खंड-खंड कर डाला देश की आंतरिक ढांचा को राजनेताओं ने -वरिष्ठ कलमकार


कैमूर--देश की स्थिति स्थिति को देखते हुए जिला के दुर्गावती प्रखंड निवासी वरिष्ठ कलमकार श्याम सुंदर पांडे के द्वारा कहा गया कि स्वतंत्र  राज नेताओ के कुचक्र से देश का सामाजिक ढांचा आज टुकड़े-टुकड़े हिस्सो में बिखरा हुआ नजर आ रहा है। कारण की जातीय आधार पर सुविधा जातीय आधार पर नौकरी जातीय आधार पर चुनाव में टिकट जहां देखो केवल जातियों की ही बात करते देश में लोग दिख रहे हैं। जिसका नतीजा  है कि चुनाव में भी मतदान जातियों के आधार पर ही लोग करते हैं जिसके कारण अच्छे उम्मीदवार भी चुनाव हार जाते हैं। देश में जातियो को ही नहीं बाटा गया चुनाव को भी बांट दिया गया  किसी राज्य में जनवरी में चुनाव होता है तो किसी राज्य में मार्च में कहीं अप्रैल यानी पूरे पांच वर्ष का कार्य काल चुनाव में ही व्यतित हो जाते है न राज नेताओं को सोचने का समय मिल पाता है न ही जनता को हर समय आचार संहिता लागू रहता है जिसके वजह से कार्य नहीं हो पाता है। यहां तक की नगर परिषद से लेकर पंचायत तक एवम पैक्स तक के चुनाव को भी बांट दिया गया जब देखो पूरे देश में ये जो चुनावी खेल है पांच वर्षों तक लगातार चलता रहता है फिर बारी आ जाती है लोकसभा के चुनाव की। पहले देश को हिंदू मुसलमान में बांटा गया फिर हिंदुओं में अगडी पिछड़ी फिर अगड़ी पिछड़े में अति पिछड़ा दलित महा दलित महिला कमजोर वर्ग की महिला विकलांग यहां तक की जंगलों में रहने वाले जनजाति लोगों को भी कई टुकड़ों में बांट दिया गया ताकि चुनाव आसानी से जीता जा सके। लेकिन इसी गणित के वजह से चुनाव में हार भी होती है इसका आकलन कभी राजनेताओं ने नहीं किया क्योंकि एक जाति के लोग दूसरे जाति के उम्मीदवार को वोट नहीं देते आखिरकार यह किसकी देन है। देश में विभिन्न जातीय धर्म संप्रदाय के लोग रहते हैं और सुविधा का जो आधार है गरीबी न होके जातिगत बना दिया गया क्या इससे देश मजबूत हो रहा है या कमजोर हो रहा है। चुनाव में इसका खामियाजा भी राजनेताओं को भी भुगतना पड़ रहा है साथ में जनता भी भुगत रही है इस पर राजनेता कब मंथन करेंगे और ध्यान देगे। विभिन्न दल के क्षेत्रीय पार्टी बना कर किसी विशेष राज्य तक ही सीमित होकर रह जाना क्या यही राजनीति का पैमाना है। आज कांग्रेस की जो बनाई हुई राजनीति है देश में फूट डालो बाटो तुष्टीकरण करो की जो अभी  चल रही हैं ठीक है। यही तक राजनीति नहीं रुकी वह तो जाति और चुनाव को भी टुकड़े-टुकड़े में कर डाली की परंपरा इस देश मे बना डाली जो अभी भी चल रही है। वर्तमान समय में जो देश की कमान संभाल कर सत्ता में बने हुए लोग बैठे हैं इन सब परंपराओं में सुधार पूर्ण रूप से कब तक लायेगे या हिंदू मुसलमान करके वोट मांगते रहेंगे। इन सब नियमो के चलते देश की परंपरा बिगड़ चुकी है इसे सुधारने में समय तो लगेगा ही लेकिन इस दिशा में ठोस पहल करने की जरूरत है और ए पहल भारतीय राजनेताओं को ही करना पड़ेगा अन्यथा जनता के साथ-साथ राजनेता भी इससे अछूते नहीं रह पाएंगे। जातियों की राजनीति के चलते चुनाव हारेंगे भी और जीतेंगे भी, लेकिन जनता के बीच की दूरियां कभी कम नहीं होगी।  अपराधी छवि वाले राजनेताओं के अपराध की श्रेणी को तय कर उन्हे निश्चित समय में यदि न्याय नहीं दिलाने व्यवस्था की गई तो अपराध पर भी नियंत्रण नहीं पाया जा सकता। ऐसा नहीं होने से देश  बटता हुआ नजर आ रहा है क्योंकि अपराधी प्रवृत्ति के लोग अपराधी के साथ चले जा रहे हैं जिसके चलते सही प्रवृत्ति के लोगों का जीना दुभर हो गया है।

रिपोर्टर

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