
देवघर की जनता पूछ रही सवाल, नारायण दास की राजनीति एक जनप्रतिनिधि के इर्दगिर्द ही क्यों घूमती है?
- Lalu Yadav, Reporter Jharkhand/Bihar
- Nov 15, 2019
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देवघर ।। 2014 में हुए झारखंड विधानसभा के चुनाव में पहली बार भाजपा ने इस सीट पर जीत हासिल की। इस चुनाव के पहले भाजपा की पुरानी सहयोगी रह चुकी जदयू के प्रत्याशी यहां से उम्मीदवार होते थे। भाजपा जदयू की सहयोगी भूमिका में रहती थी। भाजपा और जदयू के पुराने गठबंधन टूटने के बाद 2014 में भाजपा ने यहां से नारायण दास को उम्मीदवार बनाया। नारायण दास ने तीन बार के विधायक और तत्कालीन सरकार में मंत्री रहे राजद के सुरेश पासवान को यहां से हराया। देवघर विधानसभा चुनाव के इतिहास में भाजपा ने इस सीट से रिकॉर्ड मत प्राप्त किया। मोदी लहर के नाम पर भाजपा उम्मीदवार ने अपने प्रतिद्वंदी उम्मीदवार से दोगुना से ज्यादा मत प्राप्त किया। इस प्रचंड जीत के बाद नारायण दास से स्थानीय लोगों की अपेक्षाएं बढ़ गयी। अब यह बहस का मुद्दा है कि नारायण दास लोगों की अपेक्षाओं पर कितना खरा उतर पाएं! लेकिन राजनीति की बारीकी को समझने वालों ने नारायण दास की लोकप्रियता पर सवाल उठाया। एक आंचलिक कहावत की "बरगद पेड़ के नीचे कोई दूसरा पेड़ नहीं हो सकता" का उदाहरण देते हुए इन राजनीतिक पंडितों के मानना है कि विधायक की लोकप्रियता एक स्थानीय जनप्रतिनिधि के आगे समाप्त हो गयी। देवघर में राज्य सरकार की पहल पर हो रहे विकास कार्यों का क्रेडिट लेने में विधायक पीछे छूट गए। यहां तक कि देवघर में चल रहे विकास कार्यों के पीछे विधायक की कोई भूमिका नहीं रही। जानकर बताते हैं कि संस्कृत विश्वविद्यालय की मांग के अलावा विधायक ने ऐसा कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया है। उस पर भी यह कि यह कार्य घोषणा से आगे नहीं बढ़ पाया।
बहरहाल अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा के उम्मीदवार नारायण दास अपनी सीट को बचा पाते हैं या नहीं।
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