सबसे अधिक हानिकारक कीट तना छेदक है। जिसकी पहचान स्लेटी सफेद तथा सिर काले रंग का होता है। यह कीट पौधे के तने में सुराख करता है जिससे पौधा बीच से सूखने लगते हैं। दूसरा हानिकारक कीट फॉल आर्मी वॉर्म मक्के के पत्तियों, तने और भुट्टे को खाता है। इसकी इल्ली का शरीर हरा, भूरा या काला होता है, शरीर पर पीली धारियाँ होती हैं तथा सिर पर एक स्पष्ट सफेद रंग का उल्टा "Y" चिन्ह होता है। भुट्टा का कीड़ा भुट्टे के अंदर घुसकर दाने खा जाता है, इससे भुट्टे की गुणवत्ता और उपज दोनों में गिरावट आती है। इसकी इल्ली हरे से लेकर भूरे रंग की होती है, शरीर पर गहरे धब्बे और बारीक बाल होते हैं। वयस्क पतंगा पीला भूरा होता था तथा इसके पंखों पर गहरे गोल निशान होते हैं। डॉ. पटेल आगे बताते हैं कि मिट्टी मे रह कर फसल को नुकसान पहुचने में दीमक प्रमुख कीट है। ये छोटे, सफेद या हल्के भूरे रंग के कीट होते हैं जो मिट्टी के अंदर रहते हैं। दीमक मक्के के बीज और जड़ों को खा जाते हैं जिससे पौधे मुरझा जाते हैं। दीमक के नियंत्रण करने के लिए किसान भाई कीटनाशी क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी. को बालू में मिलाकर खेतों मे 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। अन्य हानिकारक कीटों के नियंत्रण के लिए जैविक कीटनाशक बेसिलस थुरिंजिएन्सिस 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़कें। ध्यान रहे कि इसका छिड़काव सुबह या शाम के समय पर ही करें। वनस्पति कीटनाशी जैसे नीम का तेल 1500 पीपीएम 5 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करें। कीटों का अधिक प्रकोप होने पर रसायनिक कीटनाशक के रूप में फ्लूबेन्डामाइट 20, डब्ल्यू. डी.जी. 250 ग्राम प्रति हेक्टेयर या एमिमामेक्टिन बेंजोएट 5 एस.जी. का 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर में कीट प्रकोप की स्थिति अनुसार 15-20 दिन के अंतराल पर 2-3 बार छिडक़ाव करें। प्रथम छिडक़ाव बुआई के बाद 15 दिन की अवधि में अवश्य करें।
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