पुरानी राजनीति की नीति पर ही कुर्सी की तलाश कर रहे राजनेता

 संवाददाता श्याम सुंदर पांडेय की रिपोर्ट 

दुर्गावती(कैमूर)-- 2025 का बिहार का विधानसभा चुनाव इस बार भी लगता है जातीय आधार पर ही लड़ा जाएगा राजनेताओं को लगता है जातीय आधार के बाद कोई दूसरा रास्ता नहीं दिखाई दे रहा है। विधानसभा चुनाव के मद्दे नजर राजनीतिक दल लगता है पुराने ढर्रे पर चल कर ही जात पात की राजनीति में बीच का रास्ता तलाश रहे हैं अभी तक कोई नया रास्ता नई सोच और तरीके कहीं से दिखाई नहीं दे रहा है न कोई उम्मीद है। किसी मंच से जब राजनेता बोलता है कि यह देश 140 करोड़ वासियों का है तो फिर जाति आधारित टिकट जाति आधारित योजना का मतलब क्या है। सूर्य की गर्मी हवा रोशनी कभी मानव में भेद नहीं किया तो आज ऐसा क्यों हो रहा है। जब कुछ लोगों के लिए ही कानून बनाकर सुविधा प्रदान कर दिया जाता है तो संबोधन में 140 करोड़ वासियों के बोलने का मतलब क्या है। सभी पार्टियां अपना अपना आईटी सेल बनाकर विधानसभा चुनाव के मद्दे नजर प्रचार प्रसार में उतरने की राजनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। लेकिन विधानसभा के लिए समग्र विकास समान शिक्षा समान कानून के तहत रोजगार नौकरी भुखमरी बढ़ते अपराध आतंकवाद जैसे समस्याओं से निपटने के तरीके को जनता के बीच कैसे रखा जाए और कैसे किया जाए इस पर कहीं से कोई आवाज नहीं आ रही है न आने की उम्मीद है। समाज में बढ़ते जातीय नफरत देश में योग्यता का चीर हरण जो हो रहा है के साथ साथ न्यायालय में लंबित मामले भ्रष्टाचार की नीति शहर और गांव तक फैले अतिक्रमण पर कहीं से भी कोई न बयान नहीं आ रहा है न उस नीति पर काम होने की संभावना है। केवल पुराने ढर्रे पर चलकर किसी तरह सत्ता की कुर्सी हासिल कर लेना है लगता है इस बार के चुनाव में भी यही अहम मुद्दा होगा। आने वाले चुनाव में बुद्धिजीवी वर्ग को सावधानी पूर्वक विश्लेषण और समीक्षा करके ही वोट देने की जरूरत है, जातीय उन्माद में उन्मत्त लोगों की बातों पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है। यदि मतदाताओं में सचमुच बुद्धिजीवी वर्ग अपने विवेक का सही प्रयोग कर मतदान करें तो जातीय मद में उन्मत्त लोगों को बहुत बड़ा आघात होगा और जातीय आधारित समीकरण पर आहिस्ता आहिस्ता लगाम लगना प्रारंभ हो जाएगा।


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