प्रखंड क्षेत्र में 32 से 35% रोपनी का अनुमान,पिछले वर्ष 80% हो चुकी थी रोपनी

अनिता पाण्डेय


नुआंव कैमूर ।। प्रकृति की प्रतिकूलता की वजह से सूखे की आहट के बीच पिछले दिनों हुई बारिश किसानों के लिए संजीवनी साबित हो रही है । किसानों के मुरझाए चेहरे फिर से खिले खिले दिखाई दे रहे हैं । और ऐसा हो भी क्यों नहीं, जब किसानों की उम्मीद टूट रही थी वैसी स्थिति में हुई बारिश थोड़ी हीं सही उनकी कृषि संबंधी गतिविधियों में अपेक्षित गति लाने का काम किया ।अभी एक सप्ताह पहले तक प्रखंड क्षेत्र में धान की रोपनी का आंकड़ा बमुश्किल से से पांच से सात प्रतिशत तक पहुंचा था अब वह एकाएक उछाल मारकर 32 से 35% तक पहुंच गया है । कृषि विभाग के सहायक प्रबंधक अंबरीश सिंह के अनुसार मानसून के कम सक्रिय रहने के कारण धान की रोपनी काफी प्रभावित हुई है । पिछले वर्ष इस समय तक  लगभग 80% तक रोपनी हो चुकी थी जबकि इस बार अभी तक 32 से 35% तक ही रोपनी का अनुमान है । एक सप्ताह पहले तक स्थिति काफी खराब थी लेकिन बीते दिनों हुई बारिश की वजह से रोपनी के कार्य में काफी तेजी आई है । उन्होंने स्वीकार किया कि रोपनी पिछड़ रही है फिर यदि प्रकृति साथ दे तो प्रखंड के परिश्रमी किसान धान लगाने योग्य खेत में शत प्रतिशत रोपनी कर लेंगे । अभी भी समय है यदि पौधों की उचित ढंग से देखभाल की जाए तो अच्छा उत्पादन हासिल किया जा सकता है । पछैती प्रजाति के धान के पौधों को भी लगाया जा सकता है लेकिन प्रखंड के किसानों के समक्ष समस्या है कि बहुत कम किसान ही इस प्रजाति के पौधों का बिचड़ा डालते हैं । प्रखंड क्षेत्र में लगभग 7929 हेक्टेयर में धान लगाया जाता है । अभी तक जिस स्तर पर रोपनी के आंकड़े पहुंचे है उस स्तर तक 10 जुलाई तक ही पहुंच जाना चाहिए था । इस समय तक लगभग 80% रोपनी हो जानी चाहिए थी । फिर भी ऐसा विश्वास है कि किसानों के परिश्रम के बदौलत लक्ष्य प्राप्त कर लिया जाएगा । बता दे कि मानसून की बेरुखी से प्रखंड क्षेत्र में धान की रोपनी काफी प्रभावित हो रही थी । जो किसान साधन संपन्न थे वे हीं थोड़ा बहुत रोपनी करा रहे थे । पूरी तरह से मानसून और नहर पर निर्भर किसानों की रोपनी बंद थी क्योंकि न तो मानसून बरस रहा था और न हीं नहरों में पानी था । नदियों में भी पानी की कमी की वजह से लगाए गए पंप कैनाल शोभा की वस्तु बने हुए थे । लेकिन पिछले दिनों हुई बारिश किसानों के लिए संजीवनी बन कर आई । नहरों में भी पानी आ गया और नदियों में पानी आने के कारण पंप कैनाल भी चलने काम करने लगे जिसके कारण धान की रोपनी में अपेक्षित गति मिल सकी है ।

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