शिशुओं को बीमारियों से बचाने के लिये मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता जरूरी

• जन्म के बाद छह माह तक शिशुओं के लिए मां का दूध अनिवार्य, विकसित होगी रोग प्रतिरोधक क्षमता

• मां का पहला गाढ़ा-पीला दूध नवजात के लिए होता है फायदेमंद

बक्सर ।। फागुन माह के आगमन के बाद ठंड का मौसम धीरे धीरे खत्म होने लगता है। इस दौरान न्यूनतम और अधिकतम तापमान में ज्यादा अंतर होने के कारण बीमारियों का खतरा भी अधिक हो जाता है। बदलते मौसम में थोड़ी सी लापरवाही से नवजात व शिशुओं में बार-बार बीमार होने की संभावना बढ़ जाती है। जिससे वह शारीरिक रूप से भी बेहद कमजोर होने सकते है। बार-बार बीमार होना कमजोर रोग-प्रतिरोधक क्षमता का बड़ा संकेत है। इसलिए, जन्म के बाद नवजात की रोग-प्रतिरोधक क्षमता समेत अन्य देखभाल को लेकर पूरी तरह सजग रहें। इसके लिए नवजात की उचित देखभाल के साथ-साथ जन्म के बाद छह माह तक नवजात को सिर्फ मां का ही स्तनपान कराएं। इससे ना सिर्फ बच्चे स्वस्थ्य रहते बल्कि, उसकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत होती है। 

स्तनपान से बच्चों में विकसित होती है रोग- प्रतिरोधक क्षमता : 

अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. अनिल भट्ट ने बताया, मां के दूध को शिशु का प्रथम टीका कहा गया है, जो छह माह तक के बच्चे के लिए बेहद जरूरी है। शिशु को जन्म के पश्चात छह माह तक सिर्फ और सिर्फ मां के ही दूध का सेवन अनिवार्य माना गया है। मां का दूध बच्चों के लिए अमृत के समान होता और स्वस्थ्य शरीर निर्माण के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया, उचित पोषण से ही बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास होगा। मां के दूध में मौजूद पोषक तत्व जैसे पानी, प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट मिनरल्स, वसा, कैलोरी, शिशु को न सिर्फ बीमारियों से बचाते, बल्कि उनमें रोग-प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाते हैं। इसके साथ ही बच्चे की पाचन क्रिया भी मजबूत होती है। 

संक्रामक बीमारी से भी रखता है दूर : 

राष्ट्रीय पोषण मिशन के जिला समन्वयक महेंद्र कुमार ने बताया, नवजात के स्वस्थ शरीर निर्माण के लिए जन्म के बाद एक घंटे के अंदर नवजात को मां का दूध पिलाएं। मां का पहला गाढ़ा-पीला दूध नवजात के लिए काफी फायदेमंद होता है। मजबूत रोग-प्रतिरोधक क्षमता संक्रामक बीमारी से भी दूर रखता है। इसलिए, बच्चों की रोग- प्रतिरोधक क्षमता को लेकर शुरुआती दौर से ही सजग रहें। नवजात के स्वस्थ शरीर निर्माण के लिए नवजात का उचित देखभाल सबसे महत्वपूर्ण है। इसे सुनिश्चित करने में सबसे बड़ा योगदान नवजात की मां का ही होता है। अगर शुरुआती दौर में ही बच्चे की रोग-प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी तो नवजात के स्वस्थ शरीर का निर्माण होगा और वह आगे भी शारीरिक रूप से मजबूत होगा। 

छह माह के बाद नवजात को ऊपरी आहार जरूरी : 

'छह माह के बाद बच्चे के सतत विकास के लिए ऊपरी आहार की जरूरत पड़ती है। लेकिन, इस दौरान यह ध्यान रखना सबसे ज्यादा जरूरी हो जाता है कि उसे कैसा आहार दें। नवजात को छह माह के बाद ही किसी प्रकार का बाहरी या ऊपरी आहार दें। छह माह तक सिर्फ और सिर्फ मां का ही स्तनपान कराएं। इसके अगले कम से कम से कम दो वर्षों तक ऊपरी आहार के साथ मां का स्तनपान भी जारी रखें। साथ ही, लालन-पालन के दौरान साफ-सफाई का भी विशेष ख्याल रखें। बच्चों को गोद लेने के पहले खुद अपने हाथों को अच्छी तरह से धो लें, बच्चों को हमेशा साफ कपड़ा पहनाएं, गीला व गंदा कपड़ा से बच्चे को हमेशा दूर रखें। इससे वह संक्रामक बीमारी से दूर रहेगा।' - तरणि कुमारी, जिला प्रोग्राम पदाधिकारी, आईसीडीएस, बक्सर

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