४० उम्र के बाद बढ रहा हैं समय से पहले प्रसव का खतरा – स्त्रीरोग विशेषज्ञ

मुंबई ।। करियर के कारण ज्यादातर महिला देर से शादी और चार से पाच साल बाद गर्भधारणा का निर्णय लेती हैं। तब-तक महिला ४० से अधिक हो गई है। ४० उम्र के बाद प्रेग्नेंसी और बच्चे के जन्म के दौरान कई समस्याओं का सामना करना पड सकता है। जैसे की, उनमें समय से पहले बच्चे पैदा होने का खतरा अधिक होता है। गर्भावस्था के ३७ वें सप्ताह से पहले जन्मे बच्चे को प्री मैच्यौर कहा जाता हैं। ऐसी स्थिती में कई बच्चे की जान भी जा सकती हैं। इसक लिए जन्म के बाद बच्चे की सेहत का ध्यान करना काफी जरूरी होता हैं।


मुंबई के अपोलो स्पेक्ट्रा अस्पताल के स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ. डिंपल चुडगर ने कहॉं की, ‘‘करियर के कारण, महिलाएं देर से शादी करती हैं। अधिकांश महिलाएं ३५ के बाद और ४० साल की उम्र में भी गर्भधारण की योजना बनाती हैं। अब एआरटी की मदद से, महिलाओं के लिए वांछित उम्र में मातृत्व के अपने सपने को हासिल करना संभव है। लेकिन देर से गर्भाधान से समय से पहले प्रसव होने का खतरा अधिक होता है।” 

डॉ. डिंपल ने कहा, "४० से ऊपर की महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप, प्रीक्लेम्पसिया, गर्भकालीन मधुमेह, बच्चे में गुणसूत्र संबंधी असामान्यताएं, समय से पहले जन्म होने का खतरा हो सकता हैं। ऐसे शिशुओं को जन्म के बाद लंबे समय तक देखभाल की आवश्यकता होती है। समय से पहले नवजात शिशु को एनआईसीयू में रहा जाता हैं। समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों का पुरा शारीरिक विकास नहीं हुआ होता हैं। अविकसित हिस्से जिनमें फेफड़े, पाचन तंत्र, प्रतिरक्षा प्रणाली और त्वचा शामिल हैं।"

डोंबिवली के एसआरव्ही ममता अस्पताल के बालरोग विशेषज्ञ डॉ अमेय काकिर्डे ने कहॉं की, “समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चे श्वसन संकट सिंड्रोम, पीलिया, एनीमिया, चिंता, कम प्रतिरक्षा, तंत्रिका संबंधी विकार, श्रवण हानि, हृदय संबंधी मुद्दों और कमजोर मांसपेशियों से पीड़ित हो सकते हैं। उन्हें न केवल एनआईसीयू में जन्म के तुरंत बाद बल्कि घर पर छुट्टी के बाद भी देखभाल की आवश्यकता होती है। समय से पहले बच्चे को घर ले जाने पर माताओं को डॉक्टर द्वारा दिए गए सभी निर्देशों का पालन करना चाहिए। बच्चे को एलर्जी, संक्रमण और विभिन्न बीमारियों से दूर रखना चाहिए और बच्चे के विकास के लिए भी स्तनपान आवश्यक है। वे स्तनपान के बारे में सभी गलतफहमियों को दूर करने और उचित स्तनपान की स्थिति सीखने के लिए एक स्तनपान विशेषज्ञ की मदद लेना काफी जरुरी हैं।" 

डॉ. अमेय ने आगे कहॉं की, "कंगारू देखभाल तकनीक काफी अच्छी हैं। यह शिशुओं में तनाव को कम करता है, शिशू का वजन बढ़ाने में मदद करता है, और बच्चे की हृदय गति और श्वास को नियंत्रित करता है। बच्चे के शरीर के तापमान की नियमित रूप से जॉंच करें। नियमित स्वास्थ्य जांच और फॉलो-अप बच्चे को स्वस्थ जीवन जीने में मदद कर सकते हैं।" 
खारघर स्थित मदरहुड अस्पताल के प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. सुरभि सिद्धार्थ ने कहॉं की, "३५ साल से जादा उम्र के महिलाओं में समय से पहले बच्चे पैदा होने की संभावना ज्यादा होती है। लेकिन सभी मामलों में ऐसा नहीं होता है। जो महिलाएं देर से गर्भधारण करती हैं, उन्हें गर्भधारण से पहले मधुमेह, उच्च रक्तचाप और थायराइड की समस्या जैसी स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। समय से पहले बच्चों को कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। जैसे श्वसन संबंधी समस्याएं, कम प्रतिरक्षा और तंत्रिका संबंधी विकार। ऐसे नवजात शिशुओं की एनआईसीयू में उचित देखभाल किए जाने की जरूरत है।"

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