तीन गो गेड़ुरी ठेका खुलला प-- डॉ एम डी सिंह

1-
खूलल ठेका जानि के,धवलैं दारूबाज।
होई खतम अब भइया,कोरोना के राज।।
कोरोना के राज ,नाहीं अब केहू मुई।
मुंह प रहे न जाबा , ना चाहे लागे सुई ।।
चिहा ठाढ़ कविराय,कोरोना उल्टा झूलल।
मनई भइल बा मस्त, दारू क ठेका खूलल।।

2-
लॉकडाउन ना चाहा, हो जा दारूबाज।
जा ठेका खोजा भाय,करा न अउरी काज।।
करा न अउरी काज, रहा सातो दिन निठल्ला।
सट्टी ना कोरोना, पिया दारू करा हल्ला।।
अक्सीजन गर चाहा, कबी जी होजा डाउन।
न त करी कोरोना,नाहीं किछु लाॅकडाउन।।

3-
जोगी जी के राज में, दारू क लग्गल टाल।
त खाली भइल तिजोरी,बा सूबा बेहाल ।।
बा सूबा बेहाल, हे मन तू अब किछु करा ।
भरि जाईं तिजोरी, दारूबाजन के धरा ।।
सुना पता के बात ,कबी! जे ना पी भोगी। 
छू दिही कोरोना, बतावत हउवैं जोगी ।।


गेड़ुरी- कुंडली, धवलैं- दौड़े, जाबा- मास्क,
चिहा ठाढ़- चौंक कर खड़ा होना ,
टाल- खूब ऊंचाई तक सरिया कर रखना 
सूबा- प्रदेश

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