जाग महाकाल जाग-• डॉ एम डी सिंह
- एबी न्यूज, संवाददाता
- Apr 29, 2021
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जाग जाग जाग जाग
जाग महाकाल जाग
तांडव फिर कर प्रचंड
उद्दंडता हो खंड-खंड
खोल नेत्र तीसरी
आज अभी इसी घड़ी
बच न पाए कुछ अखण्ड
विध्वंस की लगे झड़ी
उठ उठ विकराल जाग
जाग महाकाल जाग
दिशाभ्रमित भावों को
अनवरत चिंताओं को
चल आ भस्माभूत कर
जला जला भभूत कर
उठा उठा भर मुट्ठी
उत्तप्त राख प्रसूत कर
रगड़ रगड़ भाल जाग
जाग महाकाल जाग
डम-डम डमरुनाद कर
बम-बम आह्लाद कर
कस मुट्ठी पकड़ बना
त्रिशूल के वाद पर
जिह्वा रुके कंठ रुंधे
व्याधि भी न एक क्रुधे
बजे न अन्य गाल जाग
जाग महाकाल जाग
हैं विषमुख विचर रहे
डर जगत में भर रहे
वे विष के प्रपात से
भुवन सागर भर रहे
झटपट जाग नीलकंठ
गटक गरल ले आकण्ठ
गले धर कराल जाग
जाग महाकाल जाग
नाच शिवा नाच नाच
रोगांणु के सर नाच
जीवांणु के घर नाच
विषाणुओं पर नाच
खोल खोल बाल नाच
अब तो नटराज नाच
तोड़ माया जाल जाग
जाग महाकाल जाग
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