बढ़ती गर्मी के कारण बच्चों के डायरिया के चपेट में आने की बढ़ जाती है संभावना

आरा ।। भोजपुर जिले में गर्मी का प्रकोप अपने चरम पर है। लगातार बढ़ रही गर्मी के कारण बच्चों और वयस्कों में अत्यधिक डायरिया की संभावना बढ़ गई है। जिसके कारण निर्जलीकरण (डिहाइड्रेशन) की समस्या झेलनी पड़ सकती है। वहीं, कुशल प्रबंधन व जानकारी के अभाव  में यह जानलेवा भी हो जाता है। इसके लिए डायरिया के लक्षणों के प्रति सतर्कता एवं सही समय पर उचित प्रबंधन कर इस गंभीर रोग से आसानी से बचा जा सकता है। डायरिया के लक्षण दिखते ही मरीज तथा उसके घरवालों को सजग हो जाना चाहिए। प्राथमिक उपचार के रूप में ओआरएस का घोल दिया जा सकता है जिससे निर्जलीकरण की स्थिति से बचा जा सके। अगर मरीज को इससे राहत न मिले तो बिना विलम्ब किये तुरंत मरीज को चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए। ताकि शीघ्र इलाज की समुचित व्यवस्था हो सके। इसमें विलम्ब जानलेवा साबित हो सकता तथा डायरिया से मरीजों की मृत्यु भी हो सकती है।

नीम हकीम द्वारा बताये गए उपायों से बचना चाहिए : 

एसीएमओ डॉ. केएन सिन्हा ने बताया, डायरिया के लक्षण यदि ओआरएस के सेवन के बाद भी रहे तो अविलम्ब मरीज को डॉक्टर के पास ले जाएँ तथा उचित उपचार कराएं। उन्होंने बताया कि  नीम हकीम द्वारा बताये गए उपायों से बचना चाहिए तथा चिकित्सीय सलाह लेनी चाहिए। जिले में डायरिया से होने वाली मृत्यु का प्रमुख कारण उपचार में की गयी देरी होती है। उन्होंने बताया कि जिले में डायरिया के बेहतर प्रबंधन तथा लोगों के बीच इसके लिए जागरूकता फैलाई जा रही है। यदि कोई डायरिया से पीड़ित हो गया है तो तत्काल अपने नजदीकी आंगनबाड़ी केंद्र, हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, अनुमंडलीय या रेफरल अस्पताल में जाकर ओआरएस के पैकेट ले सकता है। या फिर आशा कार्यकर्ता से संपर्क कर सकता है। आशा कार्यकर्ताओं को भी ओआरएस के पैकेट बांटने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। 

तीन प्रकार के होते है डायरिया :

डायरिया मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं। पहला एक्यूट वाटरी डायरिया, जिसमें दस्त काफ़ी पतला होता एवं यह कुछ घंटों या कुछ दिनों तक ही होता है। इससे निर्जलीकरण (डिहाइड्रेशन) एवं अचानक वजन में गिरावट होने का ख़तरा बढ़ जाता है। दूसरा एक्यूट ब्लडी डायरिया जिसे शूल के नाम से भी जाना जाता है। इससे आंत में संक्रमण एवं कुपोषण का खतरा बढ़ जाता है। तीसरा परसिस्टेंट डायरिया जो 14 दिन या इससे अधिक समय तक रहता है। इसके कारण बच्चों में कुपोषण एवं गैर-आंत के संक्रमण फ़ैलने की संभावना बढ़ जाती है। चौथा अति कुपोषित बच्चों में होने वाला डायरिया होता है जो गंभीर डायरिया की श्रेणी में आता है।  इससे व्यवस्थित संक्रमण, निर्जलीकरण, ह्रदय संबंधित समस्या, विटामिन एवं जरूरी खनिज लवण की कमी हो जाती है।  

इन लक्ष्णों का रखें ध्यान: डायरिया के शुरुआती लक्षणों का ध्यान रख आसानी से पहचान की जा सकती है :

- लगातार पतले दस्त का होना 

- बार-बार दस्त के साथ उल्टी का होना 

- प्यास का बढ़ जाना 

- भूख का कम जाना या खाना नहीं खाना 

- दस्त के साथ हल्के बुखार का आना 

- दस्त में खून आना जैसे लक्षण

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