छाए बादल--- डॉ एम डी सिंह की कलम से

दौड़-धूप कर आए बादल 
सूरज को ढक छाए बादल

मोर मुदित हैं दादुर हर्षित 
झींगुर हर्ष कर रहे प्रदर्शित 
वायु बना रथ दौड़ रहा है
मेघदूत हो रहे आकर्षित

खूब नदी को भाए बादल
सूरज को ढक छाए बादल

पावस धरा को धुलने लगे 
रोम कूप सभी खुलने लगे 
रात तो रात घटाटोप थी 
मार्तंड अमावस गढ़ने लगे

साथ दामिनी लाए बादल
सूरज को ढक छाए बादल

देखो हुई प्रकृति बावली 
है हरियाली भी उतावली
बादल सखा को देख सांवला
लो धरती भी हुई सांवली

सागर के हैं जाए बादल
सूरज को ढक छाए बादल

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