
सूर्य ग्रहण में यह ना करे
- एबी न्यूज, डेस्क संवाददाता
- Jul 12, 2018
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सूर्य ग्रहण जो भारत में दिखाई तो नही देगा लेकिन पूरा असर रहेगा
हिन्दू धर्म और वैदिक ज्योतिष में ग्रहण का बड़ा महत्व है। क्योंकि ग्रहण का प्रभाव पृथ्वी पर उपस्थित सभी मनुष्यों पर होता है। हर साल पृथ्वी पर सूर्य और चंद्र ग्रहण घटित होते हैं। वर्ष 2018 में कुल 5 ग्रहण दिखाई देंगे। इनमें 3 सूर्य ग्रहण और 2 चंद्र ग्रहण होंगे। वहीं आधुनिक विज्ञान के अनुसार ग्रहण एक खगोलीय घटना है। जब किसी एक खगोलीय पिंड की छाया दूसरे पिंड पर पड़ती है, तो इस अवस्था को ग्रहण कहा जाता है। साल 2018 में होने वाले ये तीनों सूर्य ग्रहण आंशिक होंगे और भारत में नहीं दिखाई देंगे। हालांकि दुनिया के अन्य देशों में इनकी दृश्यता होगी। वहीं इस साल होने वाले दोनों चंद्र ग्रहण भारत समेत विश्व के कई देशों में दिखाई देंगे। ये दोनों पूर्ण चंद्र ग्रहण होंगे। हिन्दू धर्म में सूर्य और चंद्रमा का खास महत्व है। बिना सूर्य और चंद्रमा के पृथ्वी पर जीवन की कल्पना करना असंभव है। वैदिक ज्योतिष में सूर्य को पिता, पूर्वज और उच्च सेवा का कारक माना गया है। वहीं चंद्रमा को मां और मन का कारक कहा गया है। इस वजह से सूर्य और चंद्र ग्रहण का घटित होना मानव समुदाय के जीवन पर प्रभाव डालता है।
ज्योतिषाचार्य पं.अतुल शास्त्री के अनुसार इस बर्ष सूर्य ग्रहण 2018: दिनांक, समय और प्रकार का है
वर्ष 2018 में कुल 3 सूर्य ग्रहण होंगे। इनमें पहला सूर्य ग्रहण 16 फरवरी को, दूसरा सूर्य ग्रहण 13 जुलाई और तीसरा सूर्य ग्रहण 11 अगस्त को दिखाई देगा। हालांकि ये तीनों सूर्य ग्रहण भारत में दृश्यमान नहीं होंगे इसलिए भारत में इनका सूतक और धार्मिक कर्मकांड मान्य नहीं होगा। तीनों सूर्य ग्रहण का विवरण इस प्रकार है:
ग्रहण का दिनांक समय
ग्रहण का समय15-16 फरवरी 2018. 00:25:51 से सुबह 04:17:08 बजे तक
13 जुलाई 2018प्रातः 07:18:23 बजे से 09:43:44 बजे तक
11 अगस्त 2018दोपहर 13:32:08 से शाम 17:00:40 तक
अतुल शास्त्री जी बताते है कि ग्रहण काल में इस प्रकार की सावधानियां बरतनी चहिऐ
हिंदू धर्म में जहां ग्रहण के महत्व को बताया गया है। वहीं ग्रहण से होने वाले दुष्प्रभावों का उल्लेख भी किया गया है। इसी वजह से ग्रहण के दौरान कुछ कार्यों को वर्जित माना गया है। इनमें किसी नए कार्य की शुरुआत करना, भोजन, भगवान का पूजन समेत कुछ कार्य करना निषेध है। ग्रहण शुरू होने से पूर्व सूतक लगने की वजह से इन कार्यों की मनाही होती है। दरअसल सूतक काल को अशुभ समय माना जाता है। सूर्य व चंद्र ग्रहण लगने से कुछ समय पहले सूतक काल प्रारंभ हो जाता है। ग्रहण की समाप्ति पर स्नान के बाद सूतक काल समाप्त हो जाता है। हालांकि बुजुर्ग, बच्चों और रोगियों पर ग्रहण का सूतक मान्य नहीं होता है अत: उन पर किसी तरह की बाध्यता नहीं होती है।
अतुल जी बताते है कि ईश्वर का ध्यान, भजन और व्यायाम करें।देवी-देवताओं की मूर्ति और तुलसी के पौधे का स्पर्श नहीं करना चाहिए।सूर्य व चंद्र से संबंधित मंत्रों का उच्चारण।सूतक काल के समय भोजन ना बनाएं और ना खायें।सूतक समाप्त होने के बाद ताज़ा भोजन करें।सूतक काल से पहले तैयार भोजन में तुलसी के पत्ते डालकर भोजन को शुद्ध करें।मल-मूत्र और शौच नहीं करें।दाँतों की सफ़ाई, बालों में कंघी आदि नहीं करें।ग्रहण समाप्त होने पर गंगाजल के छिड़काव से घर का शुद्धिकरणग्रहण समाप्ति पर स्नान के बाद भगवान की मूर्तियों को स्नान कराएं और पूजा करें।
