संविधान व गणतंत्र के नाम पर छलावा, तथाकथित राष्ट्रवादी फंसे हैं भ्रमजाल में- कुमार चन्द्र भुषण

"संविधान है तो जातिगत कानून सर्वसम्मति से पारित कैसे, और गणतंत्र है तो किसी पद पर जाति व लिंग के आधार पर सुविधा क्यों?"

 संवाददाता श्याम सुंदर पांडेय की रिपोर्ट 


कैमूर-गण कहते है जनता को और तंत्र कहते हैं उसकी देखभाल करने वाले को और दोनों की देखभाल करने वाले को कहते हैं राजनेता, आज देश में गण है जिस पर कानून लागू है, लेकिन तंत्र और राजनेता दोनों इस दायरे से बाहर होकर काम कर रहे हैं, जो संविधान व गणतंत्र के नाम पर एक छलावा साबित हो रहा है। आज सवर्ण समाज को भ्रमित करने और बांटने की राजनीति देश में हो रही है। अन्य वर्ग सहित आम जनता भी इस कानूनी जाल में फंस चुकी है उक्त बातें कैमूर जिला के कुदरा प्रखंड के अंतर्गत पट्टी गांव में स्थित राष्ट्रीय सवर्ण समाज संघ प्रदेश कार्यालय में राष्ट्रीय सवर्ण समाज संघ के बिहार प्रदेश अध्यक्ष सह स्वतंत्र कलमकार कुमार चन्द्र भुषण तिवारी ने अपने शिष्टाचार भेंट के दौरान कहा। उन्होंने कहा कि संविधान शब्द का सीधा अर्थ है सभी के लिए सामान कानून की प्रक्रिया यानी सबके लिए एक समान अधिकार तो फिर भेदभाव युक्त कानून क्यों।भारतीय संविधान की धारा अनुच्छेद 14 में लिखा है कि सभी नागरिकों को कानून के सामने समानता और कानूनों के समान संरक्षण का अधिकार है,सरकार को सभी लोगों को समान अधिकार देने होंगे और इस अनुच्छेद के तहत, किसी भी व्यक्ति को कानून के तहत समान अधिकारऔर सुरक्षा मिलनी चाहिए। हमारा संविधान लिंग, जाति, धर्म या अलग अलग क्षेत्रों के बावजूद सभी लोगों को कानून के तहत समान व्यवहार का अधिकार देता है, कानून के समक्ष समानता' और 'कानूनों के समान संरक्षण' की अवधारणाएं, सभी लोगों को बिना भेदभाव के समान न्याय दिलाने के लिए बनाई गई । पर वही अनुच्छेद 15 के तहत जाति के आधार पर भेदभाव को रोकने के लिए कानून बनाए जाते हैं, इसके अलावा अनुच्छेद 16 के तहत भी जाति के आधार पर भेदभाव को रोकने के लिए भी कानून बनाए जाते हैं इस अनुच्छेद के तहत, किसी भी नागरिक के साथ धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान, या इनमें से किसी के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।इस अनुच्छेद के तहत सभी नागरिकों को सरकारी नौकरियों में समान अवसर देने की बात की गई है। यह अनुच्छेद, जाति, धर्म, लिंग, जन्म स्थान, वंश, या निवास के आधार पर भेदभाव को रोकने के लिए बनाया गया है। पर इसी अनुच्छेद के तहत जातियों के आधार पर भेदभाव कर जाति विशेष को सरकारी नौकरियों में आरक्षण की भी अनुमति देता है, और इतना ही नहीं इसी अनुच्छेद के तहत जातियों के आधार पर कुछ जाति विशेष को विशेष महत्व दिया गया है। तो क्या यह संविधान के तहत है क्या इसे संविधान कहा जा सकता है? गणतंत्र यानी इस देश में निवास करने वालों का गण इस देश में मताधिकार से यह सुनिश्चित करेंगे की उनका प्रतिनिधि कौन होगा। पर तथाकथित संविधान के तहत पहले ही यह सुनिश्चित हो जाता है कि किस सिट पर किस जाति के लोग चुनाव लड़ सकते हैं। एक तरफ तो संविधान कहता है कि किसी धर्म, जाति, लिंग, क्षेत्र आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए पर इसी संविधान में कहीं जाति विशेष के आधार पर एक वर्ग विशेष के साथ भेदभाव किया जाता है। देखा जाए तो तथा कथित दलितों द्वारा आए दिन दूसरे जातियों को जाति सूचक शब्दों का प्रयोग करते हुए अनेकों गालियां दिया जाता है पर उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं होता, जबकि तथा कथित दलितों के कहने मात्र से अन्य वर्ग के लोगों के ऊपर मामला दर्ज कर गिरफ्तार किया जाता है, जिससे कि सवर्ण वर्ग के साथ ही अन्य वर्ग के लोग पीड़ित हैं। पर संविधान व गणतंत्र दिवस के अवसर पर अधिकांश जगहों पर देखने को मिलता है की सवर्ण समाज के साथ ही अन्य वर्ग के लोग जातिगत कानूनों का विरोध न कर संविधान व गणतंत्र दिवस के नाम पर भ्रमित हो खुशी में झूम उठते हैं जो कि देश के भविष्य के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। यदि सचमुच संविधान सबको समान अधिकार देता है तो आम नागरिकों के अधिकारों की की रक्षा करने की जिम्मेदारी भी गण और तंत्र दोनों के रक्षको की है। लेकिन दोनों के रक्षको की कोई योग्यता या वरीयता की मापदंड को संविधान के दायरे से बाहर रखा गया जिसका परिणाम है कि देश में नागरिकों के साथ असमानता का व्यवहार और भेदभावपूर्ण कानून दिखाई दे देता है जो देश के लिए के और गण के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।

रिपोर्टर

संबंधित पोस्ट