उपेक्षाओं के शिकार हुए महान समाजवादी नेता पूर्व सिंचाई मंत्री स्वर्गीय सच्चिदानंद सिंह

रामगढ़ से राजीव कुमार पाण्डेय कि रिपोर्ट


रामगढ़।। ग्राम भारती महाविद्यालय और ग्राम भारती महिला विद्यापीठ रामगढ़ की स्थापना और विकास कई तरह का रोचक इतिहास अपने भीतर समेटकर बैठा है।आज जबकि शिक्षा के क्षेत्र में कृषि मंत्री सुधाकर सिंह जी के पहल से रामगढ़ क्षेत्र के उच्च कोटि के संस्थान को पुनर्जीवन मिला है तो ये समय उचित है कि इसी संस्थान के नाम से जुड़े ग्राम भारती महाविद्यालय की स्थापना का इतिहास भी कुरेदा जाए ताकि आज की पीढ़ी को संज्ञान रहे कि जिन संस्थानों में वे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं इनके लिए पूर्वजों ने कितना संघर्ष किया है।

पहले बात करते हैं ग्राम भारती महाविद्यालय की जो रामगढ़ में एकमात्र पूर्ण मान्यता प्राप्त महाविद्यालय है।

इस महाविद्यालय की स्थापना 70 के दशक में बिहार के पूर्व सिंचाई मंत्री और महान समाजवादी नेता स्वर्गीय सच्चिदानंद सिंह ने की थी।परंतु उनके लिए ये इतना आसान नहीं रहा ।सर्वप्रथम तो पर्याप्त भूमि प्राप्त करना था जिसके लिए रामगढ़ के मदनमोहन मालवीय बनकर स्वर्गीय सच्चिदा बाबू आगे बढ़े। बंदीपुर गांव के स्वर्गीय बाबू रंगनाथ सिंह उर्फ रंगी सिंह सबसे पहले आगे आए और भूमि के सबसे बड़े दानकर्ता बने।सच्चिदा बाबू और स्वर्गीय रंगनाथ सिंह जी आपस में परम मित्र थे।

बाद में रामगढ़ महाविद्यालय के लिए और लोग भी भूमि देने के लिए आगे आए।

परंतु अभी आगे की राह इतनी आसान नहीं रही।तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री और कांग्रेस सरकार महाविद्यालय को मान्यता देने को तैयार नहीं थी।स्वर्गीय सच्चिदा बाबू को बहुत संघर्ष झेलना पड़ा और अंत में उन्होंने महाविद्यालय की मान्यता के लिए आमरण अनशन की घोषणा कर दी और तब तक अन्न जल ग्रहण नही किया जब तक सरकार ने महाविद्यालय को मान्यता देने का ऐलान नहीं कर दिया।

वे सच्चिदा बाबू थे जिन्होंने ग्राम भारती महाविद्यालय के लिए जान की बाजी तक लगा दिया।

आज ये सबसे बड़ा सच है कि जिस तरह पंडित मदनमोहन मालवीय की देन काशी हिंदू विश्वविद्यालय हैउसी तरह रामगढ़ का ग्राम भारती महाविद्यालय स्वर्गीय सच्चिदा बाबू की देन है परंतु आश्चर्य और दूख इस बात का है कि आज का मीडिया हो या नेतागण इतिहास के इस पक्ष पर चर्चा तक नही करते।

ग्राम भारती महाविद्यालय में संस्थापक के रूप में स्वर्गीय रंगनाथ सिंह जी की प्रतिमा के साथ सच्चिदा बाबू की भी प्रतिमा स्थापित होनी चाहिए।शायद उस महापुरुष के प्रति महाविद्यालय की सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी।

अब आते हैं ग्राम भारती महिला विद्यापीठ रामगढ़ के अतीत और इतिहास पर।इसकी व्याख्या संक्षिप्त रूप से अगर एक वाक्य में की जाए तो सबसे सटीक व्याख्या यही होगी कि ये विद्यापीठ ग्राम भारती महाविद्यालय की सहोदर बहन है।

क्योंकि इन दोनो महा विद्यालय के जन्म दाता एक ही व्यक्ति हैं सच्चिदा बाबू।

इस संदर्भ में एक दैनिक अखबार में हमने लिखा भी था जिसे पढ़कर विद्यापीठ की प्रिंसिपल श्रीमती सीतामढ़ी जी ने फोन करके मुझे इस बात के लिए धन्यवाद दिया कि संस्थापक सच्चिदा बाबू का नाम मैने सबको याद दिला दिया।

परंतु प्रिंसिपल मैडम को इस बात का अत्यंत दुःख है कि मीडिया महाविद्यालय के लिए भूमि खरीदने में कॉलेज के शिक्षकों और कर्मचारियों की मेहनत ,त्याग की चर्चा नहीं कर रहा।वैसे ये बात सच है कि ग्राम भारती महिला विद्यापीठ अगर आज खड़ा है तो इसमें उसके शिक्षकों और कर्मचारियों का अतुल्य योगदान है।

ग्राम भारती महिला विद्यापीठ के प्रांगण में आज से बीस साल पूर्व इसके संस्थापक स्वर्गीय सच्चिदा बाबू की एक प्रतिमा स्थापित की गई थी।परंतु ये आज की राजनीति की विडंबना देखिए कि बहुत पहले ये प्रतिमा रात के अंधेरे में असामाजिक तत्वों द्वारा तोड़ दी गई।और आगे पुनः उसे पुनर्स्थापित करने का प्रयास नही किया गया।

शायद ये स्वर्गीय सच्चिदा बाबू का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जिन शिक्षण संस्थानों के लिए वो संघर्ष किए उन्हें खड़ा किया आज उन संस्थानों में उनकी एक प्रतिमा तक नहीं स्थापित है।

ये राजनीति की विडंबना है या नियति का क्रूर खेल ये तो आनेवाला कल बताएगा परंतु वर्तमान समाजवादी सरकार के साथ साथ संस्था से यह प्रार्थना अवश्य की जा सकती है कि दोनो महाविद्यालयों में स्वर्गीय सच्चिदा बाबू की स्मृति के लिए कम से कम एक प्रतिमा उनकी अवश्य स्थापित की जाए।

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