ग्रहण और गर्भवती महिलाएं
हिन्दू धर्म से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार गर्भवती महिलाओं पर ग्रहण का बुरा असर पड़ता है। इसलिए सूर्य और चंद्र ग्रहण के समय गर्भवती महिलाओं को कुछ विशेष सावधानी बरतने के निर्देश दिये जाते हैं। ग्रहण के समय गर्भवती महिलाओं को घर से बाहर निकलने और ग्रहण देखने से बचना चाहिए। वहीं गर्भवती महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई, काटने और छीलने जैसे कार्य भी नहीं करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि ग्रहण के समय चाकू और सुई का उपयोग करने से गर्भ में पल रहे बच्चे के अंगों को क्षति पहुंच सकती है।
ग्रहण में मंत्र जप
ग्रहण के समय ईश्वर की मूर्ति का स्पर्श और पूजन वर्जित है लेकिन ध्यान और मंत्र जाप का बड़ा महत्व है। ऐसे में सूर्य ग्रहण के समय निम्न मंत्रों का जाप करना चाहिए।
सूर्य ग्रहण के समय इस मंत्र का जाप करें
"ॐ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्य: प्रचोदयात् ”
ग्रहण को लेकर धार्मिक कथा
हिन्दू धर्म से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि समुद्र मंथन से उत्पन्न अमृत को दानवों ने देवताओं से छीन लिया। इस दौरान भगवान विष्णु ने मोहिनी नामक सुंदर कन्या का रूप धारण करके दानवों से अमृत ले लिया और उसे देवताओं में बांटने लगे, लेकिन भगवान विष्णु की इस चाल को राहु नामक असुर समझ गया और वह देव रूप धारण कर देवताओं के बीच बैठ गया। जैसे ही राहु ने अमृतपान किया, उसी समय सूर्य और चंद्रमा ने उसका भांडा फोड़ दिया। उसके बाद भगवान विष्णु ने सुदर्शन च्रक से राहु की गर्दन को उसके धड़ से अलग कर दिया। अमृत के प्रभाव से उसकी मृत्यु नहीं हुई इसलिए उसका सिर व धड़ राहु और केतु छायाग्रह के नाम से सौर मंडल में स्थापित हो गए। माना जाता है कि राहु और केतु इस बैर के कारण से सूर्य और चंद्रमा को ग्रहण के रूप में शापित करते हैं।
हिंदू धर्म में ग्रहण को मानव समुदाय के लिए हानिकारक माना गया है। जिस नक्षत्र और राशि में ग्रहण लगता है उससे जुड़े लोगों पर ग्रहण के नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। हालांकि ग्रहण के दौरान मंत्र जाप व कुछ जरूरी सावधानी अपनाकर इसके दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है।
सूर्य ग्रहण कैसै होता है
जब चंद्रमा सूर्य एवं पृथ्वी के मध्य में आता है, तब यह पृथ्वी पर आने वाले सूर्य के प्रकाश को रोकता है और सूर्य में अपनी छाया बनाता है। इस खगोलीय घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
ग्रहण कैसै होते है
पूर्ण सूर्य ग्रहण: जब चंद्रमा पूरी तरह से सूर्य को ढक ले तब पूर्ण सूर्य ग्रहण होता है।आंशिक सूर्य ग्रहण: जब चंद्रमा सूर्य को आंशिक रूप से ढक लेता है तब आंशिक सूर्य ग्रहण होता है।वलयाकार सूर्य ग्रहण: जब चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह न ढकते हुए केवल उसके केन्द्रीय भाग को ही ढकता है तब उस अवस्था को वलयाकार सूर्य ग्रहण कहा जाता है।पूर्ण
ज्योतिष सेवा केंद्र मुंबई संस्थापक
पंडित अतुल शास्त्री सम्पर्क क्रमांक 09594318403/9820819501
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