
ब्रम्हांड का पालन करने वाले नारायण है-जियर स्वामी जी महाराज
- सुनील कुमार, जिला ब्यूरो चीफ रोहतास
- May 22, 2025
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रोहतास । जिले के दिनारा प्रखंड क्षेत्र के करहंसी गांव के ठाकुर वाडी परिसर में श्री शिवप्राण प्रतिष्ठा सह श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के पांचवें दिन भारत वर्ष के महान तपस्वी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्न जियर स्वामी जी महाराज ने प्रवचन के दौरान कही की विष्णु भगवान नारायण ही जग के पालनहार है। आगे उन्होंने उनके रूप पर चर्चा करते हुए बताते हैं कि
शांताकरं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभांगम्।
लक्ष्मीकांतं कमलानायनं योगीभिर्ध्यानगम्यं
वंदे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
आगे उन्होंने इनका अर्थ बताते हुए कहते हैं कि शांताकारं --- जो अति अतिशय शांत हैं, वह धीर क्षीर गंभीर हैं।
भुजगशयनं -- शेषनाग की शैया पर शयन कक्ष हैं।
पद्मनाभं --- नाभि में कमल।
सुरेशं --- देवों के ईश्वर।
विश्वाधारं --- जो संपूर्ण विश्व के आधार हैं।
गगनसदृशं--- जो आकाश के सदृश सर्वत्र स्थित है।
मेघवर्णं --- नीलमेघ के समान वर्ण।
शुभाङ्गम् - अतिशय सुंदर वर्ण संपूर्ण अंग हैं।
लक्ष्मीकान्तं - लक्ष्मीपति।
कमलनयनं--कमलनेत्र(जिनके नयन कमल के समान हैं)
योगिभिर्ध्यानगम्यम् -- जो योगियों द्वारा ध्यान किए जाने वाले हैं।
वंदे विष्णुं -- श्रीविष्णु को मैं प्रणाम हूँ।
भवभयहरं - जो जन्म-मरण रूपी भय को नाश करने वाले हैं।
सर्वलोकैकनाथम् ---जो संपूर्ण लोक के स्वामी हैं।
जो इस सृष्टि के पालक और रक्षक हैं , जो शांतिपूर्ण है, जो विशाल सर्प के ऊपर लेटे हुए हैं जिनकी नाभि से कमल का फूल निकला हुआ है जो ब्रह्माण्ड का सृजन करता है, जो एक परमात्मा है, सभी के स्वामी विष्णु को मेरा नमस्कार।
एक तरफ जहाँ वह शेषनाग ( सांपों के राजा) पर एक आरामदायक आसन में बैठे है और वंही दूसरी तरफ उनका चेहरा कुछ अलग प्रतीत होता है,भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर पहली बार हर किसी के मन में आता है कि एक सांप के राजा के ऊपर बैठे इतना शांत कैसे हो सकते है ?
वह भगवान है और उनके के लिए यह यह सब संभव है।
शेषनाग पर विष्णु लेटने का रहस्य इंसान के जीवन का हर पल कर्तव्यों और जिम्मेदारियों से संबंधित है। इन सब में सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्यों में शामिल परिवार, सामाजिक और आर्थिक जिम्मेदारी है , इन कर्तव्यों को पूरा करने के लिए बहुत प्रयासो के साथ कई समस्याओं से गुजरना होता है जो शेषनाग की तरह बहुत डरावने होते है और चिंता पैदा करते हैं, भगवान विष्णु का शांत चेहरा हमें प्रेरित करता है की कठिन समय में शांति और धैय के साथ रहना चाहिए और समस्याओं के प्रति शांत दृष्टिकोण ही हमें सफलता हांसिल करवा सकता है, यही कारण है भगवान विष्णु सांपो के राजा के ऊपर लेटते हुए भी अत्यंत शांत व मुस्कराते हुए प्रतीत होते हैं।
विष्णु का नाम “नारायण” और “हरि”----
भगवान विष्णु के प्रधान भक्त- नारद भगवान विष्णु का नाम जपने के लिए नारायण शब्द का प्रयोग किया, उसी समय से भगवान विष्णु के सभी नामों में जैसे अनन्त नरायण, लक्ष्मीनारायण, शेषनारायण इन सभी में विष्णु का नाम नारायण जोड़कर लिया जाता है, भगवान विष्णु को नारायण के रूप में जाना जाता है लेकिन बहुत कुछ इसके पीछे के रहस्य को भी जानते हैं।
जल भगवान विष्णु के पैरों से पैदा हुआ था और इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया की भगवान विष्णु के पैर से बाहर आई गंगा नदी का नाम विष्णुपादोदकी ‘ के नाम से जाना जाता हैजल “नीर” या ‘ नर ‘ नाम से जाना जाता है और भगवान विष्णु भी पानी में रहते हैं, इसलिए "नर" से उनका नाम नारायण बना,अर्थात पानी के अंदर रहने वाले भगवान, भगवान विष्णु को हरि नाम से भी जाना जाता है हरि का मतलब हरने वाला या चुराने वाला कहा जाता है-- “हरि हरति पापाणि”
अर्थात हरि भगवान हैं जो जीवन से पाप और समस्याओं को समाप्त करते हैं और माया के चंगुल से आत्मा का उद्धार करते हैं।
भगवान विष्णु के चार हाथ-प्राचीनकाल में जब भगवान शंकर के मन में सृष्टि रचने का विचार आया तो सबसे पहले उन्होनें अपनी आंतरिक दृष्टि से भगवान विष्णु को पैदा किया और उनको चार हाथ दिए जो उनकी शक्तिशाली और सब व्यापक प्रकृति का संकेत देते है, उनके सामने के दो हाथ भौतिक अस्तित्व का प्रतिनिधित्व करते है,पीठ पर दो हाथ आध्यात्मिक दुनिया में अपनी उपस्थिति का प्रतिनिधित्व करते हैं।
विष्णु के चार हाथ अंतरिक्ष की चारों दिशाओं पर प्रभुत्व व्यक्त करते हैं और मानव जीवन के चार चरणों और चार आश्रमों के रूप का प्रतीक है।ज्ञान के लिए खोज (ब्रह्मचर्य ) ,पारिवारिक जीवन (गृहस्थ),वन में वापसी (वानप्रस्थ) ,संन्यास।
प्रत्येक चरण या आश्रम का लक्ष्य उन आदर्शों को पूरा करना था जिन पर ये चरण विभाजित थे, आश्रम जीवन के चरणों का अर्थ है कि व्यक्ति अपनी आयु के आधार पर जीवन के सभी चार चरणों में आश्रय लेता है।
ये अवस्थाएँ उन कर्तव्यों का स्तरीकरण करती हैं जिन्हें मनुष्य को अपने जीवनकाल में अभ्यास करना होता है।
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