अयोध्या में शुरू हुआ मणि पर्वत के सौंदर्यीकरण का काम, मिर्जापुर के लाल पत्थरों से चमकाई जा रही जर्जर सीढ़ियां

अयोध्या ।। अयोध्या में सौंदर्यीकरण का काम लगातार जारी है । इस बीच पौराणिक महत्व वाले मणि पर्वत की मरम्मत का काम भी किया जा रहा है, जिससे इसका गौरव फिर से लौट सके । राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के साथ-साथ अयोध्या धाम के दूसरे पौराणिक ऐतिहासिक स्थलों को भी सवारने का काम शुरू कर दिया गया है।

राम नगरी के फेमस सावन झूला मेला का मुख्य केंद्र मणि पर्वत को फिर से सवारा जा रहा है। पुरातत्व विभाग  द्वारा संरक्षित प्राचीन मणि पर्वत के जीर्णोद्धार का काम भी शुरू कर दिया गया है।

पहले चरण में मणि पर्वत के गर्भगृह तक पहुंचाने वाली सीढ़ियों को फिर से ठीक किया जा रहा है। अपने अस्तित्व को खो रही सीढ़ियों पर अब मिर्जापुर के लाल पत्थरों को लगाया जा रहा है। दूसरे फेज में मंदिर के मुख्य द्वार से लेकर अन्य परिसरों की मरम्मत की जाएगी। मणि पर्वत की पौराणिकता को संरक्षित करने के लिए पुरातत्व विभाग ने 45 लाख रुपए का बजट पास किया है।

मणि पर्वत की दशा इस कदर खराब हो गई थी कि हल्की बारिश होने के बाद पर्वत के गर्भगृह तक पहुंचने में घंटों का समय लग जाता था। बरसात के मौसम में मणि पर्वत की चढ़ाई बहुत ही दुर्गम हो जाती थी. पहले भी अयोध्या धाम के संत महंतों ने मणि पर्वत के जीर्णोद्धार के लिऐ कई बार आवाज उठाई थी। 1902 में अयोध्या धाम के ऐतिहासिक और पौराणिक स्थलों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए एडवर्ड तीर्थ विवेचनी सभा का गठन किया गया था।

एडवर्ड तीर्थ विवेचनी ने अयोध्या के 148 जगहों को चिन्हित कर उन जगहों पर एडवर्ड तीर्थ विवेचनी के पत्थर लगाए गए थे। जिससे भविष्य में इन धरोहरों को संरक्षित किया जा सके। मणि पर्वत भी इन्हीं में से एक है. माना जाता है कि मणि पर्वत त्रेतायुग से ही अयोध्या में मौजूद है। मणि पर्वत पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित स्मारक है, लेकिन सालों से यह पौराणिक स्थल उपेक्षित रहा. संत-धर्माचार्य लगातार जर्जर मणि पर्वत के सुंदरीकरण को लेकर आवाज उठाते रहे हैं। यही नहीं प्रशासन द्वारा मणि पर्वत पर जर्जर भवन होने की सूचना भी लगाई गई है।

फिलहाल मणिपर्वत परिसर में PAC का कैंप लगा हुआ है. इस प्राचीन धरोहर के संरक्षण को लेकर अब प्रशासन की नींद भी टूट गई है. प्रशासन के दिशा निर्देश के बाद पुरातत्व विभाग के ने मणि पर्वत के सुंदरीकरण का काम शुरू कर दिया है. मणि पर्वत को संजीवनी बूटी का पहाड़ भी कहा जाता है. रामायण में भी इस बात का उल्लेख किया गया है. रामायण के मुताबिक जब लक्ष्‍मण मेघनाद ने युद्ध के दौरान घायल हो गए थे तो सुषेण वैद्य ने हनुमानजी को संजीवनी बूटी लाने के लिए भेजा था।

हनुमानजी पर भारतजी ने शत्रु समझकर वार किया था। तब हनुमानजी मणि पर्वत पर गिर पड़े थे। लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि हनुमानजी प्रभु श्रीराम के भक्त हैं तो भरत को बहुत ही पछतावा हुआ था। यह भी माना जाता है कि जब हनुमानजी फिर से सजीवन बूटी वाला पहाड़ उठाकर ले जाने लगे तो उसका कुछ हिस्सा टूटकर यहां गिर गया था, उसी को लोग मणि पर्वत के नाम से जानते हैं।

रिपोर्टर

संबंधित पोस्ट