
देश सेवा के नाम पर राजनीतिक व्यापार में संलग्न राजनेता
- कुमार चन्द्र भुषण तिवारी, ब्यूरो चीफ कैमूर
- Feb 09, 2025
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संवाददाता श्याम सुंदर पांडेय की लेखनी से
दुर्गावती(कैमूर)--जनता के भावुकता की आड़ में निश्छल देश की जनता के साथ धोखा करते राजनेता, उनकी गाढ़ी कमाई से अट्टालिका और महल खड़ा कर लेते हैं। देश की राजनीति को लोग देश सेवा के रूप में जानते है और राजनेता भी देश की सेवा के लिए राजनीति में कदम रखता है। जनता जिसका व्यक्तित्व साफ सुथरा और पारदर्शी होता था जनता उनको ही अपना नेता चुनती थी।
लेकिन वह समय अब जाता रहा राजनीति में वैसे लोगों का पदार्पण हो गया है जो समाज के बीच नकारात्मक सोच रखने वाले और दुश चरित्र अपराधी प्रवृत्ति की निगाहों से देखे जाते हैं। आज देश की जनता को आपसी ताल मेल की जगह, उनके सुख सुविधा की जगह लोकतंत्र के हथियार से छिन्न भिन्न करके अपना मतलब साधने में लगे हैं। अलग-अलग मंचों से एक दूसरे के राजनीतिक पद पर और उनके राजनीति पर जगह-जगह टिप्पणीया करते देखे जाते हैं और उनके सिद्धांतों की आलोचना करते हैं ताकि जनता के सामने यह सिद्ध कर सके की हम ही असली देश के सेवक है और जनता की सेवा करते रहेंगे। जिस राजनीतिक नेताओं के पास अपनी कोई विरासत नहीं देखते-देखते वह एक बड़ी विरासत और बड़ा महल खड़ा कर लेते है और जनता सब कुछ जानते हुए भी जातिवादी के चक्कर में उसे देशभक्त मानकर उसका समर्थन कर देती है। यही राजनेता जब नेताओं के लिए पेंशन व सुख सुविधा के लिए कानून बनते हैं तो अपना मुंह बंद कर लेते और जनता की गाढ़ी कमाई से देश की सेवा करने वाले राजनेता सुविधा लेना प्रारंभ कर देते। अपने सुख सुविधा के लिए देश में मिल रहे सेवा करने वाले कर्मचारियों के पेंशन को बंद कर अपना पेंशन भत्ता,सस्ता भोजन यात्रा फोन की सुख सुविधा चालू कर लिए और जनता को पता तक नहीं चला यह कैसी देश सेवा है। इन राजनेताओं के द्वारा संसद के अंदर नोक झोक करते देखे जाते हैं राजनेता, तो क्या अपनी ईमानदारी का दम भरने वाले लोग संसद के अंदर इसका विरोध किया या कुछ बोले कि राजनीति एक सेवा है सुख सुविधा और पेंशन का बिल लागू न किया जाए हम जनता के सेवक हैं जनता को देने के सिवाय जनता का खाने का अधिकार मुझे नहीं है, नहीं क्योंकि जनता की कमाई खाने के लिए सारी ईमानदारी को ताखों पर रखकर सभी एक हो गए। ये जितनी बार चुनाव जीतेंगे उतनी बार इनका पेंशन बनता जाएगा और सुख सुविधा बढ़ती जाएगी यह है चरित्र देश के सेवकों का। और जब संसद में बहस होगी तो कोई भागने लगता है कोई चिल्लाने लगता है, जनता के बीच कोई जाकर अपने को अच्छा बताने लगता है लेकिन अपनी बारी आती है तो खामोशी क्यों। इसलिए जनता को इनके नकली चेहरे को पहचानने की जरूरत है। ये मंच पर कुछ बोलते हैं और सदन में कुछ और अपना मुद्दा आता है तो हो जाते हैं चुप। आज का राजनेता बहरूपिया बन गया है जो समानता के अधिकार का उल्लंघन कर योग्यता की आहुति देकर बाली चढ़ा रहा है ताकि कभी भी आपसी भाई चारा जनता के बीच में न बन सके और हम सब मलाई काटते रहे अब इसके ऊपर उठ कर जनता को सोचने और विचार करने की जरूरत है ताकि जनता के पैसे की लूट बंद हो सके।
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