शराबबंदी से नही हुई बिहार के आदिवासी जोड़े की शादी, लिव इन में रहने को मजबूर दूल्हा-दुल्हन

बिहार: रविशंकर मिश्रा


बिहार में शराबबंदी कानून की वजह से दूल्हा-दुल्हन को विवाह के सामाजिक बंधन में बंधने की बजाय लिव इन रिलेशनशिप में रहने को मजबूर होना पड़ रहा है. मामला अपनी परंपरा का कठोरता से पालन करने वाले आदिवासी समाज से जुड़ा है, जिसमें बगैर दुल्हन के लौटने पर दूल्हे को गांव में प्रवेश नहीं करने दिया जाता. ऐसे में शादी के रुकने पर लिव इन रिलेशनशिप का रास्ता निकाल दूल्हा-दुल्हन को विदा किया गया.

ये मामला बिहार के बांका जिले का है. झारखंड से सटे बांका जिले में संथाल आदिवासियों की संख्या अच्छी खासी हैं. संथाल आदिवासी समुदाय से जुड़ा कोई भी आयोजन बिना शराब के पूरा नहीं होता है. शादी की रस्म के लिए रखा गया शराब पुलिस ने बरामद कर लिया. साथ ही संथाल आदिवासियों के प्रधान को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. आदिवासियों में ये परंपरा है कि प्रधान ही कन्यादान की रस्म अदा करता है.

प्रधान की गिरफ्तारी की वजह से कन्यादान की रस्म पूरी नहीं हुई. बगैर दुल्हन के लौटने पर दूल्हे को गांव में प्रवेश की अनुमति नहीं मिलेगी, इस वजह से परेशान बाराती दो दिन तक प्रधान के रिहा होने का इंतजार करते रहे. संथाल आदिवासी समाज के लोगों ने जिले के सभी आला अधिकारियों से कन्यादान की रस्म अदा करने के लिए प्रधान को छोड़ने की मिन्नतें कीं लेकिन प्रधान नहीं छूटा.

इसके बाद बिना शादी के ही लड़की को दूल्हे के साथ विदा कर दिया गया. पहली बार लिव इन रिलेशनशिप में रहने के लिए समाज की ओर से किसी जोड़े को कहा गया. 

बांका जिले के लौगांय पंचायत के कुशाहा गांव निवासी रसिकलाल मुर्मू की पुत्री बासमती मुर्मू की शादी बौसी थाना क्षेत्र के शोभा गांव निवासी अरविंद मंडल के साथ तय हुई थी. 5 अप्रैल को शादी के लिए बारात भी आई. आदिवासी परंपरा के अनुसार गांव के प्रधान गोपाल सोरेन की ओर से ही शादी विवाह की सारी रस्में पूरी की जानी थीं. बिना प्रधान के आदिवासी समुदाय में शादी की रस्म पूरी नहीं होती. आदिवासी परंपरा के मुताबिक देवी-देवताओं को देसी शराब चढ़ाई जाती है. शादी की रस्म अदायगी के दौरान देवी-देवताओं को चढ़ाने के लिए रखी गई करीब दो लीटर शराब घर से बरामद होने के बाद पुलिस ने प्रधान गोपाल सोरेन को गिरफ्तार कर लिया. अब प्रधान की रिहाई तक दूल्हा-दुल्हन लिव इन रिलेशनशिप में रहेंगे.

संथाल आदिवासियों में परंपरा है कि वर पक्ष जब तक दुल्हन को लेकर नहीं जाता, वर को गांव में घुसने भी नहीं दिया जाता. लड़के को गांव में उसी स्थिति में प्रवेश करने दिया जाता है, जब लड़की को विधवा घोषित कर दिया जाए. विधवा घोषित किए जाने के बाद लड़की की कहीं और शादी भी नहीं होती. ऐसे में बारात दो दिन तक रुके रहने के बावजूद जब प्रधान की रिहाई नहीं हुई तब समाज के लोगों ने बीच का रास्ता निकाला.

बगैर शादी के ही लड़की को बारात के साथ विदा कर दिया गया. बताया जा रहा है कि प्रधान के रिहा होकर आने के बाद शादी की रस्म पूरी की जाएगी. इस संबंध में दुल्हन के पिता रसिकलाल मुर्मू ने कहा कि दो सौ बारातियों को दो दिन से खिला रहे थे. अब सामर्थ्य नहीं बची तो परंपरा के विपरीत मजबूरी में ये फैसला लेना पड़ा.

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